म्यांमार की नेता आंग सान सू ची हेग की अंतरराष्ट्रीय अदालत में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार से जुड़े आरोपों का सामना करने के लिए पहुंची हैं. रोहिंग्या के मुद्दे पर नोबेल विजेता सू ची को कड़ी आलोचना झेलनी पड़ रही है.
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म्यांमार में 2017 में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ सुरक्षा बलों की कार्रवाई के बाद से लाखों लोगों ने पड़ोसी देशों में शरण ली है. म्यांमार की सरकार पर रोहिंग्या लोगों का पूरी तरह सफाया करने के आरोप लग रहे हैं. सू ची के साथ एक पूरा प्रतिनिधिमंडल द हेग की अदालत में पहुंचा है और जो अपने देश पर लगे आरोपों का बचाव करेगा.
सू ची ने अपने देश में लोकतंत्र के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है. इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका बहुत सम्मान रहा है. लेकिन रोहिंग्या समुदाय के मुद्दे पर उनकी चुप्पी के कारण उनकी प्रतिष्ठा को ठेस लगी है. मानवाधिकार संस्थाओं का कहना है कि उन्होंने रोहिंग्या लोगों की रक्षा के लिए उचित कदम नहीं उठाए.
एक मुस्लिमबहुल अफ्रीकी देश गांबिया की तरफ से दायर मुकदमे में पेशी के लिए सू ची को बुलाया गया है. 57 सदस्यों वाले मुस्लिम सहयोग संगठन की तरफ से गांबिया अदालत से आपात उपाय करने को कहेगा ताकि म्यांमार में जारी "नरसंहार कार्रवाइयों" को रोका जा सके. गांबिया ने म्यांमार पर 1949 की नरसंहार संधि का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है.
म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी लगभग दस लाख है. लेकिन उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है. आइए जानते हैं, कौन हैं रोहिंग्या लोग.
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इनका कोई देश नहीं
रोहिंग्या लोगों का कोई देश नहीं है. यानी उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. रहते वो म्यामांर में हैं, लेकिन वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी मानता है.
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सबसे प्रताड़ित लोग
म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों और सुरक्षा बलों पर अक्सर रोहिंग्या मुसलमानों को प्रताड़ित करने के आरोप लगते हैं. इन लोगों के पास कोई अधिकार नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र उन्हें दुनिया का सबसे प्रताड़ित जातीय समूह मानता है.
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आने जाने पर भी रोक
ये लोग न तो अपनी मर्जी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं और न ही अपनी मर्जी काम कर सकते हैं. जिस जगह वे रहते हैं, उसे कभी खाली करने को कह दिया जाता है. म्यांमार में इन लोगों की कहीं सुनवाई नहीं है.
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बंगाली
ये लोग दशकों से रखाइन प्रांत में रह रहे हैं, लेकिन वहां के बौद्ध लोग इन्हें "बंगाली" कह कर दुत्कारते हैं. ये लोग जो बोली बोलते हैं, वैसी दक्षिणपूर्व बांग्लादेश के चटगांव में बोली जाती है. रोहिंग्या लोग सुन्नी मुसलमान हैं.
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जोखिम भरा सफर
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2012 में धार्मिक हिंसा का चक्र शुरू होने के बाद से लगभग एक लाख बीस हजार रोहिंग्या लोगों ने रखाइन छोड़ दिया है. इनमें से कई लोग समंदर में नौका डूबने से मारे गए हैं.
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सामूहिक कब्रें
मलेशिया और थाइलैंड की सीमा के नजदीक रोहिंग्या लोगों की कई सामूहिक कब्रें मिली हैं. 2015 में जब कुछ सख्ती की गई तो नावों पर सवार हजारों रोहिंग्या कई दिनों तक समंदर में फंसे रहे.
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इंसानी तस्करी
रोहिंग्या लोगों की मजबूरी का फायदा इंसानों की तस्करी करने वाले खूब उठाते हैं. ये लोग अपना सबकुछ इन्हें सौंप कर किसी सुरक्षित जगह के लिए अपनी जिंदगी जोखिम में डालने को मजबूर होते हैं.
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बांग्लादेश में आसरा
म्यांमार से लगने वाले बांग्लादेश में लगभग आठ लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो म्यांमार से जान बचाकर वहां पहुंचे हैं. बांग्लादेश में हाल में रोहिंग्याओं को एक द्वीप पर बसाने की योजना बनाई है.
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आसान नहीं शरण
बांग्लादेश कुछ ही रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी के तौर पर मान्यता देता है. वो नाव के जरिए बांग्लादेश में घुसने की कोशिश करने वाले बहुत से रोहिंग्या लोगों को लौटा देता है.
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दर ब दर
बाग्लादेश के अलावा रोहिंग्या लोग भारत, थाईलैंड, मलेशिया और चीन जैसे देशों का भी रुख कर रहे हैं.
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सुरक्षा के लिए खतरा
म्यांमार में हुए हालिया कई हमलों में रोहिंग्या लोगों को शामिल बताया गया है. उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई के जवाब में सुरक्षा बलों का कहना है कि वो इस तरह के हमलों को रोकना चाहते हैं.
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मानवाधिकार समूहों की अपील
मानवाधिकार समूह म्यांमार से अपील करते हैं कि वो रोहिंग्या लोगों को नागरिकता दे और उनका दमन रोका जाए.
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कानूनी अड़चन
म्यांमार में रोहिंग्या लोगों को एक जातीय समूह के तौर पर मान्यता नहीं है. इसकी एक वजह 1982 का वो कानून भी है जिसके अनुसार नागरिकता पाने के लिए किसी भी जातीय समूह को यह साबित करना है कि वो 1823 के पहले से म्यांमार में रह रहा है.
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आलोचना
रोहिंग्या लोगों की समस्या पर लगभग खामोश रहने के लिए म्यांमार में सत्ताधारी पार्टी की नेता आंग सान सू ची की अक्सर आलोचना होती है. माना जाता है कि वो इस मुद्दे पर ताकतवर सेना से नहीं टकराना चाहती हैं. सू ची हेग को अंतरराष्ट्रीय अदालत में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार से जुड़े आरोपों का सामना करने के लिए जाना पड़ा है.
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गांबिया ने अदालत से कहा है, "इन कार्रवाइयों के दौरान नरसंहार की जो गतिविधियां हुई हैं उनका मकसद एक समूह के तौर पर रोहिंग्या लोगों का पूरी तरह या आंशिक रूप से सफाया करना है. इसके लिए बड़े पैमाने पर हत्याओं, बलात्कार और यौन हिंसा का सहारा लिया जा रहा है."
अंतरराष्ट्रीय अदालत में इस मुद्दे पर तीन दिन तक सुनवाई चलेगी. इस दौरान उनके समर्थकों और विरोधियों, दोनों की तरफ से ही प्रदर्शन होने की उम्मीद है. सू ची को एक तरह से उन सैन्य जनरलों का बचाव करना होगा जिन्होंने उन्हें बरसों तक घर पर नजरबंद रखा. सू ची ने कहा है कि वह अपने देश के हितों का बचाव करेंगी. उनके मुताबिक यह मामला अंतरराष्ट्रीय अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता. उनकी दलील है कि म्यांमार सिर्फ चरमपंथियों को निशाना बना रहा है.
म्यांमार में रोहिंग्या लोगों के खिलाफ 2017 में कार्रवाई होने के बाद से 7.3 लाख से ज्यादा लोग सीमावर्ती रखाइन प्रांत से भागे हैं. इनमें से ज्यादातर लोग बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में बेहद बुरे हाल में जिंदगी बिता रहे हैं. कुछ लोग भारत, मलेशिया और इंडोनेशिया की तरफ भी गए हैं.
रोहिंग्या मुसलमानों के मसले पर संयुक्त राष्ट्र समेत पूरी दुनिया म्यांमार के रुख पर सवाल उठा रही है. भारत में तो रोहिंग्या मुसलमानों का मामला न्यायालय तक पहुंच गया है. एक नजर उन देशों पर जहां रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं.
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म्यांमार
म्यांमार में गरीबी और मुफलिसी का जीवन बिता रहे ये रोहिंग्या मुसलमान देश के रखाइन प्रांत को अपना गृहप्रदेश मानते हैं. आंकड़ों के अनुसार म्यांमार में तकरीबन 6 लाख रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं.
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भारत
देश में तकरीबन 40 हजार रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं. भारत की मोदी सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बताया है और इन्हें वापस भेजने की बात कही है. फिलहाल मामला उच्चतम न्यायालय में है.
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बांग्लादेश
म्यांमार से भागे शरणार्थी बांग्लादेश में ही शरण ले रहे हैं. बांग्लादेश में तकरीबन 9 लाख रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं. बांग्लादेश सरकार, म्यांमार से बार-बार इन्हें वापस लेने की बात कह रही है लेकिन म्यांमार सरकार इन्हें बांग्लादेशी करार देती है.
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पाकिस्तान
दुनिया के तमाम मुस्लिम देश रोहिंग्या मुसलमानों की हालत पर सवाल उठा रहे हैं लेकिन मुस्लिम राष्ट्रों में भी रोहिंग्या समुदाय की हालत कोई बहुत अच्छी नहीं है. पाकिस्तान में 40 हजार से 2.50 लाख तक रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं.
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थाईलैंड
भारत के साथ सांस्कृतिक रूप से जुड़ाव रखने वाले थाईलैंड में भी तकरीबन 5000 रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं. इनमें से अधिकतर ऐसे शरणार्थी हैं जो म्यांमार से भाग कर थाईलैंड आये और वहीं बस गये.
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मलेशिया
म्यांमार के रखाइन प्रांत में हुई हिंसा का विरोध मलेशिया में भी हुआ था. मलेशिया में तकरीबन एक लाख रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं जो म्यांमार और बांग्लादेश में रहने वाले रोहिंग्या समुदाय से हमदर्दी रखते हैं.
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सऊदी अरब
सुन्नी बहुल मुस्लिम समुदाय वाले सऊदी अरब में भी तकरीबन 2 लाख रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं. लेकिन म्यांमार के साथ अपने कारोबारी हितों के चलते सऊदी अरब के तेवरों में रोहिंग्या मसले पर वैसी तल्खी नजर नहीं आती जैसा अन्य मुस्लिम देश अपनाये हुए हैं.
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नाजी जर्मनी में यहूदी नरसंहार के बाद 1948 में एक अंतरराष्ट्रीय कानून बनाया गया था, जिसमें राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय और धार्मिक समूहों के नरसंहार को परिभाषित किया गया है. इसके तहत समूह के सदस्यों की बड़े पैमाने पर हत्या, उन्हें शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना देने, जानबूझ कर उनके लिए नारकीय परिस्थितियां तैयार करने, समूह में प्रजनन को रोकने या फिर बलपूर्वक बच्चों को अन्य समूहों को देने को नरसंहार के तौर पर परिभाषित किया गया है.