स्कॉटलैंड का एक टापू दुनिया का पहला ऐसा द्वीप बन गया है जो विशेष रूप से अक्षय ऊर्जा के साथ अपनी सभी जरूरतों को पूरा करता है. लोगों का कहना है कि बदलाव के कारण जीवन बेहतर हुआ है. बिजली के बिल भी कम हुए हैं.
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स्कॉटलैंड के उत्तर पश्चिम तट पर बसे द्वीप 'एग' पर सूरज चमक रहा है और सूरज की ये तेज किरणें एडी स्कॉट के लिए खुशखबरी लेकर आई हैं. एडी स्कॉट द्वीप की अत्याधुनिक अक्षय ऊर्जा योजना के बिजली विशेषज्ञ हैं. स्कॉट बताते हैं, "यह सिस्टम करीब पांच साल से चल रहा है. सिस्टम को चलाने के लिए 85 फीसदी अक्षय ऊर्जा और 15 फीसदी जनरेटर का इस्तेमाल होता है." यहां के लोगों ने इस योजना का नाम 'एगट्रिसिटी' 'एग' की 'इलेक्ट्रिसिटी' रखा है. द्वीप में रहने वाले सैकड़ों लोगों को पहले डीजल जनरेटर से बिजली मिलती थी. जनरेटर से शोर होता, प्रदूषण के अलावा उसे चलाना भी महंगा साबित होता. डीडब्ल्यू से बातचीत में स्कॉट ने बताया, "एक दिन में पांच घंटे की बिजली के लिए एक बैरल डीजल खरीदना पड़ता था. अब मुझे चौबीस घंटे बिजली मिलती है और खर्च महीने में सिर्फ तीस पाउंड ही होता है."
आदर्श स्थिति
अटलांटिक महासागर के किनारे पर स्थित इस द्वीप के लिए स्थिति बेहद अच्छी है. द्वीप पर हवा की कोई कमी नहीं है. सोलर सेल और पवन चक्की के पास स्थित सबस्टेशन के जरिए पूरे द्वीप के घरों तक अंडरग्राउंड तार के जरिए बिजली पहुंचाई जाती है. द्वीप में रहने वाले लोगों को पर्याप्त बिजली मिल सके इसके लिए यह सुनिश्चित किया जाता है कि कोई भी पांच किलोवॉट से ज्यादा बिजली इस्तेमाल न करें. व्यवसायों के लिए दस किलोवॉट बिजली की सीमा है.
पवन ऊर्जा का जोर
पिछले साल दुनिया भर में इतने सारे विंड पार्क बने जितने पहले कभी इतने नहीं बने थे. 2012 के अंत तक 282 गीगावॉट ऊर्जा पवन चक्कियों की मदद से पैदा की गई. यह उतना ही है जितना कि कोयले के 500 पावर प्लांट मिल कर पैदा करेंगे.
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एक ही काफी है
आर्थिक मुनाफे के लिए लगाई जा रही पवन चक्कियों का साइज भी बड़ा होता है. एक बड़ी पवन चक्की करीब 3.4 मेगावॉट बिजली पैदा करने में सक्षम है, जो कि 1,900 घरों के लिए काफी है.
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अब तक सबसे ज्यादा
विश्व पवन ऊर्जा संगठन के अनुसार 2012 में अब तक के सर्वाधिक विंड मिल पार्क बनाए गए. इनमें से ज्यादातर यूरोप, एशिया और उत्तरी अमेरिका में हैं. अब आगे ऐसी ही उम्मीद लैटिन अमेरिका और पूर्वी यूरोप में की जा रही है. दुनिया के करीब 100 देश पवन ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं जो कि कुल बिजली की आवश्यकता का 3 फीसदी है.
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सस्ता और टिकाऊ
पवन ऊर्जा के समर्थकों का कहना है कि इसके जैसा कोई दूसरा ऊर्जा का स्रोत नहीं. यह दूसरे स्रोतों की तरह महंगा भी नहीं है और पर्यावरण के लिए भी अच्छा है. वे देश, जो बिजली के लिए दूसरे देशों की मदद पर निर्भर हैं, उनके लिए यह एक अच्छा जरिया हो सकता है.
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लोकप्रिय होती पवन चक्कियां
इन दिनों अलग अलग साइज और आकार में पवन चक्कियां बाजार में मौजूद हैं. छोटी पवन चक्कियां एक छोटे गांव या कुछ घरों में बिजली के लिए पर्याप्त हैं. इनकी मांग बढ़ती जा रही है.
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कम हवा में भी
जर्मनी में कम जनसंख्या वाले इलाकों में भी पवन ऊर्जा का इस्तेमाल पिछले कुछ समय में बढ़ा है. बड़े बड़े ब्लेडों वाली पवन चक्कियां बनाने में जर्मनी आगे है. इस तरह की चक्कियां जंगलों या कम हवा वाले इलाकों में भी काम करती हैं.
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समुद्री इलाकों में भी
समुद्र में खड़े विंड मिल के खेत अभी भी बहुत प्रचलन में नहीं है. इनकी देख रेख आसान नहीं है. जमीन पर पवन चक्कियों के मुकाबने इनमें दुगनी लागत आती है. ब्रिटेन के समुद्री विंडमिल फार्म अब तक सबसे ज्यादा सफल हैं. इनमें सालाना तीन गीगावॉट ऊर्जा बनती है.
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डेनमार्क सबसे आगे
पवन ऊर्जा के इस्तेमाल में डेनमार्क सबसे आगे है. डेनमार्क की 30 फीसदी ऊर्जा आवश्यकता इसी के जरिए पूरी हो रही है. 2020 तक इसके दुगने होने की उम्मीद की जा रही है.
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पवन ऊर्जा की बिजली से गैस
पवन ऊर्जा से बनी बिजली की मदद से अब हाइड्रोजन गैस बनाना संभव हो गया है. इससे अक्षय ऊर्जा का संरक्षण हो सकता है. जरूरत होने पर और हवा ना चलने पर भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.
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पवन पर किसका अधिकार?
जर्मनी में ज्यादातर खेतों में खड़ी पवन चक्कियों के मालिक यहां के स्थानीय लोग हैं. इन चक्कियों से मिलने वाली बिजली को बेच कर मिला मुनाफा लोग आपस में बांट लेते हैं.
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बढ़ता उद्योग
जर्मनी के करीब एक लाख लोग पवन ऊर्जा उद्योग से जुड़े हैं और इन कंपनियों में काम कर रहे हैं. दुनिया में सबसे ज्यादा पवन ऊर्जा अमेरिका और चीन में बनती है. हुसुम में होने वाले विंड ट्रेड फेयर में दुनिया भर के पवन ऊर्जा उत्पादक मिलते हैं.
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बेहतर भविष्य
जर्मनी में ऊर्जा की 9 फीसदी आवश्यकता हवा से पूरी हो रही है. नई स्कीमों और प्लानिंग के चलते 2020 तक आंकड़ों में 16 फीसदी उछाल की उम्मीद की जा रही है.
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स्कॉट का कहना है कि कई बार द्वीप में जरूरत से ज्यादा बिजली पैदा हो जाती है. इस द्वीप के लिए विशेष बिजली योजना ही असाधारण नहीं है. 1997 से द्वीप का मालिकाना हक यहां के निवासियों के पास है. इस तरह की स्थिति स्कॉटलैंड के लिए अनोखी है. 1970 में काम करने यहां आई मैगी फिएफे कहती हैं कि द्वीप का मालिक होने से लोग सशक्त हुए हैं, "पिछले पंद्रह सालों में एग में काफी सुधार आया है. यहां बहुत से रोजगार पैदा हुए हैं. बहुत से ऐसे नौजवान हैं जो वापस आकर यहां बस गए हैं."
जीवन बदला
साल में छह महीने से ज्यादा यहां रहने वाले लोग अपने आप रेजिडेंट कमेटी के सदस्य बन जाते हैं. हर महीने होने वाली रेजिडेंट कमेटी की बैठकों में ही पहली बार अक्षय ऊर्जा योजना के बारे में विचार सामने आया. फिएफे बताती हैं, "हर बैठक में बिजली का मुद्दा उठता. लोग पवन चक्की लगाने के बारे में मांग करते. स्थानीय निवेश की अपील के बाद नई बिजली योजना को वास्तविकता बनने में समय नहीं लगा."
द्वीप की मुख्यभूमि से दूर समंदर की लहरें रेतों से टकरा रही हैं. स्थानीय डाकिया जॉन कोरमैक लकड़ी के बने घर के बरामदे पर खड़े होकर सूरज के ढलने का नजारा देख रहे हैं. कुछ अर्से पहले तक उन्हें अगली सुबह तक बिना बिजली के रहना पड़ता था. लेकिन अब हालात बदल गए हैं. कोरमैक कहते हैं, "मेरे पास पेट्रोल से चलने वाला जनरेटर था. जिसका मैं कभी कभी इस्तेमाल करता था. लेकिन ज्यादातर मैं बिना बिजली के ही गुजारा कर लेता था. इस योजना से मेरी जिंदगी में क्रांति आ गई."