जहां गुरुत्व बल नहीं होगा, क्या वहां इंसान पैदा होगा और विकास कर सकेगा? इसी सवाल का जबाव तलाशने के लिए वैज्ञानिक तंत्रिका तंत्र की कोशिकाओं को अंतरिक्ष में भेज रहे हैं.
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जर्मनी की होहेनहाइम यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक तंत्रिका तंत्र की कोशिकाओं का एक नमूना अच्छे से पैक कर चुके हैं. 17 दिसंबर को इन कोशिकाओं को एक रॉकेट में चढ़ाया जाएगा. रॉकेट पृथ्वी से करीब 400 किलोमीटर अंतरिक्ष में घूम रहे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक जाएगा.
यूनिवर्सिटी ने इस प्रयोग की जानकारी देते हुए चीफ रिसर्चर फ्लोरियान कॉन ने कहा, "हम यह देखना चाहते हैं क्या गुरुत्व बल के अभाव में भी कोशिकाओं का विकास वैसे ही होता है, जैसे वह पृथ्वी पर होता है. अगर भविष्य में कभी अंतरिक्ष में इंसान पैदा हुआ तो हम जान पाएंगे कि क्या वहां तंत्रिका तंत्र कैसे विकास करता है."
दो हफ्ते बाद कोशिआओं को वापस पृथ्वी पर लाया जाएगा और उनका अध्ययन किया जाएगा. इस दौरान पता चलेगा कि कोशिशकाओं के भीतर मौजूद जीनोम, डीएनए और आरएनए पर क्या असर पड़ा.
प्रयोग को जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्रालय से पांच लाख यूरो की वित्तीय मदद मिली है. इस प्रयोग के जरिये अंतरिक्ष यात्रियों की सेहत बेहतर करने में भी मदद मिलेगी. हो सकता है कि देर सबेर इंसानी शरीर की किसी बीमारी को खत्म करने का रास्ता अंतरिक्ष में हुई रिसर्च से मिल जाए. अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में ऐसे कई प्रयोग होते हैं, जो धरती पर नहीं किये जा सकते. गुरुत्व बल के अभाव में वहां कई धातुएं बिल्कुल अलग व्यवहार करने लगती हैं. आग भी अंतरिक्ष स्टेशन में बिल्कुल अलग ढंग से व्यवहार करती है.
(इन जीवों से सीखकर अंतरिक्ष तक पहुंचा इंसान)
इन जीवों से सीखकर अंतरिक्ष तक पहुंचा इंसान
अंतरिक्ष में जाने वाला पहला प्राणी कौन था? यूरी गागरिन, नहीं. पहला जीव कोई और था. जानिये अंतरिक्ष में जाने वाले जीवों की कहानी.
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अंतरिक्ष की पहली उड़ान
1947 में सोवियत संघ ने पहली बार जीव को अंतरिक्ष में भेजा. वह एक मक्खी थी. दस साल बाद 1957 में सोवियत संघ ने एक कुतिया को अंतरिक्ष में भेजा. लेकिन रॉकेट लॉन्च के कुछ घंटों बाद लाइका मर गयी.
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पहली सफलता
लाइका की मौत के बावजूद सोवियत संघ ने कुत्तों को अंतरिक्ष भेजना जारी रखा. धीरे धीरे रॉकेटों को ज्यादा सुरक्षित बनाया जाने लगा. 1960 में स्ट्रेल्का और बेल्का नाम के कुत्तों को अंतरिक्ष में वापस भेजा गया. दोनों सुरक्षित वापस लौटे. 1961 में स्ट्रेल्का का एक बच्चा तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति की बेटी को भेंट भी किया गया.
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फिर बंदर की बारी
रूस जहां कुत्तों को अंतरिक्ष में भेज रहा था, वहीं अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा बंदरों के भरोसे तैयारियां कर रही थी. 1958 में अमेरिका ने गोर्डो नाम के बंदर को अंतरिक्ष में भेजा लेकिन उसकी मौत हो गयी. साल भर बाद 1959 में मिस बेकर और एबल नाम के बंदरों को भेजा गया. दोनों सुरक्षित वापस लौटे.
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बंदरों पर असर
एबल और मिस बेकर पृथ्वी की कक्षा से जिंदा वापस लौटने वाले पहले बंदर थे. 500 किलोमीटर ऊपर भारहीनता ने बंदरों की हालत खस्ता कर दी थी. लैंडिंग के कुछ ही देर बाद एबल की मौत हो गयी. मिस बेकर 1984 में 27 साल की उम्र पूरी करके विदा हुई.
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कैप्सूल का प्रयोग
सैम भाग्यशाली रहा कि उस पर मिस बेकर और एबल की तरह भारहीनता के प्रयोग नहीं किये गए. सैम नाम के बंदर के जरिये अंतरिक्ष यात्रियों को जिंदा रखने वाले कैप्सूल का टेस्ट हुआ. सैम इस टेस्ट में कामयाब रहा.
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पहला चिम्पांजी
कुत्ते और बंदरों के बाद इंसान के बेहद करीब माने जाने वाले चिम्पांजी की अंतरिक्ष यात्रा का नंबर आया. 1961 में अमेरिका ने हैम नाम के चिम्पाजी को अंतरिक्ष में भेजा. उसने छह मिनट तक भारहीनता का सामना किया. वह जिंदा वापस लौटा. उसके शरीर का अध्ययन कर भारहीनता में शरीर कैसे काम करता है, यह समझने में मदद मिली.
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छोटे लेकिन टफ जीव
कुत्तों, बंदरों और चिम्पांजी को अंतरिक्ष में भेजने के बाद इंसान भी अंतरिक्ष में गया. लेकिन ऐसा नहीं है कि अब दूसरे जीवों को अंतरिक्ष में भेजने का काम बंद हो गया है. यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने 2007 में टार्डीग्रेड नाम के सूक्ष्म जीवों को अंतरिक्ष में भेजा. वे 12 दिन जीवित रहे. उनकी मदद से पता किया जा रहा है कि निर्वात और सौर विकिरण जीवन पर कैसा असर डालता है. (रिपोर्ट: लीजा हैनेल/ओएसजे)