मेघालय में खासी समुदाय की महिलाएं जमीन के मालिकाना हक की लड़ाई लड़ रही हैं. दरअसल अब तय हुआ है कि अगर ये महिलाएं किसी गैर खासी समुदाय के पुरुष के साथ शादी करेंगी तो इनका जमीन पर हक खत्म हो जाएगा.
विज्ञापन
भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से में मौजूद मेघालय को जो बात खास बनाती है, वह है मातृसत्ता. मातृसत्ता का मतलब यहां महिलाओं का वर्चस्व है. बाकी हिस्सों में जहां शादी के बाद बच्चे पिता के वंशज कहलाते हैं जबकि यहां शादी के बाद बच्चे पिता के बजाए मां का उपनाम लगाते हैं. यहां खासी नाम प्रमुख जनजाति की महिलाओं को दूसकी जनजाति के पुरुषों से शादी करने का हक है. लेकिन अब यही मुद्दा बनता जा रहा है.
पिछले महीने मेघालय डिस्ट्रिक्ट काउंसिल ऑफ खासी हिल्स की ओर से खासी हिल्स ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट (खासी सोशल कस्टम ऑफ लाइनेज) एक्ट 1997 में संशोधन किया गया है. संशोधित नियमों के अनुसार, गैर खासी समुदाय के सदस्यों से शादी करने पर खासी जनजाति की महिलाओं को इस जनजाति के तहत मिलने वाले लाभों से वंचित होना पड़ेगा. संशोधित नियमों के अनुसार, कोई भी खासी समुदाय की महिला जो गैर खासी समुदाय के सदस्य से शादी करती है या उसके गैर खासी समुदाय के सदस्य से बच्चे होते हैं तो उस महिला के साथ-साथ उन बच्चों को भी खासी समुदाय में शामिल नहीं माना जाएगा. ये सभी खासी समुदाय के तहत मिलने वाली सुविधाओं के लिए किसी भी प्रकार दावा पेश नहीं कर पाएंगे. इसमें जमीन का मालिकाना हक प्रमुख रूप से शामिल है.
बता दें, खासी हिल्स ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल पश्चिमी खासी हिल्स, पूर्वी खासी हिल्स और रि-भोई जिले को कवर करती है. अगर राज्य सरकार इस बिल को मान्यता दे देती है तो खासी समुदाय की परंपरा पर असर पड़ेगा.
यहां आदमियों की नहीं औरतों की चलती है
पितृसत्तात्मक माने जाने वाले एशियाई समाज में कुछ ऐसी भी जगहें और समुदाय हैं, जहां महिलाओं के पास पुरुषों जैसे ही अधिकार हैं. महिलाओं के आवाज बुलंद है और फैसलों में भी इनकी समान भागदारी है.
तस्वीर: DW/Bijoyeta Das
समान हक
मातृसत्तात्मक समाज में ऐसा अक्सर देखा जाता है कि घरों की जिम्मेदारी महिलाओं के पास होती है. जायदाद पर मालिकाना हक महिलाओं का होता है और वे इसे अपनी बेटियों को देती हैं. यहां पति शादी कर महिला के घर में रहने जाते हैं. वहीं पुरूषों के पास राजनीतिक और सामाजिक मसलों पर निर्णय लेने का हक होता है. ऐसी व्यवस्था को यहां शक्तियों का सही बंटवारा माना जाता है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/L. Xianbiao
खासी (भारत)
पूर्वोत्तर के खासी समुदाय में लड़की का जन्म जश्न का मौका होता है और वहीं लड़का पैदा होना एक साधारण बात. आमतौर पर परिवार की बड़ी बेटी का परिवार की विरासत पर हक होता है. अगर किसी दंपत्ति के बेटी नहीं होती तो वे लड़की गोद लेकर अपनी जायदाद उसे सौंप सकते हैं. खासी समुदाय की इस प्रथा के चलते काफी पुरूषों ने अपने हकों के लिये नये समुदाय बना लिये हैं.
तस्वीर: DW/Bijoyeta Das
चाम (दक्षिण भारत)
कंबोडिया, वियतनाम और थाईलैंड में भी दक्षिण भारत के चाम समुदाय की मान्यतायें बहुत अधिक प्रचलित हैं. चाम समुदाय भी मातृसत्तात्मक व्यवस्था पर विश्वास करता है और परिवार की जायदाद भी महिलाओं को मिलती है. यहां की लड़कियों को अपने लिये पति चुनने का भी अधिकार है. आमतौर पर लड़की के मां-बाप लड़के के परिवार से बात करते हैं और शादी के बाद लड़के ज्यादातर लड़की के परिवार क साथ रहने जाते हैं.
तस्वीर: Getty Images/T.Chhin Sothy
गारो (भारत)
गारो समुदाय में मां शब्द एक पदवी की तरह है. परिवार कि सबसे छोटी बेटी को मां अपनी पारिवारिक जायदाद सौंपती है. पहले किशोरावस्था में लड़के अपने माता-पिता का घर छोड़कर गांव की डॉर्मेटरी में रहने चले जाते थे. लेकिन ईसाई धर्म का प्रभाव इन पर पड़ा और अब समुदाय में भी मां-बाप अपने बच्चों को बराबरी के अधिकार और माहौल दे रहे हैं.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
मोस (चीन)
मोस समुदाय में लोग महिलाओं के नेतृत्व वाले बड़े परिवारों में रहते हैं. इस समुदाय में पति और पिता जैसे कोई मसला ही नहीं है. यहां के लोग चलते-फिरते विवाह (वाकिंग मैरिज) पर भरोसा करते हैं, जहां पुरूष महिलाओं से मिलने जा सकते हैं, रूक सकते हैं लेकिन यहां लोग साथ नहीं रहते. इन शादियों से पैदा हुये बच्चों को पालने की जिम्मेदारी महिलाओं पर होती है. जैविक पिता की बच्चों को पालने में कोई भूमिका नहीं होती.
तस्वीर: picture alliance/dpa/M.Hongmin
मिनांगकाबाऊ (इंडोनेशिया)
करीब 40 लाख की आबादी वाले इंडोनेशिया के इस समुदाय को विश्व का सबसे बड़ा मातृसत्तात्मक समाज कहा जाता है. मूल रूप से इन्हें जीववादी (एनिमिस्ट) माना जाता था लेकिन हिंदु और बौद्ध धर्म का इन पर काफी असर पड़ा, कई लोगों ने इस्लाम भी अपना लिया. ये अपने समाज को कुरान पर आधारित मानते हैं, जो महिलाओं को जायदाद पर अधिकार देने और सामुदायिक निर्णय लेने से नहीं रोकता.
तस्वीर: Getty Images/R.Pudyanto
छोड़ी पुरानी रीतियां
आज इन मातृसत्तात्मक समाजों में भी बदलाव महसूस किया जा रहा है. ये समाज भी बदल रहा है और नये रीति-रिवाजों को अपना रहा है. कुछ समुदायों में पुरूषों ने अपने हक के लिये आवाजें उठाईं हैं और अब वे ऐसी परंपराओं की खिलाफत कर रहे हैं. रिपोर्ट- ब्रेंडा हास/एए
तस्वीर: FINDLAY KEMBER/AFP/Getty Images
7 तस्वीरें1 | 7
'स्वतंत्रता पर हमला'
खासी महिलाओं का कहना है कि ये नियम गलत हैं और उनकी स्वतंत्रता पर हमला है. यह बिल सीधे-सीधे मातृसत्ता को खत्म करने की साजिश है क्योंकि इसके बाद उनके गैर खासी पति से पैदा हुए बच्चे खासी वंशज नहीं कहलाएंगे. जनजाति को मिलने वाली सुविधाएं और जमीन का स्थाननांतरण खत्म हो जाएगा.
वहीं, मेघालय डिस्ट्रिक्ट काउंसिल ऑफ खासी हिल्स का कहना है कि ऐसा जनजाति की पहचान को बरकरार रखने के लिए किया जा रहा है. काउंसिल के प्रमुख एच. एस शैला का कहना है, ''जनजाति में तरह-तरह की शादियां हो रही हैं. जमीन पर मालिकाना हक बचाने के लिए यही उपाय है.''
भारत के इस इलाके में बेटियों की चलती है
01:21
'नए नियम के पीछे है पितृसत्तामक सोच'
हालांकि स्थानिय अखबार की संपादक और एक्टिविस्ट पैट्रिकिया मुखिम काउंसिल की बात से सहमत नहीं हैं. उनके मुताबिक, खासी समुदाय में अलग-अलग समुदायों या जनजातियों में शादियां होना कोई नई बात नहीं है. यह सदियों से होता आ रहा है. नए नियम पितृसत्तात्मक सोच रखने वालों ने बनाए है.
खासी जनजाति की महिलाएं सोशल मीडिया पर अपनी आवाज उठा रही हैं. उनके साथ देश के दूसरे हिस्सों की महिलाएं भी जुड़ चुकी हैं और बिल का विरोध कर रही है.
वीसी/एनआर (रॉयटर्स)
पूर्वोत्तर में कहां किसकी सरकार है?
पूर्वोत्तर में कहां किसकी सरकार है?
भारत के राष्ट्रीय मीडिया में पूर्वोत्तर के राज्यों का तभी जिक्र होता है जब वहां या तो चुनाव होते हैं या फिर कोई सियासी उठापटक. चलिए जानते है सात बहनें कहे जाने वाले पूर्वोत्तर के राज्यों में कहां किसकी सरकार है.
तस्वीर: IANS
असम
अप्रैल 2016 में हुए राज्य विधानसभा के चुनावों में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया और लगातार 15 साल से सीएम की कुर्सी पर विराजमान तरुण गोगोई को बाहर का रास्ता दिखाया. बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री रह चुके सर्बानंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री पद सौंपा गया.
तस्वीर: IANS
त्रिपुरा
बीजेपी ने त्रिपुरा में सीपीएम के किले को ध्वस्त कर फरवरी 2018 में हुए चुनावों में शानदार कामयाबी हासिल की. इस तरह राज्य में बीस साल तक चली मणिक सरकार की सत्ता खत्म हुई. बीजेपी ने सरकार की कमान जिम ट्रेनर रह चुके बिप्लव कुमार देब को सौंपी.
तस्वीर: IANS
मेघालय
2018 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद सरकार बनाने से चूक गई. एनपीपी नेता कॉनराड संगमा ने बीजेपी और अन्य दलों के साथ मिल कर सरकार का गठन किया. कॉनराड संगमा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के बेटे हैं.
तस्वीर: IANS
मणिपुर
राज्य में मार्च 2017 में हुए चुनावों में कांग्रेस 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी जबकि 21 सीटों के साथ बीजेपी दूसरे नंबर पर रही. लेकिन बीजेपी अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाब रही. कई कांग्रेसी विधायक भी बीजेपी में चले गए. कभी फुटबॉल खिलाड़ी रहे बीरेन सिंह राज्य के मुख्यमंत्री हैं.
तस्वीर: IANS
नागालैंड
नागालैंड में फरवरी 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में एनडीए की कामयाबी के बाद नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेता नेफियू रियो ने मुख्यमंत्री पद संभाला. इससे पहले भी वह 2008 से 2014 तक और 2003 से 2008 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं.
तस्वीर: IANS
सिक्किम
सिक्किम में पच्चीस साल तक लगातार पवन कुमार चामलिंग की सरकार रही. लेकिन 2019 में हुए विधानसभा चुनावों में उनकी सरकार में कभी मंत्री रहे पी एस गोले ने उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया. चामलिंग की पार्टी एसडीएफ के 10 विधायक भाजपा और 2 गोले की पार्टी एसकेएम में चले गए. अब वो अपनी पार्टी के इकलौते विधायक हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Images
अरुणाचल प्रदेश
अप्रैल 2014 में हुए चुनावों में कांग्रेस ने 60 में 42 सीटें जीतीं और नबाम तुकी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बरकरार रही. लेकिन 2016 में राज्य में सियासी संकट में उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी. इसके बाद कांग्रेस को तोड़ पेमा खांडू मुख्यमंत्री बन गए और बाद में बीजेपी में शामिल हो गए.
तस्वीर: IANS/PIB
मिजोरम
2018 तक मिजोरम में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी. तब लल थनहवला मुख्यमंत्री थे. लेकिन दिसंबर में हुए चुनावों में मिजो नेशनल फ्रंट ने बाजी मार ली. अब जोरामथंगा वहां के मुख्यमंत्री हैं.