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अन्ना का आंदोलनः क्या होगा अंजाम

२२ अगस्त २०११

अन्ना हजारे के आंदोलन को जबरदस्त जन समर्थन मिल रहा है. मुद्दा नया नहीं है लेकिन इसे लेकर लोगों में उबाल नया है. क्या है इसकी वजह और क्या होगा अंजाम. नई दुनिया के संपादक जयदीप कर्णिक की समीक्षा.

तस्वीर: AP

निश्चित ही जो कुछ हो रहा है वो अभूतपूर्व है. देश पर हुए 26/11 जैसे आतंकी हमले या फिर करगिल के समय भी सड़कों पर ऐसा जनसैलाब नहीं दिखाई दिया. अब तक यही होता आया है कि देश की आम जनता को इसी बात के लिए कोसा जाता रहा है कि वो मुद्दों को लेकर सड़कों पर नहीं आती. अपना विरोध दर्ज नहीं करवाती. वोट देने तक नहीं जाती.

ये ताने और उलाहने काम तो कर रहे थे, लेकिन लोगों को कोई ऐसा नेता नहीं दिख रहा था जो खुद बेदाग हो. जिसकी आवाज पर वो बाहर निकल आएं. अन्ना हजारे के रूप में उम्मीद की ऐसी किरण दिखते ही लोग सड़कों पर निकल पड़े. मानो प्रेशर कूकर का वॉल्व फट गया हो. महंगाई और भ्रष्टाचार ने लोगों के मन में गुस्से का ऐसा बारूद भर दिया कि उन्हें बस ऐसी ही किसी चिंगारी का इंतजार था. ये चिंगारी भी अभी केवल उस बाती को ही सुलगा रही है जो बम में लगी होती है. इसके बम तक पहुंचने से पहले ही कोई ठोस हल अगर इस चिंगारी को नहीं बुझा पाया तो धमाका होते देर नहीं लगेगी. धमाके के परिणाम सोचकर ही रूह कांप उठती है. ये भी संभव है कि धमाके से बड़ा आमूलचूल परिवर्तन हो जाए. और ये भी संभव है कि ऐसा धमाका अराजकता को जन्म दे दे. अहिंसक आंदोलन हिंसक हो जाए. व्यवस्था के प्रति लोगों का ये आक्रोश आने वाले समय में शहरी नक्सलवाद को भी जन्म दे सकता है.

तस्वीर: dapd

इसीलिए भीड़ के ये लंबे रेले देखते समय हर सोचने समझने वाला व्यक्ति एक दूसरे से ये सवाल कर रहा है कि क्या इसका कोई परिणाम निकलेगा? इस भीड़ से जाकर जन लोकपाल बिल का अर्थ पूछना या सरकारी लोकपाल से अंतर पूछना भी बेमानी है. भीड़ बस भीड़ का काम कर रही है. आप कहते थे कि लोग सड़कों पर नहीं आते, लो जी हम सड़कों पर आ गए. इस भीड़ को जो दिशा दी जाएगी ये वहां मुड़ जाएगी. भीड़ नेतृत्व नहीं कर सकती. वो केवल नेतृत्व करने वाले की शक्ति बढ़ा सकती है. और ऐसा वो कर रही है. ये वो लोग हैं जो अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में भ्रष्टाचार का सामना कर रहे हैं या चाहे अनचाहे उसका हिस्सा बन चुके हैं. लेकिन वो चाहते हैं कि ये सब बंद हो और देश की व्यवस्था सुधरे.

करोड़ों अरबों के घोटाले से वे खास तौर पर भिन्ना जाते हैं. भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कों पर आने के बाद भी उनके मन में कई सवाल हैं. क्या केवल जन लोकपाल के आ जाने से ही भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा? क्या लोकपाल भ्रष्ट नहीं हो सकता? क्या आम जीवन में भी रिश्वत खत्म हो जाएगी? ये वो चुभते सवाल हैं जिनका हल ढूंढते हुए जनता सड़कों पर आ गई है. नेताओं मंत्रियों के घर के दरवाजे तक भी पहुंच गई है. वो इससे आगे ना बढ़े इसके लिए नेतृत्वकर्ताओं को जल्दी ही इन सवालों के जवाब ढूंढने होंगे.

समीक्षाः जयदीप कर्णिक (संपादक, नई दुनिया, इंदौर)

संपादनः ए जमाल

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