अंटार्कटिक की समुद्री बर्फ में कमी का रिकॉर्ड फिर टूटा
२० अप्रैल २०२२
अंटार्कटिक में समुद्री बर्फ घटकर अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है. इससे पहले इसमें रिकॉर्ड कमी पांच साल पहले दर्ज हुई थी. बर्फीले महाद्वीप तक जलवायु परिवर्तन का असर जितना सोचा गया, उससे कहीं जल्दी पहुंच गया है.
विज्ञापन
फरवरी के आखिर में बर्फ से ढंके समुद्री इलाके का क्षेत्रफल 20 लाख वर्ग किलोमीटर की सांकेतिक सीमा से नीचे चला गया. 1978 से इस इलाके का सेटेलाइट से रिकॉर्ड रखा जा रहा है. इसके बाद पहली बार यहां इतनी कम बर्फ देखी गई है. एडवांसेज इन एटमोस्फेरिक साइंसेज जर्नल की एक स्टडी में यह बात पता चली है.
क्यों हुई बर्फ में कमी
रिसर्चरों ने पता लगाया है कि बर्फ में कमी का प्रमुख कारण तापमान में बदलाव है हालांकि बर्फ के द्वव्यमान में आए बदलावों ने भी थोड़ी बहुत भूमिका निभाई है. उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव दोनों इलाके में औसत तापमान 19वीं सदी के आखिर की तुलना में करीब 3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है. वैश्विक औसत से यह करीब तीन गुना ज्यादा है. अंटार्कटिक ने पहली बार गर्म हवाओं का अनुभव 2020 में किया था. तब यहां तापमान औसत से 9.2 डिग्री सेल्सियस ऊपर चला गया था. इसका मतलब है कि पूर्वी अंटार्कटिक में मौजूद रिसर्च सेंटर ने तापमान में सामान्य की तुलना में 30 डिग्री सेल्सियस ज्यादा तापमान दर्ज किया था. हालांकि इस तरह की असाधारण घटनाएं हाल में ही हुई हैं.
1970 के दशक के आखिरी सालों से आर्कटिक में मौजूद समुद्री बर्फ हर साल तीन फीसदी घट रहा है. इसके उलट अंटार्कटिक में इसी दौर में हर दशक में बर्फ एक फीसदी बढ़ता रहा. हालांकि सालाना स्तर पर देखें तो इसमें काफी उलटफेर भी हुए. इस साल पश्चिमी अंटार्कटिका के ज्यादा हिस्सों में बर्फ सिमटी है. यह इलाका पूर्वी अंटार्कटिका की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग के ज्यादा खतरे की जद में है.
विज्ञापन
बर्फ की कमी का असर
समुद्री बर्फ के पिघलने का समुद्री जलस्तर पर साफ असर नहीं दिखाई देता है क्योंकि बर्फ पहले से ही समुद्री पानी में है. हालांकि फिर भी बर्फ का पिघलना एक बड़ी चिंता है क्योंकि यह ग्लोबल वार्मिंग को तेज करने में मदद करता है. गुआंगझु की सन यात सेन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर चिंगहुआ यांग इस रिसर्च रिपोर्ट के सह-लेखक भी हैं. उन्होंने समझाया कि सफेद समुद्री बर्फ सूर्य की ऊर्जा को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित कर देती है. जब यही बर्फ पिघल जाती है तो गहरे रंग के समुद्री पानी में "परावर्तन कम होता है और ऊष्मा का अवशोषण ज्यादा." प्रोफेसर यांग का कहना है, "इसके नतीजे में और ज्यादा समुद्री बर्फ पिघलती है और उष्मा का अवशोषण और बढ़ता है."
धरती के सबसे ठंडे महाद्वीप 'अंटार्कटिक' की हैरान करने वाली बातें
बर्फ की मोटी चादर से ढके धरती के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित अंटार्कटिक के कई अद्भुत राज हैं. देखिए कैसे कैसे कीर्तिमान हैं साउथ पोल के नाम.
तस्वीर: E. Hummel/blickwinkel/picture alliance
99 फीसदी बर्फ
यह धरती का सबसे बड़ा मरुस्थल है. करीब 13,829,430 वर्ग किलोमीटर में फैला यह बर्फीला इलाका पूरे यूरोप के आकार का करीब 1.3 गुना है. दिसंबर से फरवरी तक वहां गर्मी का मौसम होता है. लेकिन उस दौरान भी 99 फीसदी हिस्सा बर्फ से ढका ही रहता है. कहीं कहीं बर्फ 5 किलोमीटर तक मोटी होती है.
तस्वीर: British Antarctic Survey/REUTERS
हर तरह की अति
अंटार्कटिक धरती का सबसे ठंडा महाद्वीप है. यहां न्यूनतम तापमान -98.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. केवल यही नहीं, यह धरती का सबसे सूखा और हवादार महाद्वीप भी है क्योंकि यहां कभी बारिश या हिमपात नहीं होता लेकिन कड़ाके सर्दी की वजह से हमेशा बर्फ जमी रहती है.
समय का आभास नहीं
अंटार्कटिक में महाद्वीप के अलावा दक्षिणी ध्रुव सागर भी आता है. अंटार्कटिक पोलर फ्रंट इस महाद्वीप की सीमा बनाता है, जहां दक्षिण का ठंडा पानी उत्तर के गर्म पानी को छूता है. अंटार्कटिक सभी देशांतरों से गुजरता है और सभी टाइम जोनों पर इसका विस्तार है. इसीलिए यहां बने रिसर्च स्टेशन अपने अपने देशों के समय को ही मानते हैं.
तस्वीर: Tim Heitland
सारे हैं अस्थाई निवासी
अंटार्कटिक की आबादी अंतरराष्ट्रीय रिसर्च टीमों से बनी है. गर्मियों में यहां रहने वालों की तादाद करीब 4000 वैज्ञानिकों तक पहुंच जाती है तो कड़ी सर्दियों में केवल 1000 रिसर्चर ही बचते हैं. यहां करीब 80 रिसर्च स्टेशन बने हैं, जहां रह कर 30 देशों के रिसर्चर काम करते हैं. तस्वीर में जर्मनी का नॉयमायर स्टेशन III दिख रहा है.
तस्वीर: Tim Heitland
असली निवासी कौन
केवल सात मिलीमीटर लंबे यह छोटे जीव इस इलाके के असली निवासी माने जा सकते हैं. यह बेहद छोटे होने के बावजूद अंटार्कटिक में रहने वाले सबसे विशाल स्थाई जीव हैं. इनका नाम है अंटार्कटिक मिज (बेल्जिका अंटार्कटिका). लार्वा से पूर्ण वयस्क बनने में इन्हें दो साल का समय लगता है. ज्यादातर वक्त तो इसके लार्वा बर्फ में जमे ही पड़े रहते हैं.
तस्वीर: Reuters
प्यारी पेंग्विन
जैसे उत्तरी ध्रुव पर ध्रुवीय भालू पाए जाते हैं वैसे ही दक्षिणी ध्रुव पर स्थित अंटार्कटिक में पेंग्विन. पेंग्विनों की कुल 17 प्रजातियों में से 4 मूल रूप से यहीं पाई जाती हैं. इनमें से एक है इंपरर पेंग्विन.
तस्वीर: Raimund Linke/picture-alliance/Zoonar
6 तस्वीरें1 | 6
प्राचीन हिम और बर्फ सूरज से आने वाली 80 फीसदी ऊर्जा को वापस अंतरिक्ष में भेज देते हैं जबकि समुद्री पानी इतनी ही ऊर्जा को अवशोषित कर लेता है.
25 फरवरी को बर्फ से ढंके इलाके का क्षेत्रफल 19 लाख वर्ग किलोमीटर मापा गया है. यह 1981-2010 के दौरान की औसत समुद्री बर्फ की तुलना में करीब 30 फीसदी कम है. इससे पहले 2017 में यह 20 लाख वर्ग किलोमीटर से थोड़ा ज्यादा दर्ज किया गया था. हाल के वर्षों में अंटार्कटिक में अधिकतम समुद्री बर्फ का औसत 18 लाख वर्ग किलोमीटर के आसपास रहा है.
इस साल समुद्री बर्फ में हुई रिकॉर्ड कमी के कारणों का विश्लेषण करने के लिए रिसर्चरों ने अंटार्कटिका के "सी आइस बजट" का परीक्षण किया है. इसमें साल दर साल खत्म हुए और नये बर्फ की मात्रा आंकने समेत हर रोज समुद्री बर्फ में हुए परिवर्तन का आकलन किया जाता है.
आर्कटिक में समुद्री बर्फ का सबसे कम क्षेत्रफल 2012 में था तब यह 34 लाख वर्ग किलोमीटर था. इसके बाद दूसरा और तीसरा सबसे कम क्षेत्रफल 2020 और 2019 में सामने आया.
पश्चिमी अंटार्कटिक में बर्फ की चादर तकरीबन छह मीटर समुद्री जल स्तर को अपने अंदर समेटे है. जबकि पूर्वी अंटार्कटिक के विशाल ग्लेशियर वैश्विक समुद्री जलस्तर को 50 मीटर तक बढ़ा सकते हैं.
एनआर/आरएस (एएफपी)
प्रलयकारी ग्लेशियर के टूटने का खतरा
ग्लोबल वॉर्मिंग ने अंटार्कटिका के सबसे बड़े हिमखंडों में से एक थ्वेट्स को खतरे में डाल दिया है. अगर इस ग्लेशियर से बर्फ टूटी तो बहुत सारा पानी समुद्र में जाएगा और उसके जलस्तर को नाटकीय रूप से बढ़ा देगा.
तस्वीर: NASA/AFP
प्रलय का बड़ा खतरा
यह ग्लेशियर जितना विशालकाय है, खतरा उतना ही बड़ा है. इसका आकार 1,92,000 वर्ग किलोमीटर है यानी लगभग युनाइटेड किंग्डम जितना. इसका एक तिहाई हिस्सा बर्फ के तैरते हुए टुकड़े हैं, जिनमें दरारें बढ़ती जा रही हैं.
तस्वीर: NASA/Zumapress/picture alliance
कांच की तरह बिखर सकती है बर्फ
शोधकर्ताओं को डर है कि इस हिमखंड में कुछ नाटकीय बदलाव हो रहे हैं. यह संभव है कि अगले तीन से पांच साल में 45 किलोमीटर लंबा बर्फ का एक टुकड़ा कार के शीशे की तरह चूर-चूर हो जाए.
तस्वीर: NASA/AFP
समुद्र जल स्तर बढ़ने का खतरा
अगर बर्फ का यह टुकड़ा टूटता है तो विशाल मात्रा में बर्फ पानी में जाकर पिघल जाएगी. इससे और ज्यादा बर्फ के टुकड़े टूटेंगे.
तस्वीर: M. DeFreitas /blickwinkel/imago images
ऐसा कई जगह हो रहा है
अगर ऐसा होता है तो यह अकेली घटना नहीं होगी. जुलाई 2017 में पश्चिमी अंटार्कटिका में ए68 नाम का एक हिमशैल लार्सन सी आइस शेल्फ से टूट कर अलग हो गया था. वैसे तो बर्फ के टुकड़े यूं टूटते रहते हैं लेकिन सर्दियों में ऐसा होने का खतरा वैज्ञानिकों को हैरान कर रहा है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि थ्वेट्स के साथ जो हो रहा है उसकी वजह जलवायु परिवर्तन है. बर्फ के नीचे के पानी का तापमान बढ़ रहा है जिस कारण बड़े हिस्से पिघल गए हैं और ग्लेशियर गुफाएं बन गई हैं. पिछले 30 साल में यह प्रक्रिया बेहद तेज हुई है.
तस्वीर: NASA/Zumapress/picture alliance
25 इंच बढ़ जाएगा स्तर
यदि थ्वेट्स ग्लेशियर पूरी तरह टूट जाता है और इसकी सारी बर्फ पिघल जाती है तो समद्र का जलस्तर 25 इंच या 65 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है.
तस्वीर: Michael S. Nolan/imago images
प्रयलकारी ग्लेशियर
थ्वेट्स का टूटना प्रलयकारी हो सकता है. इस कारण आसपास के ग्लेशियर भी टूट सकते हैं. पूरे पश्चिमी अंटार्कटिका में बर्फ पिघल सकती है. नतीजा होगा जलस्तर में 3.3 मीटर की बढ़त. इसीलिए इस ग्लेशियर को प्रलयकारी कहा जाता है.