अमेरिकी लोगों को लगता है कि उनका देश अगले दस साल में एक इतिहास रचेगा. एक सर्वे के मुताबिक उन्हें उम्मीद है कि 2030 तक कोई महिला देश की राष्ट्रपति बन सकती है. मौजूदा उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को लोग अहम दावेदार समझते हैं.
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गैलप के सर्वे में हिस्सा लेने वाले 90 फीसदी अमेरिकी लोगों की राय है कि आने वाले दशक में कोई महिला उनके देश का नेतृत्व कर सकती है. हालिया राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की जीत के बाद कमला हैरिस के रूप में किसी महिला ने पहली बार अमेरिका में उपराष्ट्रपति का पद संभाला है. ऐसे में बहुत से लोग इस बात की संभावना देखते हैं कि वह 2024 के चुनाव में अपनी पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हो सकती हैं.
गैलप ने यह सर्वे कुल 74 देशों में कराया और महिला नेतृत्व को लेकर लोगों की राय जानी. इनमें सबसे ज्यादा अमेरिका के लोगों ने कहा कि उन्हें अगले दस साल में किसी महिला के राष्ट्रपति बनने की उम्मीद है. वहीं सर्वे में शामिल तीन देशों मौरितानिया, बेलारूस और श्रीलंका के लोगों में ज्यादातर ने कहा कि उनके देश में आने वाले सालों में महिला राष्ट्रपति बनने की संभावना वे नहीं देखते. यह सर्वे 2019 से 2020 के बीच कराया गया और इसे हाल में विश्व महिला दिवस के मौके पर जारी किया गया.
कमला हैरिस से उम्मीदें
महिलाओं को लेकर संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ 22 देशों में अब तक महिलाएं राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री पद पर पहुंची हैं जबकि 119 देशों में कभी महिलाओं ने देश की बागडोर नहीं संभाली. वहीं दुनिया भर की संसदों में महिलाओं के पास औसतन सिर्फ एक चौथाई सीटें हैं.
अपनी जड़ों से कितना जुड़ी हैं कमला हैरिस
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महिला आधिकार कार्यकर्ता मानते हैं कि अमेरिका में बीते साल कमला हैरिस की कामयाबी के बाद महिला नेतृत्व और उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व की संभावनाओं को बल मिला है. उन्हें उम्मीद है कि इससे युवा महिला में नौकरियों में भी ऊंचे पदों पर पहुंचने की उम्मीदें मजबूत होंगी.
कैलिफोर्निया में युवा महिलाओं के राजनीतिक नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही संस्था इग्नाइट की कार्यकारी निदेशक सारा गुलेर्मो कहती हैं, "हम मानते हैं कि (हैरिस) राष्ट्रपति पद के लिए मैदान में होंगी, जल्दी, बहुत जल्दी." वह कमला हैरिस के राष्ट्रपति बनने को बहुत बड़ा बदलाव मानती हैं. उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "यह बहुत ही बड़ी बात है. इससे सिर्फ छोटी छोटी लड़कियों को प्रेरणा नहीं मिलती है, बल्कि छोटे छोटे लड़कों को भी समझ आता है कि सर्वोच्च नेतृत्व के लिए महिला या पुरूष होने मायने नहीं रखता."
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भारतीय मूल के नेता जो विश्व भर में छाए
अब तक कई भारतीय मूल के लोग दुनिया भर की सरकारों में तमाम अहम पद संभाल चुके हैं. अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा से लेकर मॉरीशस, फिजी, गुयाना जैसे देशों में भी भारतवंशी नेताओं का लंबा इतिहास रहा है.
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ऋषि सुनक
ऋषि सुनक ब्रिटेन के पहले प्रधानमंत्री बन रहे हैं जो भारतीय मूल के हैं. कंजरवेटिव पार्टी के सदस्य ऋषि सुनक फरवरी 2020 से ब्रिटिश कैबिनेट में वित्त मंत्री रहे हैं. इसके पहले वह ट्रेजरी के मुख्य सचिव थे. ऋषि सुनक 2015 में रिचमंड (यॉर्क) से संसद सदस्य के रूप में चुने गए थे. सुनक भारत की कंपनी इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति और लेखिका सुधा मूर्ति के दामाद हैं.
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कमला हैरिस
अमेरिका में नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में डेमोक्रैट पार्टी की ओर से उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार चुनी गई हैं कमला हैरिस. वह डेमोक्रैट पार्टी की ओर से अमेरिकी कांग्रेस में पांच सीटों पर काबिज भारतीय मूल के सीनेटरों में से एक हैं. कमला हैरिस की मां का नाम श्यामला गोपालन है. किशोरावस्था तक कमला हैरिस अपनी छोटी बहन माया हैरिस के साथ अकसर तमिलनाडु के अपने ननिहाल में आया करती थीं.
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निक्की हेली
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की दूत रह चुकीं निक्की हेली का नाम बचपन में निमरता निक्की रंधावा था. 2016 में अमेरिका के राष्ट्रपति बने डॉनल्ड ट्रंप के प्रशासन में जगह पाने वाली वह भारतीय मूल की पहली राजनेता बनीं. इससे पहले वह दो बार साउथ कैरोलाइना की गवर्नर रह चुकी थीं. उनके पिता अजीत सिंह रंधावा और मां राजकौर रंधावा का संबंध पंजाब के अमृतसर जिले से है. शादी के बाद उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया.
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बॉबी जिंदल
भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक के रूप में सबसे पहले बॉबी जिंदल लुइजियाना के गवर्नर बने थे. इस तरह निक्की हेली अमेरिका में किसी राज्य की गवर्नर बनने वाली भारतीय मूल की दूसरी अमेरिकी नागरिक हुईं. जिंदल एक बार रिपब्लिकन पार्टी की ओर से अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए दावेदारी भी पेश कर चुके हैं. उनके माता पिता भारत से अमेरिका जाकर बसे थे.
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प्रीति पटेल
ब्रिटेन की पहली भारतीय मूल की गृह मंत्री बनीं पटेल हिंदू गुजराती प्रवासियों के परिवार से आती हैं. माता-पिता पहले अफ्रीका के युगांडा जाकर बसे थे जहां उनका जन्म हुआ. 1970 के दशक में उनका परिवार ब्रिटेन आकर बसा. 2010 में कंजर्वेटिव पार्टी से चुनाव जीतकर ब्रिटिश संसद पहुंची प्रीति पटेल खुद बाहर से आकर देश में शरण लेने के इच्छुकों के प्रति काफी सख्त रवैया रखती हैं.
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अनीता आनंद
कनाडा की कैबिनेट में भारतीय मूल के लोगों की भरमार है. पब्लिक सर्विसेज एंड प्रोक्योरमेंट की केंद्रीय मंत्री अनीता इंदिरा आनंद कनाडा की कैबिनेट में शामिल होने वाली पहली हिंदू महिला हैं. इससे पहले वह टोरंटो विश्वविद्यालय में कानून की प्रोफेसर थीं. भारत से आने वाले इनके माता पिता मेडिकल पेशे से जुड़े रहे. मां स्वर्गीया सरोज राम अमृतसर से और पिता एसवी आनंद तमिलनाडु से आते हैं.
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नवदीप बैंस
ट्रूडो कैबिनेट में साइंस, इनोवेशन एंड इंडस्ट्री मंत्री नवदीप बैंस कनाडा के ओंटारियो प्रांत में जन्मे थे. सिख धर्म के मानने वाले इनके माता पिता भारत से वहां जाकर बसे थे. 2004 में केवल 26 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला चुनाव जीता और कनाडा की संसद में लिबरल पार्टी के सबसे युवा सांसद बने. अपने राजनीतिक करियर में बैंस ने हमेशा इनोवेशन को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देने की दिशा में काम किया है.
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हरजीत सज्जन
भारत के पंजाब के होशियारपुर में जन्मे हरजीत सज्जन इस समय कनाडा के रक्षा मंत्री हैं. कनाडा की सेना में लेफ्टिनेंट-कर्नल के रूप में सेवा दे चुके सज्जन इससे पहले 11 सालों तक पुलिस विभाग में भी काम कर चुके हैं. पंजाब में ही जन्मे नेता हरबंस सिंह धालीवाल 1997 में कनाडा की केंद्रीय कैबिनेट के सदस्य बनने वाले पहले भारतीय-कनाडाई थे.
तस्वीर: Reuters/C. Wattie
महेन्द्र चौधरी
दक्षिणी प्रशांत महासागर क्षेत्र में बसे द्वीपीय देश फिजी में भारतीय मूल के लोग ना केवल सांसद या मंत्री बल्कि देश के प्रधानमंत्री तक बने हैं. यहां की 38 फीसदी आबादी भारतीय मूल की ही है. लेबर पार्टी के नेता चौधरी को 1999 में देश का प्रधानमंत्री चुना गया. लेकिन एक साल के बाद ही एक सैन्य तख्तापलट से सरकार गिर गई. एक बार फिर 2006 के संसदीय चुनाव जीत कर वह वित्त मंत्री बने.
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लियो वरादकर
2017 में आयरलैंड के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने लियो वरादकर कंजरवेटिव फिन गेल पार्टी से आते हैं. डब्लिन में पैदा हुए और पेशे से डॉक्टर वरादकर 2007 में पहली बार सांसद बने. 2015 में समलैंगिक विवाह पर आयरलैंड में हुए जनमत संग्रह के दौरान उन्होंने सार्वजनिक तौर पर घोषित किया कि वे खुद समलैंगिक हैं. उनके पिता अशोक मुंबई से आए एक डॉक्टर थे और आयरलैंड में मिरियम नाम की एक नर्स के साथ शादी कर वहीं बस गए.
तस्वीर: DW/G. Reilly
एंतोनियो कॉस्ता
पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंतोनियो कॉस्ता भारत में गोवा से ताल्लुक रखते हैं. 2017 में वह प्रवासी भारतीय सम्मान से नवाजे गए थे. खुद सोशलिस्ट विचारधारा के समर्थन कॉस्ता ज्यादा से ज्यादा प्रवासियों के अपने देश में आने का स्वागत करते हैं. पहले उनके पिता गोआ से मोजाम्बिक गए और फिर उनका परिवार पुर्तगाल में बसा.
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लैंगिक समानता की जद्दोजहद
56 साल की हैरिस ने वाकई इतिहास रचा है. वह पहली अश्वेत अमेरिकी और पहली एशियाई अमेरिकी महिला हैं जो इतने बड़े पद तक पहुंची हैं. उन्हें 2024 में अमेरिकी राष्ट्रपति पद की स्वाभाविक उम्मीदवार माना जा रहा है क्योंकि मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन 78 साल के हैं और पहले ही 2024 में चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं.
वैसे गैलप के ताजा सर्वे से कुछ दिन पहले ही एक वैश्विक रिपोर्ट में चिंता जताई गई कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ अहम पदों पर महिलाओं की नियुक्ति के बावजूद दुनिया राजनीतिक प्रतिनिधित्व के क्षेत्र में समानता से बहुत पीछे है. रिपोर्ट में कुल 129 देशों की पड़ताल की गई जिनमें से आधे देश 2030 तक अहम क्षेत्रों में लैंगिक समानता की दिशा में ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहे हैं.
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ऊंचे पदों पर महिलाओं को बराबरी हासिल करने में लग सकते हैं 130 साल
यूएन वीमेन की मुखिया फुमजिल लांबो-नकूका का कहना है कि महिला नेताओं की संख्या बढ़ने से महामारी के बाद दुनिया को और मजबूत बनाने में मदद मिलेगी. डालिए एक नजर नेतृत्व की भूमिकाओं में महिलाओं की उपस्थिति की तस्वीर पर.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Medina
महिला प्रधानमंत्री
इस समय दुनिया में सिर्फ 22 ऐसे देश हैं जहां चुनी हुई प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति महिला है. ऐसे देशों की सूची में हाल ही में पेरू, लिथुआनिया और माल्डोवा का नाम जुड़ा है. 25 जनवरी 2021 को एस्टोनिया एकलौता ऐसा देश बन गया जहां प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों महिलाएं हैं.
तस्वीर: Raigo Pajula/AFP/Getty Images
लंबा सफर बाकी है
इसके ठीक उलट, दुनिया में 119 देश ऐसे हैं जहां कभी कोई महिला नेता बन ही नहीं पाई. आंकड़े कहते हैं कि सबसे ऊंचे पदों पर पुरुषों और महिलाओं के बीच बराबरी कायम होने में कम से कम 130 साल लग सकते हैं. राष्ट्रीय विधायिकाओं में 2063 से पहले और मंत्री पदों पर 2077 से पहले यह बराबरी कायम नहीं होगी.
तस्वीर: AFP
महिला सांसद
1995 के मुकाबले दुनिया में महिला सांसदों की संख्या दोगुना से भी ज्यादा बढ़ी है. आज पूरी दुनिया के सांसदों में 25 प्रतिशत सांसद महिलाएं हैं.
तस्वीर: Raveendran/AFP/Getty Images
अमेरिका, लातिन अमेरिका और यूरोप आगे
लातिन अमेरिका और कैरीबियन, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में 30 प्रतिशत से ज्यादा संसदीय सीटें महिलाओं के पास हैं. हालांकि पैसिफिक द्वीप के देशों में महिलाओं के पास बस छह प्रतिशत सीटें हैं.
तस्वीर: Saul Loeb/AFP
मंत्रिमंडलों में भागीदारी
ना सिर्फ प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पदों पर, बल्कि मंत्रिमंडलों में भी महिलाओं की भागीदारी कम है. 2020 में सिर्फ 14 देश ऐसे थे जहां के मंत्रिमंडलों में 50 प्रतिशत या उससे ज्यादा संख्या में महिला मंत्री थीं.
तस्वीर: Manish Swarup/AP/picture alliance
रास्ते के रोड़े
सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी के रास्ते में कई रोड़े हैं. इनमें महिलाओं को आगे लाने में राजनीतिक दलों का संकोच, फंडिंग की कमी, जनता के बीच में पुरुषों के बेहतर नेता होने की धारणा, हिंसा और डराना-धमकाना शामिल हैं. इसमें इंटरनेट पर किया जाने वाला उत्पीड़न भी शामिल है.
तस्वीर: imago images/Pacific Press Agency
हिंसा एक बड़ी समस्या
पूरी दुनिया में 80 प्रतिशत से भी ज्यादा महिला सांसदों को मानसिक हिंसा का सामना करना पड़ा है. हर चार महिला सांसद में से एक के साथ शारीरिक हिंसा भी हुई है और हर पांच में से एक के साथ यौन हिंसा. सीके/एए (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)