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अगली वायरल महामारी से लड़ेंगी नैनोमशीनें

जूलियान रायल, टोक्यो से
२९ अप्रैल २०२०

जापानी रिसर्चरों ने बेहद छोटे रोबोटों को कैंसर मरीजों के शरीर में डालने और कैंसर वाली कोशिका को खत्म करने में सफलता पाई है.

SARS-CoV-2 im Elektronen-Mikroskop
तस्वीर: AFP

दुनिया के सामने जिस अगली महामारी से निपटने की चुनौती आएगी, संभावना है कि उससे ऐसी नैनोमशीनें ही लड़ेंगी. यह मिनिस्क्यूल रोबोट इतने छोटे हैं जिन्हें शरीर के भीतर भेजना संभव है. और अब यही रिसर्चर अपने इस आविष्कार को भविष्य की जानलेवा वायरल महामारियों से लड़ने के लिए भी तैयार करना चाहते हैं.

ऐसे नैनो आकार के रोबोट असल में सिंथेटिक पॉलीमर्स, प्रोटीन, जेनेटिक पदार्थों और ऑर्गेनिक कंपाउंड्स से बने होते हैं. यह शरीर के भीतर विचरण कर सकते हैं और घूमते हुए उन वायरसों तक पहुंच कर सकते हैं जिन्हें खत्म करना है. यह वायरस की पहचान करने, उनकी जांच करने और फिर उनके अंदर दाखिल होकर उन्हें नष्ट करने में सक्षम होते हैं. इलाज के दूसरे तरीकों में शरीर की प्रतिरोधी कोशिकाओं को वायरल कणों पर हमला करने के लिए "ट्रेन" किया जाता है.

कोई साइंस फिक्शन नहीं

हो सकता है कि इलाज का यह तरीका लोगों को सुनने में किसी साइंस फिक्शन फिल्म में दिखने वाली काल्पनिक बात लगे. असल में 1960 के दशक में आई फिल्मों में वाकई ऐसा कुछ दिखाया भी गया था.

जापान के कावासाकी शहर में स्थित इनोवेशन सेंटर ऑफ नैनोमेडिसिन की टीम के रिसर्चर मुस्कराते हुए मानते हैं कि उन्होंने भी इसके बारे में सुना था. लेकिन रिसर्चर काजुनोरी काटाओका और उनकी टीम कैंसर के इलाज में इसे आजमा कर अच्छे नतीजे भी सामने रख चुकी है.

कोरोना संकट बीतने के बाद भी दुनिया में नए नए जानलेवा वायरसों का हमला तो रुकने वाला नहीं है. ऐसे में जापानी रिसर्चर अपने इस तरीके से भविष्य के अनदेखे, संक्रामक और जानलेवा वायरस से निपटने की तैयारी कर रहे हैं. फिलहाल दुनिया के तमाम रिसर्चर कोरोना वायरस के महासंकट से निपटने की कोशिशों में जुटे हुए हैं.

‘शरीर में ही अस्पताल'

रिसर्चर काजुनोरी काटाओका बताते हैं कि ‘इन-बॉडी हॉस्पिटल' की परिकल्पना पर कम से कम नौ साल से काम चल रहा है. इसके काम करने के तरीके के बारे में वह बताते हैं, "कई डिवाइसें स्वतंत्र रूप से शरीर के भीतर घूमेंगी और किसी गड़बड़ का पता लगने पर उसका डायग्नोसिस करेंगी और उसी हिसाब से जरूरी इलाज भी कर देंगी."

इन्हें नैनोमशीन इसलिए कहा जाता है क्योंकि आकार में ये 100 नैनोमीटर से भी छोटी होती हैं. यह गोलाकार डिवाइस शरीर के गर्मी और प्रकाश से चलती हैं. इन के चारों ओर एक हाइड्रोफिलिक कवच होता है जो इन्हें शरीर के इम्यून सिस्टम को सक्रिय करने से बचाता है.

अब तक इनका इस्तेमाल कई तरह के कैंसर का इलाज करने से जुड़ी रिसर्च में ही हुआ है. सन 1981 से जापान मे सबसे ज्यादा लोगों की मौत कैंसर से ही होती आई है. देश की आबादी में बुजुर्गों की संख्या काफी ज्यादा हैं और 50 से ऊपर की उम्र के लोगों में कैंसर ज्यादा होता है. इस तकनीक पर कई अन्य देशों में भी क्लिनिकल ट्रायल चल रहे हैं.

काटाओका बताते हैं कि ब्रेस्ट कैंसर, अगन्याशय के कैंसर के मामलों में इसके अच्छे शुरुआती नतीजे मिले हैं. कुछ अन्य रिसर्चर इसे ब्रेन ट्यूमर के इलाज में भी आजमाना चाहते हैं. 

अणु के स्तर पर काम करने वाली दवा

कोरोना के इलाज में इस तकनीक के इस्तेमाल पर टोक्यो यूनिवर्सिटी में बायोइंजीनियरिंग के प्रोफेसर सातोशी उचीडा का कहना है, "कोरोना वायरस जैसे संक्रमण से आण्विक स्तर पर लड़ने के लिए दवा बनाना बेहद मुश्किल है और इसके लंबा वक्त लगता है.”

उन्होंने कहा कि ऐसी महामारी से निपटने में समय बचाना अहम होता है इसलिए उससे लड़ने के लिए नैनोमशीनें नहीं बल्कि "ऐसी मैक्रोमॉलिक्यूलर दवाएं और बायो कंपाउंड्स ज्यादा कारगर होंगे जो शरीर मे प्रोटीन और न्यूक्लिक एसिड पर असर डालें." ऐसे ही तरीकों पर फिलहाल विश्व भर के रिसर्चर काम कर रहे हैं.

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