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अंतिम संस्कार सिखाने वाला स्कूल

१२ मार्च २०११

अंतिम संस्कार की ट्रेनिंग देने वाला जर्मन स्कूल पूरे यूरोप में अपनी तरह का इकलौता स्कूल है. बूढ़े लोगों की तेजी से बढ़ती आबादी वाले देश में लोगों का इंतिम संस्कार एक मुनाफे का कारोबार भी है.

तस्वीर: picture-alliance/ dpa

उत्तरी बवेरिया के मुइनरस्टाट के इस स्कूल में अंतिम संस्कार कराने की पढ़ाई तीन साल लंबी है. इसमें स्कूली पढ़ाई के साथ व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है. साथ ही सीधे नौकरी पर ट्रेनिंग भी. छात्रों को यहां कब्र खोदने के अलावा ये भी सिखाया जाता है कि दुखी परिवार वालों के साथ कैसे पेश आना है, कब्र को बंद कैसे करना है, ताबूत में कील कैसे और कितनी ठोकनी है अंतिम संस्कार के लिए शव को कैसे तैयार करना है और यहां तक की मृत्यु की सूचना कैसे लिखनी है.

दूसरे देशों से भी आते हैं लोग

स्कूल के प्रशासनिक केंद्र की प्रमुख रोसिना एकर्ट ने बताया, "हमारे पास अक्सर दूसरे देशों के लोग भी आते हैं. चीन और रूस के लोगों का एक समूह हमारी ट्रेनिंग के तरीकों के बारे में जानकारी जुटाने आया था." स्कूल में छात्रों को ट्रेनिंग देने के लिए खोदी गई कब्र में काम करती 26 साल की लीसा मागेरा बताती हैं, "कई बार लोगों को हैरानी होती है कि हम इस काम में कैसे आ गए. पहले मैं असिस्टेंट नर्स के रूप में काम करती थी." मागेरा संस्थान के 535 छात्रों में एक हैं. वो कहती हैं, "जब किसी की मौत होती थी तो मैं बड़े चाव से ये देखा करती कि कैसे अंतिम संस्कार कराने वाले लोग आकर सब कुछ संभाल लेते हैं."

तस्वीर: Fotolia/Katrin Lantzsch

20 साल की लारा एशर को ये काम इसलिए पसंद हैं क्योंकि उन्हें इससे ऊर्जा मिलती है. वो कहती हैं, "मैं दिन भर ऑफिस में बैठे बैठे काम करने की बजाए कुछ ऐसा करना चाहती हूं जिसमें लोगों से मिलना जुलना हो."

मरने का खर्चा 2000 से 5000 यूरो

इस स्कूल में पढ़ाने के लिए हनोफर शहर से आए विलहेल्म लाउटेनबाख बताते हैं कि पहले ये काम एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचता था. 1896 में उनकी संस्था शुरू हुई और उन्हें उम्मीद है कि उनका बेटा भी इस खानदानी कारोबार को संभालेगा. वो कहते हैं, "बदलाव यहां भी हो रहे हैं. अलग अलग पृष्ठभूमि वाले ज्यादा से ज्यादा लोग हमारे पास इस धंधे से जुड़ने के लिए आ रहे हैं क्योंकि इसमें मंदी का कोई खतरा नहीं."

जर्मनी में अंतिम संस्कार का खर्चा बहुत बड़ा है. उपभोक्ताओं की एक संस्था ने हिसाब लगा कर बताया कि औसत रूप से मरने का खर्चा 2000 से 5000 यूरो के बीच कहीं आता है. यानी करीब 1.2 लाख से 3 लाख रूपये तक.

सिद्धांत के साथ व्यवहारिक ज्ञान

जर्मनी के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 2009 में 1000 लोगों पर पैदा होने वाले बच्चों की तादाद 8.1 थी जबकि मरने वाले लोगों की तादाद 10.4 और जन्म मृत्यु दर के बीच का ये फासला बढ़ रहा है. लाउटेनबाख कहते है, "मौत के बारे में ज्यादा से ज्यादा बात हो रही है. लोग अब ये सोचने में ज्यादा वक्त खर्च कर रहे हैं कि मौत के बाद जिंदगी है."

स्कूल में पढ़ने आए 24 साल के क्रिस्टियान रिष्टर कहते हैं सबसे मुश्किल काम है मृतक के परिजनों को सांत्वना देना. स्कूल में वर्कशॉप के साथ ही एक हाइजिन रूम भी है जहां ये बताया जाता है कि शवों की कैसे सफाई करनी है और कैसे उन्हें रखना है कि वो ज्यादा दिनों तक खराब होने से बच सके. स्कूल में एक लाइब्रेरी भी जहां अंतिम संस्कार के बारे में जानकारी देने वाली किताबें हैं.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः महेश झा

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