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अनाथ बच्चों के नाम पर कंबोडिया में पर्यटन का धंधा

२९ जुलाई २०११

कंबोडिया का इतिहास और उसके सुंदर मंदिर दुनिया भर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं. लेकिन पिछले कुछ दिनों में अनाथ बच्चों के नाम पर हो रहा पर्यटन चिंता का कारण बन गया है.

A small girl who collects rubbish to make money finds a half eaten corn cob on the ground and tries to finish it before her brother takes it from her on the river bank in Phnom Penh, Cambodia, 12 March 2006. In the Cambodian capital, between 10,000 and 20,000 street children aged between 6 to 15 years of age (50 percent of which are girls) spend most of their time working on the streets to make income for their families, according to the Cambodian NGO, Mith Samlanh Friends. Each month up to 200 "new comers" join them. Many thousands of other children do not have familes and live on the street. Street children do not go to school, have less access to health care services, and suffer from adult abuse both physical and sexual as well as substance abuse, says UNICEF. In Cambodia, one of the poorest South East Asian nations, one baby out of every 10 dies in their first year, and despite a growing economy, under-five mortality has risen over the last 10 years. The UN says decisive actions are needed to stem the very high rate of malnutrition and support the health sector. Foto: EPA/BARBARA WALTON +++(c) dpa - Report+++
तस्वीर: picture-alliance/ dpa/dpaweb

कंबोडिया में पर्यटकों की पसंदीदा जगह सीएम रीप, यहां एक कच्ची इमारत में कई ऐसे लोगों की तस्वीरें लगी हुई हैं जो कभी यहां आए थे, बच्चों की मदद की और चले गए. किसी समय यहां के अनाथ बच्चों के लिए ये चेहरे जाने पहचाने थे लेकिन अब वे इन्हें भूल गए हैं. कंबोडिया में अनाथ बच्चों को मदद देने के नाम पर कई टूरिस्ट संस्थाओं में दो तीन महीनों के लिए काम करते हैं और चले जाते हैं.

ओकोडो अनाथालय की रंगीन गैलेरी दिखाती है कि कैसे एक ट्रेंड बढ़ रहा है कि विदेशी पर्यटर घूमने फिरने के अलावा अपना समय उन बच्चों को दे रहे हैं जिन्हें देखने वाला कोई नहीं है. पहली नजर में तो अच्छा ही लगता है कि स्वैच्छिक काम करने के लिए लोग मिल रहे हैं. लेकिन जानकारों का मानना है कि इससे फायदा कम नुकसान ज्यादा हो रहा है.

तस्वीर: AP

पढ़ाने के लिए पैसे

न्यूयॉर्क से आई हुई मैरिया सोरौदी ऐसे ही कई स्वयंसेवियों में से एक है जो अकोडो में इंग्लिश पढ़ा रही है. यहां 3 से 18 साल के अनाथ बच्चे रहते हैं. सोरौदी वहां रहने और पढाने के लिए हर सप्ताह अनाथाश्रम को 50 डॉलर देती हैं. उन्होंने फैसला किया है कि लौटने से पहले वह कुछ दिन और यहां रहेंगी. वह भी जानती हैं कि बच्चों के लिए यह बहुत मुश्किल होता है कि थोड़े थोड़े दिन में लोग बदलते रहें. यहां इतने लोग आते हैं. एक जाता तो उसकी जगह दूसरा आ जाता है. वे कहते हैं कि इस बारे में बच्चों से बात मत करो. मत बताओ कि मैं एक सप्ताह में चली जाऊंगी क्योंकि उन्हें दुख होता है. सबसे अच्छा है कि आप अचानक आना बंद कर दें.

इरादा अच्छा लेकिन...

गरीबी और दुख से द्रवित हो कर इस तरह मदद करने वालों का इरादा तो अच्छा होता है लेकिन बच्चों की देखभाल करने वाले जानकारों का कहना है कि यह पहले से अकेले बच्चों को और दुखी कर देता है. संयुक्त राष्ट्र के चिल्ड्रन फंड यूनिसेफ की योलांडा फान वेस्टेरिंग कहती हैं, देखभाल करने वाले लोगों में लगातार बदलाव बच्चों में भावनात्मक सदमे का कारण बनता है. और लगातार अनजान लोगों से मुलाकात नुकसान पहुंचा सकती है. हिंसा, दुर्व्यव्हार भी हो सकते हैं. क्योंकि अक्सर अनाथाश्रम में आने वाले इन स्वयंसेवियों की पृष्ठभूमि नहीं देखी जाती.

इस इलाके से कई यात्री गुजरते हैं क्योंकि यहीं से मशहूर अंकोरवाट मंदिरों को जाने का रास्ता है. और कई लोग देश के सबसे गरीब इलाके के लिए कुछ करना चाहते हैं.

तस्वीर: AP

मदद या धंधा

होटल, कैफे, सोवेनियर शॉप्स में बड़ी बड़ी आंखों वाले प्यारे बच्चों के पोस्टर्स देखे जा सकते हैं. ये पोस्टर स्कूलों और अनाथाश्रमों के विज्ञापन हैं जो पर्यटकों को आकर्षित करते हैं और उन्हें उत्साहित करते हैं कि वे इन बच्चों की मदद के लिए समय और धन दें.

ग्लोबाल्टीर नाम का संगठन स्वयंसेवियों को स्थानीय संगठनों से मिलवाता है. इसी संगठन की एश्ली चैपमन बताती हैं, "पर्यटक कुछ गरीबी देखते हैं उन्हें बुरा लगता है और वे इसके लिए कुछ करना चाहते हैं. वे चिल्ड्रन प्रोजेक्ट देखना चाहते हैं. एक फोटो लेते हैं और उन्हें लगता है कि उन्होंने कुछ किया."

संस्थाएं बढ़ी

जैसे जैसे इस तरह के स्वैच्छिक काम करने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है उतनी ही तेजी से बच्चों को मदद देने वाली संस्थाएं भी बढ़ रही हैं. पिछले छह सालों में कम्बोडिया में अनाथ आश्रम दुगने हो गए हैं. यूनिसेफ के अनुसार वहां 269 आश्रमों में बारह हजार अनाथ बच्चे रहते हैं. एक स्थानीय संगठन फ्रेंड्स इंटरनेशनल का कहना है कि टूरिज्म के कारण यह संख्या बढ़ रही है. फ्रेंड्स इंटरनेशनल की प्रोजेक्ट मैनेजर मैरी काउर्सिल बताती हैं कि फ्नोम पेन और सीम रीप जैसे बड़े शहरों में अनाथ आश्रम जाना पर्यटकों के लिए आकर्षण बन गया है. इसलिए जिन बच्चों के माता पिता में से केवल एक ही जीवित होता है उन्हें भी यहां लाया जाता है.

तस्वीर: AP

एनजीओ का छलावा

कम्बोडिया में मौजूद सैंकड़ों अनाथ आश्रमों में हर दस में से केवल एक ही सरकार चलाती हैं. बाकी सब को एनजीओ चलाते हैं. पैसों के लिए ये विदेश से आए लोगों की मदद पर निर्भर करते हैं. सीम रीप के अकोडो आश्रम में सोरोदी नाम की महिला हर रोज बच्चों के साथ पेड़ की छांव में बैठती है और उन्हें कपड़ों पर रंगों से डिजाइन बनाना सिखाती है. बच्चे उसे देख देख कर रंगों का इस्तेमाल करते हैं और फिर इन कपड़ों को शाम को होने वाले आधे घंटे के सांकृतिक कार्यक्रम में पहनते हैं. टूरिस्ट ये सब देख कर प्रभावित होते हैं और जाने से पहले बच्चों को पैसे दे कर जाते हैं. जाहिर सी बात है, ये पैसे संगठन की जेब में जाते हैं.

बच्चों को धमकी

यूनिसेफ की योलांडा फान वेस्टेरिंग कहती हैं कि बच्चों को अक्सर डराया धमकाया जाता है, "उनसे कहा जाता है कि अगर वो अच्छी तरह परफॉर्म नहीं करेंगे तो उन्हें पालने के लिए पैसा नहीं मिलेगा. आप सोच भी नहीं सकते कि बच्चों के लिए ऐसे माहौल में जीना कितना कठिन होता है." बच्चे बेहद तनाव की जिंदगी जीते हैं. इस से बचने के लिए वेस्टेरिंग की लोगों को एक ही सलाह है, "वहां मत जाइए. आप अपना खून दे सकते हैं, किसी ऐसे संगठन के साथ जुड़ सकते हैं जहां बच्चे दिन में नई नई चीजें सीखने के लिए आते हैं और शाम को फिर अपने घर लौट जाते हैं."

अनमोल अनुभव

50 वर्षीय बेस्टी ब्रिटनहाम और उनकी 15 साल की बेटी एक ऐसे ही संगठन से जुड़े हैं, जहां बच्चे शाम को घर वापस जाते हैं. मां बेटी की जोड़ी तीन हफ्तों के लिए कम्बोडिया आई हैं और ग्रेस हाउस कोम्यूनिटी सेंटर में बच्चों को पढ़ाती है. बेस्टी कहती हैं कि उनके लिए यह एक अच्छा मौका है एक ऐसे देश में अपना योगदान देने का जहां पूरे संसाधन नहीं हैं. अकोडो में आए टूरिस्ट्स की तरह बेस्टी भी यहां पैसा देती हैं, लेकिन उन्हें इसमें कोई हर्ज नहीं है, "अगर आप इस तरह से खुद आ कर बच्चों की मदद करते हैं तो उसमें आपका पैसा और मेहनत दोनों ही लगते हैं. ये एक ऐसा अनुभव है जिसका आप मोल नहीं लगा सकते."

रिपोर्ट: एएफपी/आभा मोंढे

संपादन: ईशा भाटिया

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