अंतरिक्ष में बिखरा कबाड़ हटाने में जापानी आगे
२३ अप्रैल २०२१आठ किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से धरती का चक्कर लगाते मानव निर्मित मलबे के टुकड़े इस समय विभिन्न उपग्रहों और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसे मानव चालित अंतरिक्षयानों के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं. ज्यादा से ज्यादा देश अंतरिक्ष में अपने-अपने उपग्रह (सैटेलाइट) छोड़ रहे हैं, कुछ देश अंतरिक्ष में और गहरी पैठ बनाने की कोशिशों में भी लगे हैं. ये सब देखते हुए तय है कि धरती का चक्कर लगाते इस स्पेस मलबे की मात्रा भी बढ़ेगी. कम से कम चार जापानी कंपनियां इस कबाड़ की सफाई में बेहतर व्यापार अवसर देख रही हैं. वे उन समाधानों को विकसित करने में जुटी है जिनकी बदौलत आने वाले दिनों में अंतरिक्ष यात्रा अधिक सुरक्षित हो सकेगी.
जापानी कंपनी एस्ट्रोस्केल के संस्थापक और सीईओ नोबु ओकाडा कहते हैं, "मेरा मानना है कि अंतरिक्ष में बढ़ते कबाड़ का मुद्दा आज दुनिया के सबसे ज्वलंत मुद्दों में से एक है." एस्ट्रोस्केल कंपनी 2013 में बनायी गयी थी और ब्रिटेन, अमेरिका, इस्राएल और सिंगापुर में उसकी शाखाएं हैं.
अंतरिक्ष की सफाई का नया अभियान
ओकाडा ने डॉयचेवेले को बताया, "यह दलील दी जा सकती है कि धरती पर पहले से ही जलवायु परिवर्तन और दूसरे पर्यावरणीय मुद्दों से जुड़ी समस्याएं क्या कम हैं जो अंतरिक्ष की ओर देखें. लेकिन ध्यान रहे कि सैटेलाइट सेवाओं की बदौलत ही हम अपनी धरती की सेहत को समझने में समर्थ हो पाते हैं."
उनका कहना है कि उपग्रहों के कारण ही हम जलवायु परिवर्तन को माप सकते हैं, उसकी निगरानी और प्रबंधन कर सकते हैं. ओकाडा बताते हैं, "उपग्रहों से ही हम धरती के भविष्य का आकलन करने में समर्थ हो पाते हैं. अंतरिक्ष से पृथ्वी की कक्षा की हिफाजत किए बिना, पृथ्वी पर पर्यावरणीय सुरक्षा कायम नहीं रह सकती."
22 मार्च को कजाखस्तान के बाइकोनुर कॉस्मोड्रोम से छोड़े गए सोयुज रॉकेट में भेजे अपने एल्सा-डी डिमॉन्स्ट्रेशन क्राफ्ट के जरिए एस्ट्रोस्केल ने अपनी ‘एंड ऑफ लाइफ सर्विसेज' शुरू कर दी. ओकाडा कहते हैं अंतरिक्ष मलबे के लिए कोर तकनीकी की जरूरत को साबित करने के लिए ये पहला वाणिज्यिक अभियान है.
सफाई का काम होता कैसे है?
एल्सा-डी दो उपग्रहों से मिलकर बना है जो एक के ऊपर एक जुड़े हुए हैं. एक 175 किलोग्राम वाला सर्विसर सैटेलाइट है और दसूरा 17 किलो वाला क्लाइंट सैटेलाइट. सर्विसर उपग्रह बहुत सारी प्रौद्योगिकियों का ठिकाना है. उसमे एक चुंबकीय डॉकिंग मकैनिजम भी लगा है और खराब पड़ चुके उपग्रहों और मलबे के बड़े टुकड़ों को हटाने के काम इसी उपग्रह के जरिए होता है.
सर्विसर सैटेलाइट का काम सिमुलेशन में दिखाया जाता है कि कैसे वे क्लाइंट उपग्रह के साथ बार-बार जुड़ता है और उसे अलग भी कर देता है. वह किसी मलबे को चिन्हित करने, उसका मुआयना करने और उसे रिकवर करने की क्षमता भी दिखाता है. क्लाइंट सैटेलाइट एक सामान्य अंतरिक्ष मलबे का रेप्लिका यानी नमूना है. उसमें एक फैरोमैग्नटिक प्लेट लगी रहती है जो डॉकिंग के काम को संभव करती है. इसके बाद सर्विसर सैटेलाइट अपना कार्गो यानी इकट्ठा किया हुआ मलबा लेकर नीचे आने लगता है और वायुमंडल में ही जल जाता है.
मलबे की सफाई से जुड़ी चुनौतियां
ओकाडा कहते हैं, "अंतरिक्ष के मलबे को हटाने के मामले में तीन मुख्य चुनौतियां हैं: तकनीकी का विकास, अंतरराष्ट्रीय और घरेलू नीतियों के साथ तालमेल और व्यापारिक हित की पहचान." उनके मुताबिक, "तकनीकी चुनौतियों में देखें तो एक उपग्रह तैयार करना जो एक साथ अनेक क्षमताओं, उपयोगिताओं और कार्यों से लैस हो, जो एक बेकार उपग्रह को डॉक कर सके, और उसे सुरक्षित तरीके से कक्षा से हटा दे, ये सब अपने आप में एक बड़ा प्रौद्योगिकीय चैलेंज है."
उनका कहना है कि मलबे के टुकड़ों को पकड़ने की क्षमता के लिए एक रोबोटिक हाथ तैयार करना बहुत ज्यादा मुश्किल काम था. ओकाडा बताते हैं, "कुल मिलाकर, एल्सा-डी मिशन बहुत जटिल है, और इस तरह मलबे को खींचने का काम पहले कभी नहीं हुआ. लेकिन हमें उम्मीद है कि ये तकनीकी मुजाहिरे, ग्राहकों के रूप में वाणिज्य जगत और सरकारों को दिखाएंगे कि हमारे पास ये सेवा देने के लिए तकनीकी क्षमताएं हैं."
अंतरिक्ष का मलबा हटाने के दूसरे हल क्या हैं?
एक और कंपनी है एएलई जिसकी प्रवक्ता मारिको यामासाकी कहती हैं कि उनकी कंपनी के इंजीनियर और वैज्ञानिक एक बहुत अलग ही समझ के साथ काम कर रहे हैं. स्पेस जंक के जखीरे को हटाने के लिए एएलई, जापानी एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी के साथ मिलकर काम कर रही है.
यामासाकी कहती हैं, "हमारा सिस्टम लॉरेन्त्ज फोर्स और किसी सैटेलाइट के लॉन्च होने से पहले उससे जुड़ी एक इलेक्ट्रोडायनामिक जंजीर का इस्तेमाल करता है. एकबारगी सैटेलाइट का जीवनकाल पूरा होते ही जंजीर अंतरिक्ष में खुल जाती है और पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का लाभ उठाते हुए सैटेलाइट की कक्षा को बदल देती है."
एक बार फिर से नतीजा यही होता है कि सैटेलाइट नीचे आते हुए वायुमंडल में भस्म हो जाता है. एएलई को उम्मीद है कि वह इस साल के आखिर तक अपने सिस्टम का प्रदर्शित कर देगा.
लेजर की मदद से मलबे की सफाई
दूसरा हल उपग्रह संचार कंपनी स्काई परफेक्ट जेसैट कॉर्प ने पेश किया है. वह लेजर के इस्तेमाल से मलबे को खत्म करना चाहती है. टोक्यो स्थित इस कंपनी को यकीन है कि 2026 में अपना पहला मलबानाशक उपग्रह लॉन्च कर देगी. ये कंपनी नागोया यूनिवर्सिटी और क्युशु यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के साथ काम कर रही है. कंपनी का उपग्रह अपने लेजर से मलबे के छोटे से छोटे कणों को भी निशाना बना सकने के लिहाज से डिजाइन किया गया है. कंपनी के मुताबिक लेजर से निकलने वाली ऊर्जा, मलबे की कक्षा को बाधित कर उसे धरती के वायुमंडल में डाल देती है जहां वो जल जाता है.
धरती का चक्कर काट रहे मलबे की मात्रा हर साल बढ़ती जा रही है. ऐसे में कंपनी के अधिकारी मानते हैं कि सैटेलाइट ऑपरेटर अपने अरबों डॉलर वाले उपग्रह को निर्धारित कक्षा में भेजने का रास्ता सुरक्षित रखने और उसे किसी संभावित नुकसान से बचाने के लिए खुशी खुशी भुगतान करेंगे. हालांकि मलबे की सफाई की इस प्रौद्योगिकी की कोई कीमत अभी तय नहीं की गयी है.
कंपनी ने अपने बयान में कहा, "अंतरिक्ष में मलबे की समस्या एक पर्यावरणीय समस्या है, सीओटू और समन्दर में फैले प्लास्टिक की तरह. इसलिए वह एक टिकाऊ अंतरिक्ष पर्यावरण को बनाए रखने के लिए योगदान देती रहेगी जिसका लक्ष्य इस प्रोजेक्ट के जरिए अंतरिक्ष के मलबे की समस्या को सुलझाना है."