अंदरूनी मामलों में बाहरी दखल के खिलाफ हैं रूस और भारत
४ सितम्बर २०१९
कश्मीर पर छिड़े घमासान बीच भारत के प्रधानमंत्री अपने परंपरागत दोस्त रूस की जमीन पर पहुंचे हैं. व्लादिवोस्तोक से मोदी और पुतिन ने साझा संदेश देते हुए कहा कि किसी देश के भीतरी मामलों में बाहरी दखल के वे खिलाफ हैं.
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पूर्वी रूस के व्लादिवोस्तोक शहर पहुंचते ही भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गर्मजोशी से स्वागत किया. पुतिन मोदी को नौसेना के पेट्रोल शिप पर ले गए. शिप के जरिए दोनों नेता तट से 40 किलोमीटर दूर एक शिपयार्ड में पहुंचे. इसके बाद मोदी ने रूसी राष्ट्रपति के साथ साझा प्रेस वार्ता में की. इस दौरान दोनों नेताओं ने एक इशारे में अफगानिस्तान, क्रीमिया और कश्मीर जैसे मामलों पर जवाब दिया. मोदी ने कहा, "रूस और भारत दोनों अफगानिस्तान में एक मजबूत, स्थिर और लोकतांत्रिक सरकार देखना चाहते हैं....भारत और रूस दोनों किसी भी अन्य देश के आंतरिक मामलों में दखल में विश्वास नहीं रखते हैं और इसमें अफगानिस्तान भी शामिल है."
इसके बाद मोदी ने कहा वह मॉस्को के साथ रिश्तों को और ज्यादा बढ़ना चाहते हैं. रूस ने व्लादिस्तोव में तीन दिवसीय फार ईस्ट इकोनोमिक फोरम का आयोजन किया है. प्रशांत महासागर के तट पर बसे व्लादिस्तोव शहर में 2015 से इस फोरम का आयोजन किया जा रहा है. पश्चिम से साथ जारी तनाव के बीच रूस एशियाई देशों के साथ सहयोग बढ़ाना चाहता है.
यह पहला मौका है जब एक भारतीय प्रधानमंत्री व्लादिस्तोव पहुंचे हैं. शिपयार्ड का दौरा करने के बाद प्रेस को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, "यह एक ऐतिहासिक मौका है जो दोनों देशों के मध्य सहयोग को नया बल देगा." इस दौरान रूसी राष्ट्रपति ने कहा, "आज हम एक घोषणा पत्र में दस्तखत करने जा रहे हैं...भविष्य में सहयोग को और ज्यादा बढ़ाने की अपनी इच्छा का इजहार करते हुए."
रूसी एस-400 सिस्टम में क्या खास है?
अमेरिकी प्रतिबंधों की चिंता किए बिना भारत रूस से एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम खरीद रहा है. आखिर ऐसा क्या खास है इसमें.
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बेहतर होते रिश्ते
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ साझा बयान जारी कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि दोनों देश बहुत तेजी से एक दूसरे के करीब आए हैं. उन्होंने कहा, "वक्त के साथ हमारे देशों के संबंध लगातार मजबूत होते गए हैं."
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क्या है एस-400
रूस में तैयार एस-400 एक ऐसा सिस्टम है जो बैलेस्टिक मिसाइलों से बचाव करता है. यह ना सिर्फ दुश्मन की तरफ से दागी जाने वाली मिसाइलों का पता लगाता है बल्कि उन्हें हवा में ही मार गिराने की क्षमता भी रखता है.
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सिर्फ पांच मिनट
एस-400 एक मोबाइल एयर डिफेंस सिस्टम है जिसे पांच मिनट के भीतर तैनात किया जा सकता है. इसमें कई तरह के रडार, ऑटोनोमस डिटेक्शन और टारगेटिंग सिस्टम और एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम लगे हैं.
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100 टारगेट
यह सिस्टम 400 किलोमीटर की दूरी से और 30 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर उड़ने वाले सभी तरह के विमानों और बैलेस्टिक और क्रूज मिसाइलों का पता लगा सकता है. यह एक साथ 100 हवाई टारगेट्स को भांप सकता है.
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अमेरिका की चिंता नहीं
भारत इस सिस्टम के लिए 5 अरब डॉलर तक खर्च करने को तैयार है. हालांकि अमेरिका ने साफ कहा है कि रूस से रक्षा समझौता करने पर भारत को प्रतिबंध झेलने पड़ सकते हैं. लेकिन भारत इससे बेपरवाह दिख रहा है.
भारत की जरूरत
पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों के साथ तनावपूर्ण संबंधों के मद्देनजर भारत इसे अपनी सुरक्षा के लिए अहम मानता है. पाकिस्तान भारत का पुराना प्रतिद्वंद्वी है तो चीन से साथ हजारों किलोमीटर लंबा सीमा विवाद अनसुलझा है.
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और किसके पास?
चीन ने भी रूस से एस-400 सिस्टम की छह बटालियन खरीदने के लिए 2015 में एक समझौता किया था, जिसकी डिलीवरी जनवरी 2018 में शुरू हो गई. तुर्की और सऊदी अरब जैसे देश भी रूस से एस-400 सिस्टम खरीदना चाहते हैं.
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अमेरिकी सिस्टम से बेहतर
अमेरिका निर्मित एफ-35 जैसे लड़ाकू विमान भी इसकी पहुंच से बाहर नहीं हैं. एस-400 एक साथ ऐसे छह लड़ाकू विमानों से निपट सकता है. एस-400 को अमेरिका के टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस सिस्टम से ज्यादा प्रभावी माना जाता है.
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जांचा परखा
यह डिफेंस सिस्टम 2007 से काम कर रहा है और मॉस्को की सुरक्षा में तैनात है. लड़ाई के कई मोर्चों पर इसे परखा जा चुका है. 2015 में रूस ने इसे सीरिया में तैनात किया था. क्रीमिया प्रायद्वीप में भी इसे तैनात किया गया.
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व्लादिस्तोव के फोरम में जापान का प्रधानमंत्री शिंजो आबे, मंगोलिया के राष्ट्रपति खालत्मा बातुलगा और मलेशिया के पीएम महाथिर मोहम्मद भी हिस्सा ले रहे हैं. लेकिन बुधवार को मोदी ने ज्यादातर वक्त मोदी के साथ बिताया. फोरम से पहले रूसी अखबार रोसियिस्काया गाजेटा को दिए इंटरव्यू में मोदी ने पुतिन के बारे में कहा, "हमारे रिश्तों में एक खास केमिस्ट्री है, विशेष सुगमता है. राष्ट्रपति पुतिन के साथ हर मुलाकात में हम ज्यादा करीब आते हैं और हमारे रिश्ता और ऊंचा होता है."
मोदी के रूस दौरे के दौरान क्या क्या होगा, इसका संकेत रूसी राष्ट्रपति कार्यालय के विदेश नीति सहायक यूरी उशाकोव ने भी दिया. उशाकोव ने कहा, "आपसी निवेश को बढ़ाना" और "ऊर्जा सहयोग" एजेंडे में सबसे ऊपर रहेगा. भारत और रूस उत्तरी ध्रुव के आर्कटिक इलाके में मिलकर हाइड्रोकार्बन ऊर्जा के स्रोत भी खोजना चाहते हैं. सदाबहार दोस्ती के बावजूद रूस और भारत के बीच कारोबार अब भी काफी कम है. 2018 में द्विपक्षीय कारोबार करीब 11 अरब डॉलर का था. व्लादिवोस्तोव में भी दोनों देशों की बीच 25 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए.
भारत रक्षा साजो सामान की जरूरत के लिए हमेशा से रूस पर निर्भर रहा है. 2015 में दोनों देशों ने कामकोव केए-226 सैन्य हेलिकॉप्टरों के साझा निर्माण का समझौता किया. सौदे के मुताबिक हेलिकॉप्टर मेक इन इंडिया अभियान के तहत भारत में बनाए जाने थे. लेकिन यह प्रोजेक्ट लगातार पीछे खिसकता रहा है. कामकोव हेलिकॉप्टर बनाने वाली कंपनी रोसटेक को उम्मीद है कि मोदी के इस दौर में हेलिकॉप्टर प्रोजेक्ट आगे बढ़ेगा.
दुनिया में हथियारों से सबसे बड़े खरीदारों में एक भारत अपनी सेना को आधुनिक बनाना चाहता है. वह चाहता है कि ज्यादातर सैन्य सामग्री का निर्माण भारत में ही हो. मार्च 2019 में दोनों देशों ने एके-3 असॉल्ट रायफल भारत में बनाने का फैसला किया. 2018 में भारत ने रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदने के समझौता किया. यह सौदा पांच अरब डॉलर से ज्यादा का है. मिसाइल डिफेंस सिस्टम 2023 में भारत को मिलेगा. भारत ने एस-400 सौदा अमेरिका प्रतिबंधों की चेतावनी के बावजूद किया. 2018 से अब तक भारत रूस से 14.5 अरब डॉलर के हथियार खरीद चुका है.
दुनिया भर में सैन्य खर्च लगातार बढ़ रहा है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की ताजा रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के बड़े देश अब सुरक्षा तकनीकों पर बड़ी राशि खर्च कर रहे हैं. एक नजर आंकड़ों पर.
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सालाना खर्च
स्वीडन की संस्था सिपरी की सालाना रिपोर्ट बताती है कि साल 2018 में दुनिया भर का सैन्य खर्च करीब 1.822 ट्रिलियन डॉलर मतलब रहा. पिछले साल के मुकाबले यह खर्च 2.6 फीसदी तक बढ़ा है.
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सबसे आगे
सैन्य खर्च बढ़ाने वाले देशों में अमेरिका सबसे आगे है. रिपोर्ट कहती है कि 2017 के मुकाबले 2018 में खर्च 4.6 फीसदी तक बढ़ गया. कुल मिलाकर अमेरिका ने करीब 649 अरब डॉलर रक्षा तकनीकों और सेना पर खर्च किया. रिसर्चरों के मुताबिक पिछले सात सालों में हुई यह पहली बढ़ोतरी है, और भविष्य में इसमें इजाफा हो सकता है.
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चीन
अमेरिका के बाद नंबर आता है चीन का. चीन ने अपना सैन्य खर्च पिछले साल के मुकाबले करीब 5 फीसदी तक बढ़ाया है जो तकरीबन 250 अरब डॉलर तक बैठता है. जानकारों के मुताबिक चीन ने लगातार 24वें साल सैन्य खर्च में बढ़ोतरी की है.
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सऊदी अरब
चीन के बाद तीसरे स्थान पर है सऊदी अरब. सऊदी अरब ने तकरीबन 67.6 अरब डॉलर सैन्य खर्च पर लगाए हैं. कुछ समय पहले सिपरी की हथियारों से जुड़ी एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया था कि सऊदी अरब दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आर्म इम्पोर्टर देश बन गया है.
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भारत
इस सूची में चौथे स्थान पर भारत का नाम आता है. साल 2018 में भारत का सैन्य खर्च करीब 66.5 अरब डॉलर के करीब रहा. जानकार मानते हैं कि इस बढ़ोतरी का एक बड़ा कारण पाकिस्तान और चीन के साथ तनाव बढ़ना भी है.
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फ्रांस
पांचवें स्थान पर आने वाले फ्रांस का सैन्य खर्च करीब 63.8 अरब डॉलर रहा. पिछले साल के मुकाबले फ्रांस के सैन्य खर्च में 1.6 फीसदी की कटौती दर्ज की गई है.
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रूस
रूस का सैन्य खर्च तकरीबन 61.4 अरब डॉलर रहा. 2006 के बाद यह पहला मौका है जब रूस सैन्य खर्च करने वाले टॉप पांच देशों में शामिल नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 के बाद से ही देश के सैन्य खर्च में लगातार कटौती हुई है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaTASS/Y. Smityuk
ब्रिटेन
सूची में सातवें स्थान पर बने ब्रिटेन का सैन्य खर्च तकरीबन 50 अरब डॉलर रहा. रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल सैन्य खर्च का 60 फीसदी हिस्सा टॉप 5 देशों से आता है.
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जर्मनी
जर्मनी भी सैन्य खर्च के मामले में ब्रिटेन के काफी नजदीक है. जर्मनी का सैन्य खर्च 49.5 अरब डॉलर के करीब रहा. जर्मनी के सरकारी चैनल एआरडी ने अपने सर्वे में बताया था कि तकरीबन 53 फीसदी जर्मन लोग रक्षा खर्च में बढ़ोतरी का समर्थन नहीं करते हैं.
तस्वीर: Imago/Est/Ost
बाकी देश
नौंवें स्थान पर रहे जापान ने करीब 46.6 अरब डॉलर सैन्य खर्च में लगाए. इसके बाद 43.1 अरब डॉलर के साथ दक्षिण कोरिया का नंबर आता है.