ट्रंप जैसा दोस्त हो, तो दुश्मन की क्या जरूरत है. डॉनल्ड ट्रंप के फैसलों ने अमेरिका और यूरोप की 73 साल पुरानी दोस्ती में गांठ लगा दी है. भारत का भी हाल अलग नहीं है.
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82 फीसदी जर्मनों का मानना है कि डॉनल्ड ट्रंप का अमेरिका अब भरोसमंद पार्टनर नहीं रह गया है. जर्मनी के सरकारी ब्रॉडकास्टर जेडडीएफ के सर्वे में यह बात सामने आई है. जेडडीएफ ने साप्ताहिक शो पॉलिटबारोमीटर के लिए यह सर्वेक्षण कराया.
सर्वे में सिर्फ 14 फीसदी लोगों ने माना कि अमेरिका अब भी जर्मनी का भरोसेमंद साझेदार है. चार फीसदी लोगों ने "मुझे नहीं मालूम" कहते हुए जवाब दिया. अमेरिका और जर्मनी 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद से अहम साझेदार हैं. लेकिन ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद यह भरोसा टूटता दिख रहा है.
ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल के 16 महीने बाद हुए इस सर्वे में 94 फीसदी जर्मनों ने कहा कि अमेरिका के बदले रुख के बाद अब यूरोपीय संघ को और ज्यादा अंदरूनी सहयोग की जरूरत है. लेकिन सिर्फ 20 फीसदी लोगों को लगता है कि यूरोपीय संघ सफलतापूर्वक ऐसा कर सकेगा. 26 फीसदी को आशंका है कि यूरोपीय संघ के बीच आपसी सहयोग और कमजोर होगा.
ताकतवर लोगों की सूची में बड़ा उलटफेर
अमेरिका का राष्ट्रपति अब दुनिया का सबसे ताकतवर शख्स नहीं है. ताकत और प्रभाव का सिक्का जब चीन जा चुका है. देखिए फोर्ब्स की 2018 के टॉप-10 ताकतवर लोगों की लिस्ट.
तस्वीर: Reuters/Jason Lee
10. लैरी पेज
गूगल के सहसंस्थापक
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09. नरेंद्र मोदी
भारत के प्रधानमंत्री
तस्वीर: picture-alliance/Zumapress
08. मोहम्मद बिन सलमान अल सऊद
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस
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07. बिल गेट्स
माइक्रोसॉफ्ट और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के संस्थापक
तस्वीर: ARD
06. पोप फ्रांसिस
कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च धर्म गुरु
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05. जेफ बेजोस
एमेजॉन के संस्थापक
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04. अंगेला मैर्केल
जर्मनी की चांसलर
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Kappeler
03. डॉनल्ड ट्रंप
अमेरिका के राष्ट्रपति
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Loeb
02. व्लादिमीर पुतिन
रूस के राष्ट्रपति
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01. शी जिनपिंग
चीन के राष्ट्रपति
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कहां जाए जर्मनी?
सर्वे में हिस्सा लेने वाले 36 फीसदी लोगों ने रूस को जर्मनी का मजबूत सहयोगी कहा. लेकिन 58 फीसदी लोग विदेश नीति के मामलों में रूस को अविश्सनीय पार्टनर मानते हैं. 43 फीसदी लोगों को लगता है कि नया मजबूत साझेदार चीन हो सकता है. इतने ही लोग बीजिंग के साथ साझेदारी को लेकर चिंता जता रहे हैं.
रूस पर सबसे ज्यादा भरोसा जताने वालों में जर्मनी की दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी के समर्थक सबसे आगे हैं. एएफडी के 61 फीसदी समर्थकों ने क्रेमलिन को जर्मनी का सबसे बढ़िया विदेशी साझेदार बताया. लेफ्ट पार्टी के 45 फीसदी लोगों की ऐसी ही राय है. लेकिन ग्रीन पार्टी और मुख्य धारा की तीन बड़ी पार्टियों के ज्यादातर समर्थक इसके बिल्कुल खिलाफ हैं.
अंतरराष्ट्रीय राजनीति बड़ी तेजी से करवट ले रही है. ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिका धीरे धीरे अकेला पड़ता जा रहा है. पेरिस में हुई जलवायु संधि से बाहर निकलना, चीन और यूरोप के साथ सीमा शुल्क विवाद और ईरान डील से बाहर निकलना दुनिया भर के देशों को परेशान कर रहा है. ईरान डील और नाटो के बजट को लेकर ट्रंप के रुख से यूरोपीय साझेदार नाराज हो चुके हैं.
यही वजह है कि जर्मनी और रूस फिर से रिश्तों में गर्माहट लाना चाह रहे हैं. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक बार फिर रूस के साथ ठंडे पड़ते संबंधों में नई जान फूंकने की कोशिश कर रहे हैं. ट्रंप के रुख से आहत देश अब चीन और रूस की तरफ झांक रहे हैं. बीजिंग और मॉस्को दुनिया को यह यकीन दिलाने की भरसक कोशिश करेंगे कि दुनिया अमेरिका के बिना भी चल सकती है.
इन देशों पर अमेरिका ने लगा रखे हैं प्रतिबंध
अमेरिका ने इन देशों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. दरअसल ये प्रतिबंध सरकारों का अस्वीकृति जाहिर करने का तरीका है. बड़े मुल्क अपनी विदेश नीति में आर्थिक प्रतिबंधों को काफी तवज्जो देते हैं क्योंकि युद्ध महंगे होते हैं.
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उत्तर कोरिया
अमेरिका प्रतिबंधों का सबसे बुरा असर अगर किसी पर हुआ है तो वह है उत्तर कोरिया. उत्तर कोरिया और अमेरिका की तकरार के कारण 1950 के दशक में हुए कोरियाई युद्ध में छिपे हैं. उस दौरान अमेरिका ने दक्षिण कोरिया के लिए समर्थन दिया था.
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आइवरी कोस्ट
अमेरिकी सरकार ने अफ्रीकी मुल्क आइवरी कोस्ट पर मानवाधिकार हनन के चलते प्रतिबंध लगाए हैं. साल 1970 तक आइवरी कोस्ट की गिनती अफ्रीका की मजबूत अर्थव्यवस्थाओं में होती थी. लेकिन साल 1999 में देश में गृहयुद्ध हो गया. इसके बाद मानवाधिकार हनन के अनेकों मामले सामने आए.
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क्यूबा
अमेरिका और क्यूबा के बीच का मतभेद किसी से छिपे नहीं है. साल 1959 में क्यूबा का शासन फिदेल कास्त्रो ने संभाल लिया था. कास्त्रो के पहले जो सत्ता देश में थी वह अमेरिका को समर्थन करती थी. लेकिन कम्युनिस्ट कास्त्रो के सत्ता में आने के बाद अमेरिका ने क्यूबा पर प्रतिबंध लगा दिए. लेकिन पड़ोसी होने के नाते मानवीय आधारों पर कुछ छूट मिली है.
ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों की चर्चा आज भी होती है. 1978-1979 की ईरान क्रांति में पश्चिमी मुल्कों के साथ दोस्ती रखने वाले शाह की सत्ता छिन गई थी. इसके अलावा अन्य कई मसलों ने भी अमेरिका और ईरान के बीच खाई को गहरा दिया.
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म्यांमार
एशियाई मुल्क म्यामांर उन देशों से एक है जिस पर अमेरिका ने मानवीय आधारों के चलते प्रतिबंध लगा रखा है. इस पर प्रतिबंध लगाने के कारण राजनीतिक और मानवाधिकार से जुड़े हुए हैं.