अगले साल जब अमेरिका अफगान शहर कंधार में बिजली के लिए पैसे देना बंद कर देगा, तो शहर की बिजली गुल हो जाएगी. फैक्ट्रियों का शोर रुक जाएगा और तब हो सकता है कि तालिबान की शक्ति इलाके में और बढ़ जाए.
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कंधार शहर कभी मुल्ला उमर का गढ़ हुआ करता था. इस इलाके में अभी भी तालिबान का खासा रुतबा है और अमेरिका का ध्यान खास तौर पर इस शहर पर है. लेकिन शहर में नियमित बिजली सप्लाई नहीं होती है. फिलहाल अमेरिका यहां की बिजली के लिए हर महीने 10 लाख डॉलर की सब्सिडी दे रहा है. अगले साल सितंबर में यह सब्सिडी बंद हो जाएगी. तब भारी मुश्किल हो सकती है.
बिजली कंपनी अफगानिस्तान ब्रेश्ना शेरकात के मुताबिक कंधार प्रांत में करीब 12 मेगावॉट बिजली की सप्लाई होती है, जिनमें से आधे पर तालिबान का कब्जा है. शहर के एक कारोबारी फुज्ले हक का कहना है, "कंधार में करीब 130 फैक्ट्रियां काम कर रही हैं. इसकी बिजली का जिम्मा अमेरिकी उठा रहे हैं. अगर अमेरिकियों ने इसके लिए पैसा देना बंद कर दिया, तो 6000 कर्मचारियों की नौकरी चली जाएगी." उनको चिंता है, "ये जवान लड़के हैं. और नौकरी जाने के बाद वे तालिबान या दूसरे अपराध की तरफ मुड़ सकते हैं."
अमेरिकी स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल फॉर अफगानिस्तान कंस्ट्रक्शन (सिगार) के प्रवक्ता एलेक्स ब्रोश्टाइन-मॉफली का कहना है कि इस इलाके में बिजली का जाना बहुत बड़ा संकट ला सकता है, "अगर कंधार के बिजली सप्लाई से समझौता करना पड़ा, तो इतने सालों में हुई प्रगति के फिर से खत्म होने का खतरा है."
कंधार का ऐतिहासिक महत्व है. सिकंदर महान ने भी अपने विश्व विजय के दौरान यहां डेरा डाला था. लेकिन आधुनिक कंधार का चेहरा अलग है. यहां सिर्फ 30 फीसदी लोगों के पास बिजली है. यहां विदेशी फौजों की तैनाती के वक्त बिजली के बुनियादी ढांचे को बनाने का काम शुरू हुआ लेकिन यह पूरा नहीं हो पाया. हाल की एक रिपोर्ट में अमेरिकी अधिकारी जॉन सॉपको ने लिखा, "लगता है कि अफगान सरकार को निरंतर बिजली की मदद देने के लिए अमेरिका के पास कोई योजना नहीं है."
इसके विपरीत अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन का दावा है कि 2002 के मुकाबले अफगानिस्तान में पांचगुना ज्यादा जगहों पर बिजली है. अमेरिका इस साल के आखिर में अपनी सेनाओं को अफगानिस्तान से हटा रहा है.
उधर, अफगान सरकार का कहना है कि वह कंधार प्रांत में बिजली उत्पादन का खर्च नहीं उठा सकती है. शहर में अभी से डीजल की राशनिंग हो रही है और बिजली का संकट साफ दिख रहा है. तालिबान के दबदबे की वजह से यहां राजस्व की भी सही उगाही नहीं हो पा रही है और कई इलाकों में तालिबान बिजली कर वसूल रहे हैं.
एजेए/एमजे (रॉयटर्स)
जंग और जिंदगी के बीच अफगानिस्तान
पुरस्कृत फोटोग्राफर मजीद सईदी की तस्वीरें सालों से जंग की आग में झुलसते अफगानिस्तान के हालात दिखाती हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
नशे में डूबा बचपन
अफगानिस्तान में नशा एक बड़ी समस्या है. बचपन से ही अफीम की लत लगने का खतरा रहता है. नशे के शिकार बच्चों के कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यह संख्या करीब तीन लाख है.
तस्वीर: Majid Saeedi
त्रासदी के खिलौने
काबुल में दो छोटी लड़कियां कृत्रिम हाथ से खेल रही हैं. इस तस्वीर के लिए मजीद सईदी को कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.
तस्वीर: Majid Saeedi
मुझे कहना है
मजीद सईदी ने 16 साल की उम्र में फोटोग्राफी करना शुरू किया. तब से वह लोगों के जीवन के संघर्ष को अपनी तस्वीरों में दिखाते आए हैं. उनकी तस्वीरें श्पीगल, वॉशिंगटन पोस्ट और न्यूयॉर्क टाइम्स जैसी नामचीन पत्रिकाओं में छप चुकी हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
अफगान बच्चे
दसियों सालों से अफगान जंग के साए में जी रहे हैं. सईदी की तस्वीरें उनकी जिंदगी से रूबरू कराती हैं, जैसे यह अफगान बच्चा जो एक धमाके में अपने हाथ खो बैठा.
तस्वीर: Majid Saeedi
दास्तां सुनाते खंडहर
अफगानिस्तान के अतीत की कहानी सिर्फ लोग ही नहीं, देश भर में इमारतों के खंडहर भी सुनाते हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
सावधान!
काबुल में हर सुबह सैनिकों की ट्रेनिंग होती है. जर्मन सेना भी अफगान सेना की ट्रेनिंग में मदद कर रही है. मकसद है कि जब 2014 के अंत में जर्मन सेना अफगानिस्तान से वापसी करे तो अफगान सेना परिस्थितियों का खुद मुकाबला कर सके.
तस्वीर: Majid Saeedi
मुश्किल बचपन
अफगानिस्तान में अच्छी शिक्षा व्यवस्था की भी कमी है. कई बच्चों को परिवार को सहारा देने के लिए बीच में ही पढ़ाई छोड़ कर काम में लगना पड़ता है.
तस्वीर: Majid Saeedi
पढ़ाई मयस्सर नहीं
1979 के बाद से देश में शिक्षा व्यवस्था पर बेहद खराब असर पड़ा. जर्मन सरकार द्वारा 2011 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार अफगानिस्तान के 72 फीसदी पुरुष और 93 फीसदी महिलाओं को कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली है.
तस्वीर: Majid Saeedi
गुड़ियां बनाते हाथ
एक मलेशियाई गैर सरकारी संगठन द्वारा दिए जा रहे प्रशिक्षण कार्यक्रम में लड़कियां गुड़ियां बनाना सीख रही हैं. मकसद हैं उन्हें आत्मनिर्भर बनाना.
तस्वीर: Majid Saeedi
तालिबान का बदला
2011 में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद तालिबान हमले में चार लोग मारे गए और 36 घायल हुए. यह तस्वीर इनमें से दो पीड़ितों की है.
तस्वीर: Majid Saeedi
अफगान खेल
अफगानिस्तान में बॉडी बिल्डिंग को पुरुष बेहद पसंद करते हैं. कसरत के बाद आराम करते दो नौजवान.
तस्वीर: Majid Saeedi
जंग की फसल
पिछले तीस सालों ने अफगान जीवन को बहुत प्रभावित किया है. यहां के खेत और खलिहान भी जंग के शिकार हुए हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
मदरसे
2011 की तस्वीर. कंधार के एक मदरसे में पढ़ते बच्चे.
तस्वीर: Majid Saeedi
मारने को तैयार
अफगानिस्तान में कुत्तों की आम लड़ाई लोकप्रिय है. कुत्तों को मुकाबले में लड़ने और मारने का प्रशिक्षण दिया जाता है.
तस्वीर: Majid Saeedi
अलग थलग
मनोवैज्ञानिक बीमारियों से जूझ रहे लोग बाकियों से अलग कई बार आमानवीय परिस्थितियों में रखे जाते हैं. हेरात शहर के एक अस्पताल का दृश्य.
तस्वीर: Majid Saeedi
बदकिस्मती
अकरम ने अपने दोनो हाथ खो दिए. सोने से पहले वह अपने दोनों कृत्रिम हाथ निकाल कर अलग रख देता है. उसके जैसे कई और बच्चे हैं जो ऐसी बदनसीबी को झेल रहे हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
मकसद
मजीद सईदी अपनी तस्वीरों के जरिए समाज के बारे में बहुत सी जरूरी बातें कहने की कोशिश करते हैं. पिछले दिनों पेरिस में उन्हें 2014 के लूकास डोलेगा पुरस्कार से सम्मानित किया गया.