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अगली पीढ़ी की चुनौती है जर्मन एकीकरण

काय अलेक्जांडर शॉल्स
२ अक्टूबर २०१९

क्या बर्लिन दीवार के गिरने के बाद के 30 सालों में जर्मन एकीकरण पूरा हो गया? डॉयचे वेले के काय अलेक्जांडर शॉल्स ऐसा नहीं मानते. उनका कहना है कि युवाओं के मामले में एकीकरण अभी बहुत बड़ी चुनौती है.

Deutschland Berlin Tag der deutschen Einheit 1990
तस्वीर: Imago/Gueffroy

जर्मनी का विभाजन बहुत से परिवारों को बांट गया था. भाई बहन अलग हो गए थे, बच्चों के चाचा चाची देश के दूसरे हिस्से में बसे थे. 1961 में दीवार बनने से परिवारों में छटपटाहट मची थी. उस समय विभाजन को वयस्क के रूप में झेलने वाले बहुत से लोग अब जीवित नहीं हैं या बहुत ही बूढ़े हैं. उनके साथ वह पीढ़ी खत्म हो रही है जिनके लिए एककीकरण एक निजी मामला भी था. उनके लिए विभाजन ऐसी तकलीफदेह भूल थी जिसे सुधारना था.

इसलिए पश्चिम में रहने वाले लोग पूरब में रहने वाले अपने रिश्तेदारों की मदद करने को तत्पर थे. वे नियमित रूप से अपने रिश्तेदारों को कॉफी, फल , कपड़े और अच्छे चॉकलेट भेजते थे. हालांकि इस पीढ़ी के लोगों के बच्चों के लिए 1970 और 80 के दशक में विभाजन सामान्य हकीकत थी. वे या तो पश्चिम जर्मनी में या पूर्वी जर्मनी में पल बढ़ रहे थे. यानि एक दूसरे से पूरी तरह विपरीत दुनिया में.  

तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Kneffel

विभाजन का कमजोर होता पहलू

पश्चिमी जर्मनी में 1968 के छात्र आंदोलन के दौरान युवा लोग अचानक अपने माता पिता से नाजी दौर में उनकी भूमिका के बारे में सवाल करने लगे. राष्ट्र और पितृभूमि जैसे शब्द संकीर्ण मानसिकता वाले और ओछे समझे जाने लगे. लोग अंतरराष्ट्रीयता की बात करने लगे. यूरोपीय संघ ने दमित राष्ट्रीय जवाबदेही से बाहर निकलने का रास्ता दिया, लेकिन पूरब से चचेरे भाई और बहन अपने तानाशाही रोजमर्रे में कहीं दूर जी रहे थे.

फिर आई 1989 की क्रांति, दीवार का गिरना और एक साल बाद जर्मन एकीकरण. हालांकि जब पार्टी का जोश खत्म हुआ तो पूरब का महत्व भी खत्म हो गया. अभी भी 20 फीसदी पश्चिम जर्मन निवासी कभी पूर्वी इलाकों में नहीं गए हैं. हालांकि 1989 की क्रांति के बाद सैकड़ों अरब यूरो पूरब के विकास में गया, लेकिन ज्यादातर लोगों के लिए एकीकरण का मतलब बेरोजगारी था. करीब 50 फीसदी लोगों की नौकरी चली गई. पश्चिम के सहायता पैकेटों की सोंधी खुशबू प्रतिद्वंद्वी समाज की हकीकत में बदल गई. भविष्य की रंगीन तस्वीर जल्द ही धूमिल हो गई. जो प्रतिस्पर्धा में ठहर नहीं पाया वह पीछे हट गया और जीडीआर को याद करने लगा.

एकता की प्रक्रिया में ठहराव

तस्वीर: Reuters/Hannibal

जर्मनी के दोनों हिस्सों के साझा विकास में राजनीतिक दलों की भी दिलचस्पी गिरती गई. हालांकि हर साल आर्थिक विकास के आंकड़े पेश किए जाते कि सब कुछ बेहतर हो रहा है. यह सच भी था, लेकिन शुरुआत के दिनों में हुई गलतियों और उसका शिकार हुए लोगों के बारे में कोई बात नहीं करता. पश्चिम में कोई सुनने को तैयार भी नहीं था, वे पूरब के लोगों को शिकायत करने वाला समझने लगे. हालांकि पूरब के लोग बस इस बारे में बात करना चाहते थे कि उन्हें अगली सुबह एक दूसरे देश में जग कर कैसा लगा था, नए नियमों और नए कानूनों के साथ.

तकनीकी तौर पर जीडीआर पश्चिम जर्मनी में शामिल हो गया था, देश को भंग कर दिया गया था. दीवार बनने के समय वाली और दीवार के गिरने के समय वाली दोनों पीढ़ियों ने बहुत कुछ देखा है, बहुत कुछ सहा है. लेकिन इतिहास साक्षी है, कि जिस पर बात ना हो, उसे भुलाना आसान नहीं होता. वह पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है. दक्षिणपंथी पॉपुलिस्ट पार्टी एएफडी ने इसे समझा है और अपने लिए इस्तेमाल किया है. पूरब में चुनावों के दौरान उनका नारा था, राजनीतिक परिवर्तन को पूरा करो. 1989 की याद दिलाना उनके काम आया है और चुनावों में उन्हें भारी समर्थन मिला, खासकर युवाओं में.

कैसे बने भावी रिश्तों का आधार

अभी भी पूरब और पश्चिम की एकता, राजनीतिक मोड़ की कहानी का समापन नहीं हुआ है. जिस पर माता पिता या दादा दादी की पीढ़ी बातचीत नहीं कर सकती या करना नहीं चाहती, वह अब बच्चों और पोतों पोतियों की जिम्मेदारी है. वे इस विरासत को कैसे लेते हैं उसी पर पूरब और पश्चिम के जर्मनों के भावी रिश्तों का आधार बनेगा. तीस साल पहले हुई शांतिपूर्ण क्रांति और उसके बाद देश का एकीकरण जर्मनों के लिए खुशनुमा क्षण थे. उस इतिहास को बताते रहना होगा.

दूसरी ओर उस समय की समस्याओं पर बात करने के लिए हिम्मत और राजनैतिक सदिच्छा की जरूरत है. बहुत बुरा होगा यदि इतिहास के इस अध्याय को उन लोगों के लिए छोड़ दिया जाए जो इसका इस्तेमाल राजनीतिक सत्ता संघर्ष के लिए करना चाहते हैं. देश के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से को एक दूसरे से अलग करने की कोशिशों को कामयाब नहीं होने देना चाहिए.

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