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अंतरराष्ट्रीय समुदाय से उम्मीद करते अफगान नागरिक

४ दिसम्बर २०११

5 दिसंबर को बॉन में विश्व भर के नेता अफगानिस्तान में स्थिति पर विचार विमर्श कर कर रहे हैं. गृहयुद्ध से बचने के लिए बहुत से अफगान नागरिक अब भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर से मदद की उम्मीद रखते हैं.

अमन के इंतजार में लोगतस्वीर: AP

अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर जब जानकारी ढूंढने की बात आती है तो अफगान पुरुष अकसर मस्जिद के लिए रवाना होते हैं. इबादत के साथ साथ वहां देश के हालात पर ताजी जानकारी भी मिल जाती है. इनमें से एक युवक सय्यद शाह बताते हैं कि बॉन में हो रहा सम्मेलन उनके लिए कितना मायने रखता है, "दस साल पहले हुई बैठक में यह तय किया गया था कि अफगानिस्तान में विदेशी सैनिक भेजे जाएंगे. अब, जब उनकी अफगानिस्तान छोड़ने की बारी आई है, तो हम जानना चाहते हैं कि यहां आगे क्या होगा."

तालिबान की वापसी का डर

2014 के बाद हालात कैसे होंगे?तस्वीर: AP

एक समय में कंदहार तालिबान का गढ़ हुआ करता था. अब इस बात का डर है कि विदेशी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी के बाद इस्लामी चरमपंथी इलाके को फिर से अपने नियंत्रण में कर सकते हैं. तालिबान और स्थानीय नेताओं के समर्थकों के बीच हिंसा होने का भी डर पैदा हो गया है. इस स्थिति में हर किसी के जबान पर एक ही सवाल हैः 2014 में अंतरराष्ट्रीय सैनिकों के अफगानिस्तान से लौटने के बाद हालात कितना बदलेंगे.

उत्तरी अफगान शहर मजार ए शरीफ में रह रहीं दो बच्चों की मां पलवशा को भी यही चिंता सता रही है. 28 वर्षीय पलवशा चाहती हैं कि जर्मनी के अफगानिस्तान बैठक के दौरान महिला अधिकारों पर भी ध्यान दिया जाएः "पिछले कुछ सालों में अफगान महिलाओं को जो कुछ अधिकार मिले हैं, बॉन बैठक में उनकी बलि नहीं चढ़ाई जानी चाहिए." मजार ए शरीफ में करीब 3,500 जर्मन सैनिक तैनात हैं.

2011 में अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा आण लोग मारे गएतस्वीर: dapd

अंतरराष्ट्रीय समुदाय का वादा

अफगानिस्तान के पश्चिमी शहर हेरात के एक स्कूल के अध्यापक नसीर देहकान को अब भी तालिबान शासन और 90 की दशक में हुए गृहयुद्ध याद आते हैं. उस वक्त अफगानिस्तान में रूसी कब्जे के खिलाफ लड़ रहे मुजाहिदीन गुट देश के नियंत्रण के लिए आपस में लड़ रहे थे. काबुल सहित कई शहर इस लड़ाई की वजह से तबाह हो गए थे.

महिलाओं को भी अपनी स्थिति को लेकर चिंता हैतस्वीर: picture-alliance/dpa

नसीर देहकान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के वादे याद हैं जिसमें पश्चिमी देशों ने अफगानिस्तान में शांति और लोकतंत्र स्थापित करने की बात कही थी. देहकान चाहते हैं कि पश्चिमी देश अपना वादा निभाएं, "बॉन में कई देशों के प्रभावशाली नेता आ रहे हैं. मैं उम्मीद करता हूं कि वे समझें कि अफगानिस्तान के लिए जो भी योजनाएं बनाई गई थीं, उनमें से काफी कुछ हासिल नहीं हुआ है."

अफगानिस्तान के नागरिक पिछले 30 सालों से जंग और गृहयुद्ध के माहौल में रह रहे हैं. देहकान कहते हैं, "हम बस इसलिए जिंदा हैं क्योंकि हम एक बेहतर भविष्य की उम्मीद कर रहे हैं." देहकान के मुताबिक, अफगानिस्तान में लोग यह नहीं चाहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय उनकी सारी समस्याएं सुलझाए. लेकिन अकेले, और बिना किसी अंतरराष्ट्रीय मदद के, अफगानिस्तान भविष्य का सामना करने के काबिल नहीं रहेगा.

रिपोर्टः रतबिल शामिल/एमजी

संपादनः महेश झा

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