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अदालतों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से वकील परेशान

१२ अप्रैल २०२२

मुकदमों का जल्दी निपटाने के लिए कई देश आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करने की ओर बढ़ रहे हैं. मलेशिया ने दो राज्यों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसे शुरू किया है, लेकिन वकील इसे लेकर आशंकाओं में घिरें हैं.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से वकीलों को क्या दिक्कत है
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से वकीलों को क्या दिक्कत हैतस्वीर: Alexander Limbach/Zoonar/picture alliance

दो दशकों के वकालत के करियर में कुछ ही मामले थे, जिन्होंने हामिद इस्माइल को परेशान किया था. हाल ही में जिस शख्स का वह बचाव कर रहे थे, उसे अदालत ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से सजा सुनाई, तो वह दंग रह गए. यह मामला मलेशिया के सबा राज्य का है.

मलेशिया की केंद्र सरकार के निर्देश पर कई राज्यों ने अदालतों की मदद के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई के इस्तेमाल का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है. सबा और पड़ोसी राज्य सारावाक में इसका परीक्षण किया जा रहा है. दिक्कत इसलिए हो रही है कि वकील, जज और आम लोग इसे समझें, उसके पहले ही इस तकनीक का इस्तेमाल शुरू हो गया है.  

हामिद इस्माइल का कहना है कि तकनीक के इस्तेमाल पर ना तो सलाह-मशविरा हुआ और ना ही देश के दंडात्मक विधान में इसपर विचार किया गया है. उनका कहना है, "हमारा आपराधिक प्रक्रिया विधान अदालतों में एआई के इस्तेमाल के लिए नहीं बना है...मेरे ख्याल में यह गैरसंवैधानिक है." इस्माइल ने यह भी कहा कि एआई के निर्देश पर उनके मुवक्किल को मामूली मात्रा में ड्रग्स रखने के लिए ज्यादा कठोर सजा दी गई है.

अदालत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमालतस्वीर: Alexander Limbach/Zoonar/picture alliance

अदालत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

सबा और सारावाक की आदालतों ने सरकारी कंपनी सारावाक इन्फॉर्मेशन सिस्टम के तैयार किए सॉफ्टवेयर का पहली बार इस्तेमाल शुरू किया है. सरकारी कंपनी का कहना है कि उसने प्रक्रिया के दौरान सलाह-मशविरा किया और इस दौरान जो चिंताएं जाहिर की गईं, उनका समाधान भी हुआ. दुनिया भर के अपराध न्याय तंत्र में इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. इनमें डूनॉटपे लॉयर मोबाइल ऐप से लेकर एस्तोनिया में छोटे मुकदमों को निपटाते रोबोट जज, कनाडा में रोबोट मध्यस्थ और चीन की अदालतों में एआई जज तक शामिल हैं.

अधिकारियों का कहना है कि एआई आधारित तंत्र सजा की प्रक्रिया को एकरूप बना रहे हैं और लंबित मुकदमों को जल्दी से और सस्ते में निपटा रहे हैं. इस तरह से दोनों पक्षों को लंबे और खर्चीले मुकदमों से निजात मिल रही है. दुनिया भर की एक तिहाई से ज्यादा सरकारों ने पिछले साल रिसर्च एजेंसी गार्टनर के सर्वे में बताया कि वे एआई वाले सिस्टम में निवेश बढ़ाने की योजना बना रहे हैं. इनमें चैटबोट, फेशियल रिकग्निशन और सभी क्षेत्रों में डाटा माइनिंग शामिल हैं.

मलेशिया की संघीय सरकार इसी महीने एआई के जरिए सजा सुनाने वाले तंत्र का पूरे देश में ट्रायल पूरा कर लेगी. हालांकि इनका इस्तेमाल अदालतों में कब शुरू होगा, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है. मलेशिया के मुख्य न्यायाधीश के प्रवक्ता ने सिर्फ यही कहा कि अदालतों में एआई का इस्तेमाल "अभी भी परीक्षण के दौर में है."

एआई के जरिए कई देशों में बिना ड्राइवर वाली गाड़ियां चलाने पर भी काम हो रहा हैतस्वीर: Privat

पूर्वाग्रह के बढ़ने का डर

आलोचक चेतावनी दे रहे हैं कि एआई अल्पसंख्यकों और हाशिये पर मौजूद गुटों के साथ पूर्वाग्रह को और बढ़ा देंगे. उनका कहना है कि इस तकनीक में किसी खास परिस्थिति या फिर बदलते रीति-रिवाजों का ध्यान रखने की क्षमता नहीं है जो जजों में होती है. इस्माइल ने कहा, "सजा देने में जज सिर्फ मुकदमे के तथ्यों पर ही ध्यान नहीं देते हैं, बल्कि गंभीरता को कम करने वाले कारकों पर भी ध्यान देते हैं और अपने विवेक का भी इस्तेमाल करते हैं. एआई विवेक का इस्तेमाल नहीं कर सकता."

मलेशिया के मानवाधिकार कार्यकर्ता वकील चार्ल्स हेक्टर फर्नांडिज का कहना है कि गंभीरता को बढ़ाने या घटाने वाले कारकों पर विचार करने के लिए "एक मानवीय दिमाग की जरूरत" होती है. फर्नांडिज के मुताबिक, "बदलते समय या लोगों की राय के हिसाब से सजाओं में फर्क भी आता है. बढ़ते मुकदमों के बोझ से निपटने के लिए हमें ज्यादा जजों और अभियोजकों की जरूरत है, एआई मानव जज की जगह नहीं ले सकता."

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सारावाक इन्फॉर्मेशन सिस्टम ने एआई सॉफ्टवेयर के कारण पूर्वाग्रह बढ़ने की चिंताओं को मिटाने की कोशिश के तहत कहा कि उसने एल्गोरिद्म से "नस्ल" को हटा दिया है. इस तरह की कोशिशें अहम हैं, लेकिन फिर भी विशेषज्ञों का कहना है कि इससे यह तंत्र पूरी तरह अचूक नहीं बन जाता. 2020 में पॉलिसी थिंक टैंक खजानाह रिसर्च इंस्टीट्यूट ने इस बारे में एक रिपोर्ट छापी थी. इंस्टीट्यूट ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि कंपनी ने एल्गोरिद्म को ट्रेन करने के लिए केवल 2014-2019 के बीच के आंकड़ों का ही इस्तेमाल किया. दुनिया की बाकी जगहों से तुलना की जाए, तो वहां बहुत भारी डाटा का इस्तेमाल हो रहा है.

डाटाबेस बढ़ाने के बारे में प्रतिक्रिया के लिए सारावाक इन्फॉर्मेशन सिस्टम से बात नहीं हो सकी है. खजानाह इंस्टीट्यूट के सबा और सारावाक में मुकदमों के विश्लेषण से पता चलता है कि जजों ने एक तिहाई मामलों में एआई के निर्देशों को माना. इसमें बलात्कार से लेकर नशीली दवाएं रखने तक के अपराध शामिल थे.

कुछ जजों ने एआई से मिली सजा को गंभीरता कम करने वाले कारकों के आधार पर घटा दिया. दूसरों ने यह मानकर कि प्रस्तावित सजा अपराधियों को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं होगी, सजा बढ़ा दी.

जजों का विवेक

सिंगापुर की नेशनल यूनिवर्सिटी में कानून के प्रोफेसर सायमन चेस्टरमान का कहना है कि तकनीक में यह क्षमता नहीं है कि वह अपराध न्याय तंत्र की दक्षता को बेहतर कर सके. हालांकि इसके साथ ही वह यह भी कहते हैं कि इसकी वैधता ना सिर्फ फैसलों के सही होने बल्कि उस तक पहुंचने के तरीकों पर भी निर्भर करती है.

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चेस्टरमान ने कहा, "मुमकिन है कि बहुत से फैसले सही तरीके से मशीन को सौंपे जायें, लेकिन एक जज को अपना विवेक किसी अस्पष्ट अल्गोरिद्म के हवाले नहीं करना चाहिए." मलेशिया की बार काउंसिल ने भी एआई के पायलट प्रोजेक्ट पर चिंता जताई है. 2021 में जब राजधानी कुआलालंपुर की अदालतों ने 20 तरह के अपराधों के लिए सजा सुनाने में एआई का इस्तेमाल शुरू किया, तो काउंसिल ने कहा, "हमें कोई दिशानिर्देश नहीं मिला है और हमें अपराध कानून के वकीलों से इस बारे में कोई फीडबैक लेने का मौका नहीं दिया गया."

सबा में इस्माइल ने अपने मुवक्किल को एआई के सहारे मिली सजा के खिलाफ अपील की है, जिसे जज ने स्वीकार कर लिया. हालांकि उनका कहना है कि बहुत से वकील उसे चुनौती नहीं देंगे. इस्माइल ने कहा, "एआई किसी वरिष्ठ जज की तरह काम करता है. युवा मैजिस्ट्रेट उसके फैसले को बिल्कुल सही मानकर बिना कोई सवाल उठाए स्वीकार कर लेंगे."

एनआर/एसएम(रॉयटर्स)

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