पृथ्वी की सबसे ठंडी जगह पर बर्फ की बेहद मोटी परत के 800 मीटर नीचे बिल्कुल अंधेरा है. लेकिन इतनी विषम परिस्थितियों में भी वहां जीवन के सबूत मिले हैं. ऐसे बैक्टीरिया मिले हैं जो चट्टान खाते हैं.
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दक्षिणी ध्रुव में लेक विलेन्स इलाके में बीते साल ड्रिलिंग शुरू की गई. वैज्ञानिक सैकड़ों मीटर मोटी बर्फ की परत को खोदकर नीचे से नमूना लेना चाहते थे. 800 मीटर की खुदाई के बाद वैज्ञानिकों को एक झील सी मिली. इसकी सतह पर पानी भी था और बर्फ भी. इसी झील के तल से चट्टान और मलबे का नमूना लिया गया.
सैंपल का जब लैब में परीक्षण किया गया तो कुछ अतिसूक्ष्म जीवों की हजारों प्रजातियां मिली. विज्ञान जगत की मशहूर पत्रिका नेचर के मुताबिक डाइवर्स माइक्रोबायल कम्युनिटी ने कम से कम से कम 3,931 अलग अलग प्रजातियां या प्रजातियों के समूह खोजे हैं. कई प्रजातियां तो ऐसी है जो जिंदा रहने के लिए चट्टान खाती हैं. कार्बन पाने के लिए कुछ प्रजातियां कार्बन डायऑक्साइड का इस्तेमाल करते हैं.
रिसर्च के लिए वित्तीय मदद देने वाली संस्था अमेरिकी नेशलन साइंस फाउंडेशन ने इसे बड़ी खोज करार दिया है, "अंटार्कटिक की बर्फ की चादर के नीचे ऐसी 400 से ज्यादा झीलें और कई नदियां या जलधाराएं हैं, हो सकता है कि ऐसा इकोसिस्टम बहुत बड़े इलाके में फैला हो."
इससे पहले 2012 में रूसी वैज्ञानिकों ने भी अंटार्कटिक में दबी सबसे बड़ी झील लेक वोस्टॉक में नया बैक्टीरिया खोजने का दावा किया था. हालांकि बाद में कहा जाने लगा कि बैक्टीरिया प्रदूषण की वजह से आया हो सकता है.
अब अमेरिका, इटली और वेल्स के साझा प्रोजेक्ट में मिली प्रजातियों ने रूसी वैज्ञानिकों की खोज को भी बल दिया है. लेक विलेन्स में मिली अतिसूक्ष्म प्रजातियों का जब डीएनए टेस्ट किया गया तो पता चला कि 87 फीसदी बैक्टीरिया से जुड़े हैं. 3.6 फीसदी प्रजातियां एककोशिकीय हैं.
इन नतीजों से भविष्य के अंतरिक्ष कार्यक्रमों को भी फायदा मिलेगा. अगर पृथ्वी की बेहद ठंडी जगह पर चट्टानें खाने वाला बैक्टीरिया हो सकता है तो मुमकिन है कि मंगल पर भी ऐसे अतिसूक्ष्म जीव हों.
ओेएसजे/एमजे (एएफपी)
लगातार बदलती धरती
हमारी पृथ्वी लगातार खुद को बदलती है. कई बार बदलाव बेहद चौंकाने वाले होते हैं. एक नजर हाल में हुए ऐसे ही कुछ बदलावों पर.
तस्वीर: Anis Jaballah, Lac de Gafsa Facebook Group
रेगिस्तान में झील
दक्षिण ट्यूनीशिया के रेगिस्तान में हाल ही में एक झील लाक डे गाफसा उभर आई. 100 मीटर की यह झील पहले कभी नहीं देखी गई थी. अचानक उभरी झील 10 से 18 मीटर गहरी है. वैज्ञानिक इस घटना से हैरान हैं.
तस्वीर: Anis Jaballah, Lac de Gafsa Facebook Group
खुशी भरी हैरानी
झील जिस जगह उभरी हैं, वहां फॉस्फेट की खुदाई होती है. वैज्ञानिकों ने वहां से पानी के नमूने लिए गए हैं और साथ ही लोगों को वहां न जाने की सलाह दी है. लेकिन चिलचिलाती गर्मी और कुदरत की करामात लोगों को झील में डुबकी लगाने के लिए बेताब कर रही है.
तस्वीर: Anis Jaballah, Lac de Gafsa Facebook Group
आस पास हरियाली
इस पूरे इलाके में दूर दूर तरह हरियाली नहीं दिखती. लेकिन नई झील के आस पास अब पौधों की शक्ल में जिंदगी फूटने लगी है. माना जा रहा है कि झील के उभरने से पहले ही इस जगह पर जमीन में खूब नमी आ गई होगी. इसी वजह से हरियाली लहलहा उठी.
तस्वीर: Anis Jaballah, Lac de Gafsa Facebook Group
भूकंप से टापू
सितंबर 2013 में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में 7.7 तीव्रता का भूंकप आया. भूकंप की वजह से ग्वादर के पास अरब सागर में एक नया टापू उभर आया. टापू 100 फीट ऊंचा और 200 फीट चौड़ा था.
तस्वीर: Reuters
उमड़ पड़ा हुजूम
आंखों के सामने कुदरत का खेल देखते ही सैकड़ों लोग नए टापू पर उमड़ पड़े. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि टापू पर जहरीली गैसें हो सकती हैं. वहां ज्वलनशील गैंसे हैं.
तस्वीर: Reuters
टापू मतलब ज्वालामुखी
टापू का उभरना इस बात का पुख्ता सबूत है कि अरब सागर में पानी के नीचे सक्रिय ज्वालामुखी है. भूकंपीय हलचल की वजह से लावे का गुबार टापू की शक्ल में बाहर आ गया.
तस्वीर: Reuters
हिमखंडों में दरार
दक्षिणी अमेरिकी देश चिली में 2010 में भयानक भूकंप का असर 4,700 किलोमीटर दूर अंटार्कटिका तक हुआ. वैज्ञानिकों को हाल ही में पहली बार पता चला है कि भूकंप की वजह से हिमखंडों में दरार आती है.
तस्वीर: International Polar Foundation
बदलेगी धारणा
अब तक यह माना जा रहा था कि बढ़ता तापमान धुव्रीय बर्फ को तोड़ रहा है, लेकिन बर्फ के पिघलने और भूकंप के चलते टूटने में फर्क है.