अनुभव आगे, युवा पीछे : कांग्रेस की 2019 की रणनीति?
१८ दिसम्बर २०१८
राजस्थान और मध्य प्रदेश में सत्ता की चाबी अनुभवी और वरिष्ठ नेताओं अशोक गहलोत और कमलनाथ के हाथों में थमा दी गई है. तो क्या पार्टी नए खून से ज्यादा अनुभव पर भरोसा कर रही है.
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कमलनाथ और अशोक गहलोत, दोनों ही गांधी परिवार के विश्वासपात्र हैं और इससे पहले कई अहम जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं. अशोक गहलोत तो तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं. लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लगातार युवाओं को आगे लाने की बात करते हैं, तो फिर उन्होंने मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल युवा नेताओं सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया को मौका क्यों नहीं दिया?
क्या ऐसा किसी सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया या वाकई 'युवा जोश' पर 'अनुभव' भारी पड़ गया? ऐसी क्या वजह रही कि राहुल कांग्रेस पार्टी के पुराने ढर्रे को तोड़कर नया उदाहरण पेश नहीं कर पाए?
राजस्थान के गांवों और दूरदराज के क्षेत्रों का सफर कर चुकीं राजनीतिक विश्लेषक निकिता चावला ने आईएएनएस से कहा, "इसे 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की रणनीति कह सकते हैं. कांग्रेस अपनी लय धीरे-धीरे फिर से हासिल कर रही है. अगले साल लोकसभा चुनाव जीतने के लिए उन्हें अनुभव की सख्त जरूरत पड़ेगी. अशोक गहलोत और कमलनाथ बहुत ही परिपक्व नेता हैं, अपने-अपने राज्यों में इनकी एक छाप है, जो लोकसभा चुनाव में बहुत मदद करेगी. इसलिए कांग्रेस फिलहाल हर चीज को 2019 के नजरिए से देख रही है."
कितने राज्यों में कांग्रेस सरकार है
कितने राज्यों में है कांग्रेस की सरकार
आम चुनाव से पहले तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मिली कामयाबी ने कांग्रेस में नई जान फूंकी है. चलिए डालते हैं एक अब कितने राज्यों में कांग्रेस सत्ता में है.
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राजस्थान
आम चुनाव से चंद महीने पहले हुए विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस ने राजस्थान की सत्ता में वापसी की और पार्टी ने राज्य की कमान अनुभवी अशोक गहलोत के हाथों में सौंपी.
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मध्य प्रदेश
विधानसभा चुनाव के नतीजों ने मध्य प्रदेश से भी कांग्रेस को अच्छी खबर दी है. राज्य में लंबे समय तक गुटबाजी का शिकार रही कांग्रेस ने इस बार एकजुट होकर चुनाव लड़ा और नतीजे उसके पक्ष में गए और कमलनाथ ने सीएम की कुर्सी संभाली.
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छत्तीसगढ़
नक्सली हिंसा से प्रभावित राज्य छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया है और पिछले 15 साल से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे रमन सिंह की सत्ता से विदाई तय हो गई.
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पंजाब
कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब में कांग्रेस सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने राज्य में दस साल से राज कर रहे अकाली-बीजेपी गठबंधन को सत्ता से बाहर किया.
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पुडुचेरी
केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में भी इस समय कांग्रेस की सरकार है जिसका नेतृत्व वी नारायणसामी (फोटो में दाएं) कर रहे हैं. 2016 में वहां चुनाव हुए और तीस सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 17 सदस्य पहुंचे.
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बड़ी चुनौती
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह कैसे पार्टी के आधार को मजबूत करें. हालिया विधानसभा चुनावों में कामयाबी से वह गदगद हैं, लेकिन आने वाले आम चुनाव उनकी सबसे बड़ी परीक्षा हैं.
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वह कहती हैं, "मैं राजस्थान घूमी हूं, वहां की राजनीति से वाकिफ हूं तो कह सकती हूं कि सचिन पायलट ने बीते कई वर्षों में ग्रासरूट पर बहुत काम किया है. पायलट की लोकप्रियता में भी काफी तेजी से इजाफा हो रहा है. अशोक गहलोत ने एक बार कहीं कहा था कि यह शायद उनका 'आखिरी मौका' हो सकता है तो उनका यह बयान शायद काम कर गया."
निकिता चावला कहती हैं, "गहलोत और कमलनाथ, सोनिया गांधी के कंटेम्परेरी नेता भी हैं, इस बात को ध्यान में रखना चाहिए. 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के लिए पार्टी को अनुभव चाहिए, जो कमलनाथ और गहलोत के पास है. सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी अंदरखाने खुद को कमजोर नहीं करना चाहेगी."
राहुल की युवाओं को तरजीह देने के सवाल पर कांग्रेस पार्टी की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी पार्टी कहती हैं, "कांग्रेस एक लोकतांत्रिक पार्टी है. यहां हर फैसला गहन विचार-विमर्श के बाद ही होता है. पार्टी में वही फैसले होते हैं, जिस पर सभी की एकराय होती है. गहलोत और कमलनाथ पर एकराय बनी."
कौन सी पार्टी सबसे अमीर है, देखिए
भारत की कौन सी पार्टी कितनी अमीर है
भारत की सात राष्ट्रीय पार्टियों को 2016-2017 में कुल 1,559 करोड़ रुपये की आमदनी हुई है. 1,034.27 करोड़ रुपये की आमदनी के साथ बीजेपी इनमें सबसे ऊपर है. जानते हैं कि इस बारे में एडीआर की रिपोर्ट और क्या कहती है.
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भारतीय जनता पार्टी
दिल्ली स्थित एक थिंकटैंक एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी को एक साल के भीतर एक हजार करोड़ रूपये से ज्यादा की आमदनी हुई जबकि इस दौरान उसका खर्च 710 करोड़ रुपये बताया गया है. 2015-16 और 2016-17 के बीच बीजेपी की आदमनी में 81.1 फीसदी का उछाल आया है.
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कांग्रेस
राजनीतिक प्रभाव के साथ साथ आमदनी के मामले भी कांग्रेस बीजेपी से बहुत पीछे है. पार्टी को 2016-17 में 225 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसने खर्च किए 321 करोड़ रुपये. यानी खर्चा आमदनी से 96 करोड़ रुपये ज्यादा. एक साल पहले के मुकाबले पार्टी की आमदनी 14 फीसदी घटी है.
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बहुजन समाज पार्टी
मायावती की बहुजन समाज पार्टी को एक साल के भीतर 173.58 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसका खर्चा 51.83 करोड़ रुपये हुआ. 2016-17 के दौरान बीएसपी की आमदनी में 173.58 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. पार्टी को हाल के सालों में काफी सियासी नुकसान उठाना पड़ा है, लेकिन उसकी आमदनी बढ़ रही है.
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नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी
शरद पवार की एनसीपी पार्टी की आमदनी 2016-17 के दौरान 88.63 प्रतिशत बढ़ी. पार्टी को 2015-16 में जहां 9.13 करोड़ की आमदनी हुई, वहीं 2016-17 में यह बढ़ कर 17.23 करोड़ हो गई. एनसीपी मुख्यतः महाराष्ट्र की पार्टी है, लेकिन कई अन्य राज्यों में मौजूदगी के साथ वह राष्ट्रीय पार्टी है.
तस्वीर: AP
तृणमूल कांग्रेस
आंकड़े बताते हैं कि 2015-16 और 2016-17 के बीच ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की आमदनी में 81.52 प्रतिशत की गिरावट हुई है. पार्टी की आमदनी 6.39 करोड़ और खर्च 24.26 करोड़ रहा. राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा रखने वाली तृणमूल 2011 से पश्चिम बंगाल में सत्ता में है और लोकसभा में उसके 34 सदस्य हैं.
तस्वीर: DW
सीपीएम
सीताराम युचुरी के नेतृत्व वाली सीपीएम की आमदनी में 2015-16 और 2016-17 के बीच 6.72 प्रतिशत की कमी आई. पार्टी को 2016-17 के दौरान 100 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसने 94 करोड़ रुपये खर्च किए. सीपीएम का राजनीतिक आधार हाल के सालों में काफी सिमटा है.
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सीपीआई
राष्ट्रीय पार्टियों में सबसे कम आमदनी सीपीआई की रही. पार्टी को 2016-17 में 2.079 करोड़ की आमदनी हुई जबकि उसका खर्च 1.4 करोड़ रुपये रहा. लोकसभा और राज्यसभा में पार्टी का एक एक सांसद है जबकि केरल में उसके 19 विधायक और पश्चिम बंगाल में एक विधायक है.
तस्वीर: DW/S.Waheed
समाजवादी पार्टी
2016-17 में 82.76 करोड़ की आमदनी के साथ अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी सबसे अमीर क्षेत्रीय पार्टी है. इस अवधि के दौरान पार्टी के खर्च की बात करें तो वह 147.1 करोड़ के आसपास बैठता है. यानी पार्टी ने अपनी आमदनी से ज्यादा खर्च किया है.
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तेलुगु देशम पार्टी
आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी तेलुगुदेशम पार्टी को 2016-17 के दौरान 72.92 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि 24.34 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े. पार्टी की कमान चंद्रबाबू के हाथ में है जो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं.
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एआईएडीएमके और डीएमके
तमिलनाडु में सत्ताधारी एआईएडीएमके को 2016-17 में 48.88 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसका खर्च 86.77 करोड़ रुपये रहा. वहीं एआईएडीएमके की प्रतिद्वंद्वी डीएमके ने 2016-17 के बीच सिर्फ 3.78 करोड़ रुपये की आमदनी दिखाई है जबकि खर्च 85.66 करोड़ रुपया बताया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
एआईएमआईएम
बचत के हिसाब से देखें तो असदउद्दीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम सबसे आगे नजर आती है. पार्टी को 2016-17 में 7.42 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसके खर्च किए सिर्फ 50 लाख. यानी पार्टी ने 93 प्रतिशत आमदनी को हाथ ही नहीं लगाया. (स्रोत: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म)
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राजस्थान की राजनीति पर नजर रखने वाले पत्रकार शिवओम गोयल कहते हैं, "2019 का चुनाव मोदी बनाम राहुल होने जा रहा है. इसमें कोई दोराय नहीं है. सचिन पायलट और सिंधिया की पैठ महज अपने-अपने राज्यों में है, इसलिए इनकी तुलना राहुल से करना ठीक नहीं होगा."
राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है और ठीक ऐसा ही मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर है. क्या इससे भी कुछ लोग सकपकाए हुए हैं? इसके जवाब में राजनीतिक विश्लेषक संदीप शास्त्री कहते हैं, "इसका एक अर्थ यह भी है कि सचिन पायलट के पास मौके बहुत हैं, वह अभी सिर्फ 41 साल के हैं. उनके पास अथाह समय बचा है, लेकिन 67 साल के गहलोत और 72 साल के कमलनाथ को शायद आगे इस तरह का मौका नहीं मिल पाए. इसलिए उनके अनुभव और उम्र को देखते हुए उन्हें मौका दिया गया है."
हालांकि, निकिता एक सुझाव देते हुए कहती हैं, "मेरा मानना है कि राजस्थान में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए था और गहलोत को चाणक्य की भूमिका में रखना चाहिए था, इससे लोकसभा चुनाव में पार्टी को ज्यादा फायदा पहुंचता."
रीतू तोमर/आईएएनएस
राहुल गांधी ने सियासत की कब कौन सी सीढ़ी चढ़ी
राहुल गांधी अब भारत की सबसे पुरानी पार्टी के मुखिया हैं. एक नजर उनके सियासी करियर पर.
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गांधी परिवार की विरासत
राहुल गांधी का जन्म 19 जून 1970 को भारत के सबसे अहम राजनीतिक घराने में हुआ. वह राजीव गांधी और सोनिया गांधी की पहली संतान हैं. राहुल की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा उनसे दो साल छोटी हैं. उनके पिता, दादी और परनाना देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं.
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सियासी परिवार
राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी को उनके प्रशंसक आयरन लेडी कहते हैं जो लंबे समय तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं. लेकिन 1984 में उनके अंग रक्षकों ने ही उनकी हत्या कर दी. इसके बाद कांग्रेस और प्रधानमंत्री के तौर पर देश की जिम्मेदारी राहुल के पिता राजीव गांधी के कंधों पर आयी.
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पिता की मौत
1991 में एक चुनावी सभा के दौरान अपने पिता राजीव गांधी की हत्या राहुल गांधी और उनके परिवार के लिए एक बड़ा धक्का था. राजीव गांधी तमिलनाडु में एक सभा के दौरान श्रीलंकाई तमिल चरमपंथियों के आत्मघाती बम धमाके में मारे गये.
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राजनीति से दूरी
चंद सालों के भीतर गांधी परिवार के दो सदस्य राजनीति की भेंट चढ़ गये. ऐसे में सोनिया गांधी और उनके दोनों बच्चों ने सियासत और कांग्रेस से दूरी बना ली. 1992 के आम चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब रही. लेकिन पार्टी का आधार खिसकता गया.
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सियासत में वापसी
पार्टी में नई जान फूंकने के लिए सोनिया गांधी ने आखिरकार 1998 में राजनीति में आने का फैसला किया. 13वीं लोकसभा में वह विपक्ष की नेता बनीं. राहुल गांधी 2004 में राजनीति में दाखिल हुए और अमेठी से लोकसभा पहुंचे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/dpaweb
अनिच्छुक राजनेता
आलोचक राहुल गांधी को एक 'अनिच्छुक राजनेता' कहते हैं, लेकिन कांग्रेस में उन्हें लगातार आगे बढ़ाया गया है. 2007 में उन्हें पार्टी महासचिव के तौर पर अहम जिम्मेदारी सौंपी गयी. 2009 के आम चुनावों में कांग्रेस ने 262 सीटों के साथ अपना आधार और मजबूत किया. लेकिन उसका श्रेय राहुल को नहीं दिया जा सकता.
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कांग्रेस उपाध्यक्ष
2013 में राहुल गांधी को पार्टी उपाध्यक्ष बनाया गया. 2014 के चुनाव में उन्होंने पार्टी का नेतृत्व किया लेकिन कांग्रेस लोकसभा में सिर्फ 44 सीटों तक सिमट कर रह गयी. कई अहम राज्यों में भी कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा, इसलिए राहुल अकसर आलोचकों के निशाने पर रहे.
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पार्टी की कमान
दूसरी तरफ, कांग्रेस के भीतर इन आलोचनाओं पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया और राहुल गांधी को लगातार पार्टी का नेतृत्व सौंपने की तैयारियां जारी रहीं. आखिरकार अब वह घड़ी आ गयी जब राहुल गांधी पार्टी के प्रमुख बन रहे हैं. हालांकि इस दौरान एक तबका उनकी बहन प्रियंका को पार्टी में लाने की वकालत करता रहा है.
तस्वीर: Reuters/A. Dave
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी
राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया गया है. भारत के स्वाधीनता संग्राम की विरासत से उपजी पार्टी को देश की सबसे पुराने राजनीतिक दल होने का गौरव भी हासिल है. राहुल गांधी नेहरू परिवार के छठे सदस्य हैं जो कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये हैं.
तस्वीर: IANS
तंज और मजाक
राहुल गांधी अपनी मां सोनिया गांधी का स्थान लेंगे जो 17 साल से पार्टी की अध्यक्ष हैं. लेकिन यह भी सही है कि इतने सालों से राजनीति में रहने के बाजवूद अभी तक राहुल गांधी शायद जनता की नब्ज को नहीं पकड़ पाए हैं. सोशल मीडिया पर उन्हें लेकर अकसर मजाक और तंज चलता रहता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बड़ी परीक्षा
2019 के आम चुनाव राहुल गांधी के लिए बड़ी परीक्षा होंगे. अर्थव्यवस्था, नोटबंदी और बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के आगे राहुल कहीं नहीं टिकते. इसलिए पार्टी में नई जान फूंकना राहुल गांधी के लिए भारी मशक्कत वाला काम होगा.