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अंधविश्वास का अंधा खेल, "चमत्कारी" हुआ महुआ का पेड़

आमिर अंसारी
१८ नवम्बर २०१९

मध्य प्रदेश के एक जिले में महुआ के पेड़ को लेकर गहरा अंधविश्वास फैला हुआ है, लोगों का दावा है कि पेड़ को छू लेने से बीमारी दूर हो रही है जो कि बिलकुल गलत है. प्रशासन के लिए इन लोगों को संभालना एक सिरदर्द बन गया है.

Heilbaum und Gerüchte
तस्वीर: DW/S. Suhail

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में एक पेड़ रातों रात "चमत्कारी" हो गया. पिछले दो महीने से यहां लोग सैकड़ों, हजारों और लाखों की तादाद में पहुंच रहे हैं. लोगों का दावा है कि पेड़ से लिपटने और उसे छू लेने से बीमारी ठीक हो रही है. बस एक कोरी अफवाह ने पूरे जिले और शहर को अंधविश्वास में धकेल दिया.

महुआ के पेड़ के पास आने वालों में कोई लकवे का मरीज है, कोई स्ट्रेचर पर आ रहा है, कोई व्हील चेयर पर तो कोई अपने रिश्तेदार के कंधों के सहारे. सबकी एक ही ललक है कि कैसे उनकी बीमारी ठीक हो जाए.

पेड़ से लिपटने के लिए कतार लगी हैतस्वीर: DW/S. Suhail

होशंगाबाद जिले के पिपरिया शहर के नयागांव के जंगल में यह महुआ का पेड़ है और अब इस पेड़ को देखने, उसे छूने और बीमारी ठीक होने की उम्मीद के साथ लोग छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे दूसरे राज्यों से भी लोग यहां चले  आ रहे हैं.

सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में महुआ के इसी पेड़ को लेकर कवरेज के लिए तीन दिन वहां रहने के बाद दिल्ली लौटे टीवी न्यूज पत्रकार सैयद सुहेल ने डॉयचे वेले को बताया, "एक पेड़ के लिए इस तरह की श्रद्धा मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखी, मेरे लिए वहां का माहौल बहुत चौंकाने वाला था. मैं वहां तीन दिन रहा और मेरे रहते हुए वहां एक लाख के करीब लोग आए होंगे. हर कोई इसी उम्मीद के साथ आ रहा था कि किसी तरह से उसे पेड़ को छूने को मिल जाए तो सारी बीमारी दूर हो जाएगी. मेरे लिए ये तस्वीरें बहुत अचरज वाली थी."

अंधविश्वास कैसे फैला

तस्वीर: DW/S. Suhail

दरअसल कुछ महीने पहले एक चरवाहे ने अपने गांव में एक कहानी सुनाई कि इस जंगल से गुजरते वक्त उसे महसूस हुआ कि उसे कोई शक्ति खींच रही है. कुछ देर बाद वह जाकर उस महुए के पेड़ से चिपक गया. उसने गांव वालों से दावा किया कि उसके शरीर में मौजूद जोड़ों का दर्द अचानक गायब हो गया. फिर क्या था, उसकी बात आग की तरह फैल गई, पहले जिला फिर शहर और उसके बाद दूसरे राज्यों तक लोग इस पेड़ के बारे में जान गए.

शुरु में तो गांव वाले ही इस पेड़ के पास आने लगे, गांव वाले पेड़ पर चढ़ाने के लिए पूजा सामग्री लेकर आने लगे, चढ़ावे के लिए कोई प्रसाद लेकर आता, कोई फूल ले आता तो कोई अगरबत्ती और धूप बत्ती.

डीडब्ल्यू से सैयद सुहेल ने बताया, "पहले एक शख्स ने दावा किया और फिर उसके बाद एक दो और लोगों ने भी ऐसा दावा किया. सोशल मीडिया के इस जमाने में बात फैलने में देर नहीं लगी और धीरे-धीरे वहां लोगों का मेला लगने लगा. एक छोटे से गांव से शुरु हुआ अंधविश्वास दूसरे शहर और राज्य तक फैल गया. हैरानी की बात यह है कि वहां ऐसे भी लोग आ रहे हैं जो शिक्षित हैं "

पेड़ के पास लोग चढ़ावा भी चढ़ा रहे हैंतस्वीर: DW/S. Suhail

वनविभाग ने क्या किया?

मामला जब शुरू हुआ तो वन विभाग ने इसे सामान्य तौर पर लिया लेकिन जब भीड़ बढ़ने लगी तो उसके भी हाथ-पांव फूलने लगे. स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने पेड़ तक पहुंचने से लोगों को रोकने के लिए बैरिकेड लगाए और लोगों को यह बताने की कोशिश की गई कि यह सिर्फ अंधविश्वास है. हालांकि यह क्षेत्र टाइगर रिजर्व का बफर जोन है इसलिए यहां बाघ आम तौर पर नहीं आते लेकिन इतनी भीड़ जंगल के इकोसिस्टम के लिए संकट पैदा करने लगी.

पिपरिया के एसडीएम मदन सिंह रघुवंशी के मुताबिक, "पेड़ को छूने से कोई लाभ नहीं हो रहा है. यह बस एक अफवाह है. जंगल में जो भी लोग आ रहे हैं सिर्फ अंधविश्वास के कारण आ रहे हैं. जंगल में भारी संख्या में लोगों के आने से पर्यावरण और जानवरों के साथ-साथ इंसान की जान को भी खतरा है. वहां भगदड़ मच सकती है या कोई दुर्घटना घट सकती है. इन सभी बातों को ध्यान में रखकर हमने जंगल में धारा 144 लागू कर दिया है."

एसडीएम रघुवंशी ने बताया कि इसके बावजूद कुछ लोग ऐसे हैं जो कानून को तोड़कर पेड़ तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. उनके मुताबिक रविवार के दिन लोग यहां भारी संख्या में पहुंचते हैं और पूरा इलाका किसी मेले की तरह हो जाता है. प्रशासन का कहना है कि अगरबत्ती और धूपबत्ती जलाने से पेड़ और पौधों को नुकसान तो हो ही रहा है साथ ही पर्यावरण दूषित हो रहा है.

सैयद सुहेल कहते हैं कि उनके रहते तक एक भी ऐसा मरीज नहीं मिला जो यह दावा कर सके कि उसने पेड़े को छुआ और वह ठीक हो गया. वहीं स्थानीय प्रशासन का कहना है कि उनकी पहली चुनौती भीड़ को नियंत्रित करना है और फिर उसके बाद अफवाह फैलाने वालों की पहचान कर उनके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी.

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