भारतीय मांस कारोबारी मवेशियों के व्यापार पर प्रतिबंध लगाने वाले नये नियम के खिलाफ सरकार को अदालत में ले जाने की योजना बना रहे हैं. कारोबारी इसे मुसलमानों के खिलाफ नरेंद्र मोदी सरकार का कदम मान रहे हैं.
विज्ञापन
बीते हफ्ते भारत के पर्यावरण मंत्रालय ने कहा था कि पशु बाजार में कृषि उद्देश्यों की पूर्ति करने वाले पशुओं का ही व्यापार किया जा सकेगा. सरकार के इस कदम को मांस कारोबारी बड़ा झटका मान रहे हैं. हिंदू धर्म में गाय को एक पवित्र पशु माना जाता है और इसके वध को लेकर प्रत्येक राज्य के अपने कुछ नियम-कानून हैं. लेकिन पिछले तीन साल से गौ-वध को लेकर मामला काफी संवेदनशील बना हुआ है.
देश की 14 फीसदी मुस्लिम आबादी का एक बड़ा हिस्सा मांस कारोबार में लगा हुआ है. यहां तक की भारत दुनिया में भैंस का मांस बेचने वाला सबसे बड़ा देश है. भारत सालाना तकरीबन 4 अरब डॉलर का मांस वियतनाम और मलेशिया जैसे देशों को निर्यात करता है. लेकिन 23 मई को सरकार की ओर से जारी अधिसूचना के बाद यह सूरत बदल सकती है. 23 मई को जारी अधिसूचना में सरकार ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम में बदलाव के संकेत दिये हैं. अब नये नियम के मुताबिक पशु मालिकों को यह घोषणा करनी होगी कि बाजार में पशुओं को वध करने के उद्देश्य से नहीं लाया गया है. साथ ही बाजार समितियों को उसके कागज देखकर यह सत्यापित करना होगा कि खरीदार "कृषक" हैं. नये नियम के अनुसार मवेशियों की श्रेणी में, गाय, भैंस, सांड, बछड़े, ऊंट आदि शामिल किये गये हैं.
डेल्ही बफेलो ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अकील कुरैशी के मुताबिक कारोबार ठप्प सा हो गया है. कुरैशी दिल्ली के बाहरी इलाके में अपना बूचड़खाना चलाते हैं. कुरैशी के मुताबिक, "कौन अपनी रोजी-रोटी के लिये नहीं लड़ता और इसके लिये हम भी आवाज उठायेंगे, कानूनी मदद लेंगे."
क्या है राज्यों में "गाय" की स्थिति
भारत में गौहत्या को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है. हाल में राजस्थान में तथाकथित गौरक्षकों द्वारा एक व्यक्ति को इतना पीटा गया कि उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई. डालते हैं एक नजर इसके संवैधानिक प्रावधान पर.
तस्वीर: Fotolia/Dudarev Mikhail
राज्यों का अधिकार
हिंदू धर्म में गाय का वध एक वर्जित विषय है. गाय को पारंपरिक रूप से पवित्र माना जाता है. गाय का वध भारत के अधिकांश राज्यों में प्रतिबंधित है उसके मांस के सेवन की भी मनाही है लेकिन यह राज्य सूची का विषय है और पशुधन पर नियम-कानून बनाने का अधिकार राज्यों के पास है.
तस्वीर: AP
गौहत्या पर नहीं प्रतिबंध
केरल, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम जैसे राज्यों में गौहत्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है. हालांकि संविधान के अनुच्छेद 48 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत गौहत्या को निषेध कहा गया है.
तस्वीर: Fotolia/Dudarev Mikhail
आंध्रप्रदेश और तेलंगाना
इन दोनों राज्यों में गाय और बछड़ों का वध करना गैरकानूनी है. लेकिन ऐसे बैल और सांड जिनमें न तो प्रजनन शक्ति बची हो और न ही उनका इस्तेमाल कृषि के लिये किया जा सकता हो और उनके लिये "फिट फॉर स्लॉटर" प्रमाणपत्र प्राप्त हो, उन्हें मारा जा सकता है.
तस्वीर: Asian Development Bank/Lester Ledesma
उत्तर प्रदेश
राज्य में गाय, बैल और सांड का वध निषेध है. गोमांस को खाना और उसे स्टोर करना मना है. कानून तोड़ने वाले को 7 साल की जेल या 10 हजार रुपये जुर्माना, या दोनों हो सकता है. लेकिन विदेशियों को परोसने के लिये इसे सील कंटेनर में आयात किया सकता है. भैंसों को मारा जा सकता है.
तस्वीर: Getty Images/Allison Joyce
असम और बिहार
असम में गायों को मारने पर प्रतिबंध है लेकिन जिन गायों को फिट-फॉर-स्लॉटर प्रमाणपत्र मिल गया है उन्हें मारा जा सकता है. बिहार में गाय और बछड़ों को मारने पर प्रतिबंध है लेकिन वे बैल और सांड जिनकी उम्र 15 वर्ष से अधिक है उन्हें मारा जा सकता है. कानून तोड़ने वाले के 6 महीने की जेल या जुर्माना हो सकता है.
तस्वीर: AP
हरियाणा
राज्य में साल 2015 में बने कानून मुताबिक, गाय शब्द के तहत, बैल, सांड, बछड़े और कमजोर बीमार, अपाहिज और बांझ गायों को शामिल किया गया है और इनको मारने पर प्रतिबंध हैं. सजा का प्रावधान 3-10 साल या एक लाख का जुर्माना या दोनों हो सकता है. गौमांस और इससे बने उत्पाद की बिक्री भी यहां वर्जित है.
तस्वीर: AP
गुजरात
गाय, बछड़े, बैल और सांड का वध करना गैर कानूनी है. इनके मांस को बेचने पर भी प्रतिबंध है. सजा का प्रावधान 7 साल कैद या 50 हजार रुपये जुर्माना तक है. हालांकि यह प्रतिबंध भैंसों पर लागू नहीं है.
तस्वीर: AP
दिल्ली
कृषि में इस्तेमाल होने वाले जानवर मसलन गाय, बछड़े, बैल, सांड को मारना या उनका मांस रखना भी गैर कानूनी है. अगर इन्हें दिल्ली के बाहर भी मारा गया हो तब भी इनका मांस साथ नहीं रखा जा सकता, भैंस इस कानून के दायरे में नहीं आती.
तस्वीर: AP
महाराष्ट्र
राज्य में साल 2015 के संशोधित कानून के मुताबिक गाय, बैल, सांड का वध करना और इनके मांस का सेवन करना प्रतिबंधित है. सजा का प्रावधान 5 साल की कैद और 10 हजार रुपये का जुर्माना है. हालांकि भैंसों को मारा जा सकता है.
तस्वीर: Daniel Tschudy
9 तस्वीरें1 | 9
पर्यावरण मंत्रालय की ओर से जारी बयान के मुताबिक नियमन का मकसद पशुओं को क्रूरता से बचाना है न ही बूचड़खानों के कारोबार का नियमन करना. इसमें कहा गया है कि हत्या के लिये पशुओं को सीधे किसानों से खरीदा जाना होगा.
हैदराबाद के एक वकील और ऑल इंडि़या जमातुल कुरैश एक्शन कमेटी के प्रमुख अब्दुल फहीम कुरैशी के मुताबिक, प्रयत्क्ष बिक्री हमेशा संभव नहीं है और अब वे अपने तमाम कारोबारी क्लाइंट्स से मिलकर कोर्ट में अपील करने की तैयारी कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश के निर्यातक अल फहीम मीटेक्स मुताबिक भैंसों की किसानों से सीधी खरीद इसकी लागत में बढ़ोतरी कर सकती है. कुरैशी ने कहा कि नया कानून केवल स्वघोषित गौरक्षक समूहों को प्रोत्साहित करेगा. इस मसले पर भारतीय जनता के पार्टी के नेताओं की ओर से कोई टिप्पणी नहीं की गयी है.
एए/आरपी (रॉयटर्स)
गाय बैलों की दौड़
बंगाल के ग्रामीण इलाकों में गाय बैलों की दौड़ लोगों को खूब लुभाती है. सालों पुरानी परंपरा पशु संरक्षण के नियम कायदों का ख्याल नहीं करती लेकिन फिर भी इसे रोकना मुमकिन नहीं
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
बारिश की शुरूआत का जश्न
पश्चिम बंगाल के गांवों में जुलाई से अक्तूबर के बीच इस तरह का मंजर दिखाई देना कोई अजीब बात नहीं. गाय बैलों की दौड़ का आयोजन मॉनसून की खुशी मनाने का एक तरीका है.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
दौड़ की जरूरत
गांव के बड़े बूढ़े बताते हैं कि पहली बारिश के बाद मिट्टी की ऊपरी परत खुरचने के लिए इस दौड़ का आयोजन किया जाता था, जो कि अब एक परंपरा बन गई है.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
मुकाबले पर दांव
इन दिनों भूमि पर तरह तरह के यंत्रों और ट्रैक्टरों की मदद से यही काम किया जाता है. अब यह दौड़ सालाना परंपरा का हिस्सा है जिसमें पशुओं के मालिकों के बीच मुकाबला होता है और लोग जीतने वाले पर दांव लगाते है.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
दर्शकों की कमी नहीं
कुल मिला कर दौड़ को बड़ी संजीदगी और चाव से देखने वालों की भी कोई कमी नहीं है.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
बच्चों के लिए खेल
गांव के बच्चों के लिए भी यह रोचक खेल है.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
दूर से मजा
गांव की महिलाएं, लड़कियां और बच्चे भी इसका मजा लेते हैं लेकिन जरा दूर से.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
बचना जरूरी है
मुकाबले वाले मैदान से जरा दूर रहना ही ठीक रहता है क्योंकि दौड़ में पशु बेतहाशा भाग रहे होते हैं. ऐसी अटकलें हैं कि कई मालिक अपने पशुओं को नशा भी करा देते हैं.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
रेस के बाद नहाना
शायद इसी लिए रेस खत्म होने पर उन्हें नदी में ले जाया जाता है और कोशिश की जाती है कि वे जितना ज्यादा उसके अंदर रहें बेहतर है, ताकि नशे का असर खत्म हो और थकान भी उतरे.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
प्रतिबंधित रेस
पशु संरक्षण संस्थाओं के जोर देने पर सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की रेसों पर प्रतिबंध लगा दिया है. इन रेसों में पशुओं के साथ अमानवीय व्यव्हार किए जाने के भी आरोप हैं.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
रुकती नहीं रेस
क्षेत्रीय लोगों की इसमें दिलचस्पी इस तरफ भी इशारा करती है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी इन रेसों को इतनी आसानी से रोकना मुमकिन नहीं है.