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अपनी ही गिरेबां में झांकती कांग्रेस

२९ दिसम्बर २०१०

भारत में कांग्रेस पार्टी ने ऐसी किताब जारी की है, जिसने अपने ही नेताओं पर चोट की है. किताब में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी पर सवाल उठाए गए हैं और कहा गया कि ऐसा वक्त भी आया, जब इंदिरा गांधी ने असीमित शक्ति हाथ में ले ली.

अपनों पर ही सवालतस्वीर: AP

किताब में लिखा गया है, "इमरजेंसी के दौरान सामान्य राजनीतिक कार्यवाही और मानवाधिकारों का हनन हुआ. प्रेस पर सेंसर लगा. न्यायपालिका की शक्तियां नाटकीय ढंग से घटा दी गईं. उस वक्त की प्रधानमंत्री के हाथ में पार्टी और सरकार की असीमित ताकत आ गई." पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर भारत में जून, 1975 से जनवरी, 1977 तक इमरजेंसी रही.

कांग्रेस पार्टी के भारत में 125 साल पूरे होने पर द कांग्रेस एंड द मेकिंग ऑफ द इंडियन नेशन नाम की किताब जारी की गई है, जिसका संपादन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने किया है.

इंदिरा गांधी के शासन की कई खामियों का जिक्र हैतस्वीर: AP

इमरजेंसी के दौर के बारे में किताब में कहा गया है कि उस वक्त भारत में संजय गांधी बड़े नेता बन कर उभर रहे थे और उन्होंने जो परिवार नियोजन की मुहिम चलाई थी, उसके बाद ही सरकार भी इसे सख्ती से अमल में लाने के लिए बाध्य हुई. लेकिन संजय गांधी पर भी सवाल उठाए गए हैं, "उन्होंने झुग्गी झोपड़ियों की सफाई, दहेज विरोधी उपाय और साक्षरता के लिए भी प्रयास किए. लेकिन ये काम उन्होंने मनमर्जी और हठधर्मिता के साथ किए, जिससे आम लोग नाराज हुए."

किताब में जिक्र किया गया है कि किस तरह इमरजेंसी के शुरुआती दिनों में लोगों ने सोचा कि सारे काम अच्छे तरीके से हो रहे हैं और प्रशासन बेहतर तरीके से काम कर रहा है. लेकिन परिवार नियोजन, नसबंदी और झुग्गियों की सफाई जैसे कुछ क्षेत्रों में जबरदस्ती काम कराने का नुकसान हुआ.

किताब में महान नेता जयप्रकाश नारायण की तरफ भी अंगुली उठाई गई है. इसमें कहा गया है कि उनके स्वार्थहीन भावना पर कोई सवाल नहीं उठ सकता और उनकी गरिमा पर भी कोई बात नहीं की जा सकती. लेकिन उनके सिद्धांत पक्के नहीं थे. किताब में जेपी के मूवमेंट को असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक बताया गया है. जेपी ने 1970 के दशक में संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था, जिसके बाद भारत में इमरजेंसी लगाई गई थी. किताब में इस बात का जिक्र है कि इस दौरान एक लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया.

राहुल गांधी की तारीफतस्वीर: UNI

राजीव गांधी के बारे में कहा गया है कि उनमें धैर्य की कमी थी और वह अपनी टीम को बार बार बदलते थे. यह काम वह पार्टी में भी करते थे और सरकार में भी. किताब में कहा गया, "राजीव गांधी ने अपने मशहूर बॉम्बे भाषण में कहा था कि पार्टी में बदलाव की जरूरत है लेकिन इसे कभी पूरा नहीं किया गया. लंबे वक्त से पार्टी के चुनाव का इंतजार था. लेकिन ये बार बार टाले जाते रहे."

दिलचस्प बात है कि किताब में पीवी नरसिंह राव के शासनकाल की तारीफ की गई है. इसमें लिखा गया, "यह उनकी सरकार की कामयाबी थी कि उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया. नेहरू-गांधी परिवार के बाहर वह पहले शख्स थे, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया." नरसिंह राव ने राजीव काल के आर्थिक बदलाव की नीति को आगे बढ़ाया और यही उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी सफलता रही.

किताब में कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी की भी तारीफ है और कहा गया है कि उत्तर प्रदेश और कुछ दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनावों में उन्होंने अच्छा काम किया. किताब में बिहार चुनावों का कोई जिक्र नहीं है, जहां कांग्रेस का डिब्बा गुल हो गया है.

रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल

संपादनः ए कुमार

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