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अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को लाने वाले राजीव

१९ मई २०११

राजीव गांधी की शख्सियत जितनी चमकदार थी, उनकी सोच भी उतनी ही शानदार मानी जाती है. घरेलू मुश्किलों को हल करने के साथ राजीव ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत को नई पहचान देने का फैसला किया और उन्हें इसमें कामयाबी भी मिली.

Indian Prime Minister Rajiv Gandhi adress a massive rally of 200,000 Congress Party supporters at the historic Red Ford, New Delhi, India, 31. October 1988, to mark the fourth anniversary of the assasination of Rajiv's mother, the late Indira Gandhi. Meanwhile, farmers have called off their week-long protests blocking the road to parliament. (AP-Photo) 31.10.1988
तस्वीर: AP

सबसे आगे हो भारत

भारत को आईटी सुपर पावर बनाने की सोच राजीव के दिमाग से निकली. सूचना-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आज जहां हिंदुस्तान खड़ा है, उसका श्रेय काफी हद तक राजीव को जाता है. सत्ता संभालने के ठीक आठ महीने बाद राजीव ने अमेरिकी कांग्रेस की साझा बैठक को संबोधित करते हुए कहा, "भारत देश भले ही प्राचीन है, लेकिन यह एक युवा देश है. और जैसे दुनिया के नौजवान बेकरार होते हैं हम भी वैसे ही बेकरार हैं. मैं भी युवा हूं. और मेरा भी एक सपना है. एक मजबूत, आत्मनिर्भर और आजाद हिंदुस्तान का सपना है, जो मानवता की सेवा में विकसित देशों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें." इस बयान की अमेरिका में जमकर तारीफ हुई. ऐसे अमेरिका में जो तब भारत को फूटी आंख भी पंसद नहीं करता था.

विदेश नीति

भारत-चीन संबंध सुधारने में 1988 की राजीव गांधी की चीन यात्रा का खासा महत्व है. उन्होंने चीन के साथ साहसिक दृष्टिकोण अपनाया और चीन की यात्रा की. इससे दोनों देशों के रिश्तों की नई शुरुआत हुई. इस दौरान राजीव गांधी ने साइंस, टेक्नोलॉजी और सिविल एविएशन के क्षेत्र में कई समझौते किए.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

क्रिकेट डिप्लोमेसी

1987 में उस वक्त के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पाकिस्तान सरकार को भारत में होने वाला मैच देखने का न्योता भेजा. उस समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक ने भारतीय प्रधानमंत्री का न्योता कबूल किया और फरवरी 1987 में जयपुर मैच देखने आए. राजीव ने इस मौके का फायदा उठाते हुए पाकिस्तान के साथ समझौता किया कि युद्ध की हालात में दोनों देश एक दूसरे के परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमला नहीं करेंगे. जनरल जिया इस समझौते को अमलीजामा पहनाने के पहले ही हवाई दुर्घटना में मारे गए. भारत और पाकिस्तान ने इस समझौते को 1988-89 के सार्क सम्मेलन में औपचारिक मंजूरी दी. इस समझौते के तहत दोनों देशों ने एक-दूसरे को अपने परमाणु ठिकानों की सूची सौंप दी.

राजीव और बेनजीर

एक जमाना था, जब भारत में राजीव गांधी और पाकिस्तान में बेनजीर भुट्टो प्रधानमंत्री थीं. दक्षिण एशिया के दो सबसे ताकतवर देशों की कमान दो नौजवान कंधों पर थी और दोनों ने बड़ी खूबसूरती से अपना काम किया. राजीव और बेनजीर में बड़ी अच्छी केमेस्ट्री थी और दोनों के राष्ट्राध्यक्ष रहते भारत पाकिस्तान के संबंध भी अच्छे हुए. लेकिन यह जोड़ी साल भर से ज्यादा नहीं रह पाई.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

एक आम भारतीय

राजीव 20 अगस्त 1944 को जन्मे. वे राजनीति में आने से पहले इंडियन एयरलाइंस में पायलट थे. उनकी मां इंदिरा गांधी उस वक्त भारत ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे ताकतवर हस्तियों में थीं. लेकिन राजीव ने इंडियन एयरलाइंस की नौकरी में विरासत में मिली पहचान का कभी इस्तेमाल नहीं किया. सामान्य पायलट की तरह वह नौकरी करते रहे. लेकिन अपने भाई संजय गांधी की मौत के बाद उन्हें राजनीति में आना पड़ा और 1981 में वह उत्तर प्रदेश के अमेठी से लोकसभा के लिए चुने गए. समय के साथ राजीव अपनी मां इंदिरा गांधी के अहम सलाहकार माने जाने लगे. इंदिरा गांधी की मौत से जब भारत कांप उठा तो राजीव ने देश की बागडोर संभाली.

कांग्रेस अथाह बहुमत के साथ सत्ता में थी लेकिन पांच साल के कार्यकाल में राजीव पर विपक्ष की अनदेखी करने का आरोप नहीं लगा. 1989 में लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार हुई तो एक सामान्य कार्यकर्ता और नेता की तरह वह कांग्रेस को फिर से तैयार करने में जुट गए. उन्होंने पीवी नरसिम्हा राव जैसे नेताओं को तैयार किया.

रिपोर्टः आमिर अंसारी

संपादनः अनवर जे अशरफ

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