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अपने अतीत से अनभिज्ञ जर्मन युवा

२३ मई २००९

आधुनिक जर्मन गणतंत्र ने अपने 60 साल पूरे कर लिए हैं. इस दौरान दूसरे विश्वयुद्ध के बाद देश को नए सिरे से खड़ा किया गया. आर्थिक मोर्चे पर कमाल की प्रगति हुई. बर्लिन की दीवार बनी और फिर गिरी. युवाओं को कितना पता है ये सब.

जर्मन गणतंत्र के 60 सालतस्वीर: AP

आज की जर्मन नौजवान पीढ़ी के बहुत सारे लोगों ने बेशक 60 साल की सभी ऐतिहासिक घटनाओं को होते हुए नहीं देखा होगा. लेकिन इन युवाओं को अपने देश और उसके इतिहास के बारे में कितना पता है. ये तो ज़्यादातर लोगों को पता है कि बर्लिन की दीवार गिर गई है. जब उनसे पूछा गया कि इसके अलाववा उन्हें अतीत के बारे और क्या जानकारी है तो एक युवा ने कहा, "1990 में विश्व कप फ़ुटबॉल जीतना. क्योंकि यह पहली बड़ी घटना है, जो मुझे याद हैं. दीवार गिरना - नहीं, मुझे ठीक से याद नहीं. शायद इसलिए भी क्योंकि उस वक्त मैं बहुत छोटा था. लेकिन टीवी में मैंने देखा है कि बुज़ुर्ग लोग बहुत ख़ुश थे, एक दूसरे को बधाई दे रहे थे. एक दूसरे से कह रहे थे, हां... अब अच्छा हुआ."

लेकिन जब 60 सालों के दौरान मील का पत्थर बनने वाली घटनाओं के बारे में पूछा गया तो, कई लोग अपना पीछा छुड़ाते दिखे. इस सवाल का जबाव तो ख़ैर कोई नहीं दे पाया कि 1961 में क्या हुआ था. यही वह साल था जब बर्लिन की दीवार बनाई गई थी. अक्सर युवाओं को इस बात का कोई मलाल भी नहीं था कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है. इस युवती को ही लीजिए, "मुझे यह सब जानने की बिल्कुल भी ज़रूत नहीं है. इसलिए न जानने से मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. अतीत में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है... हम लोग भविष्य के लिए जीते हैं."

इस तरह के तर्क न जाने कितने ही युवा देते हैं. वे न तो जानते हैं और न ही जानना चाहते हैं. इस बात पर प्रोफ़ेसर उडो आर्नोल्ड को कोई आश्चर्य नही होता. प्रोफ़ेसर आर्नोल्ड तीस साल से बॉन विश्वविद्यालय में इतिहास पढ़ाते हैं. आज के युवा के लिए तो इतिहास ही 90 के दशक के मध्य से शुरू होता है. वे कहते हैं. "पचास साल की घटनाएं इन युवाओं के लिए स्कूली विषय हैं. ठीक वैसे ही, जैसा कि पहला विश्वयुद्ध. तो मुझे कोशिश करनी पड़ती है कि किसी तरह इस विषय को युवाओं के साथ जोड़ा जाए, उन्हें एक नाते का अहसास हो, और उसी के साथ वह दिमाग में भी उतरे."

उन्हें भी कभी ऐसा ही लगा था. प्रोफेसर आर्नोल्ड कहते हैं, "मुझे नौ साल की उम्र में जर्मनी के संसद के बारे में जानकारी हो गई थी. इसकी वजह? वजह है एक ख़ास डाक टिकट. मैंने जो टिकट जमा किए, उनसे सीखा." डाक टिकट अनिका हार्टमैन के काम नहीं आने वाले हैं. हार्टमैन राजनीति शास्त्र के राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान में काम करती हैं. वह ऐसे सेतु बनाने में व्यस्त हैं जिससे युवा अतीत तक पहुंच सके. कहिए वह इतिहास के लिए प्रचार करती हैं. मिसाल के तौर पर उन्होंने एक शॉर्ट फ़िल्म बनाई है.

इस फ़िल्म को देखने पर युवाओं को बहुत सी बातों का पता चलता हैं. क्या हुआ था और अब क्या हो रहा है. फ़िल्म का नाम है. और अब? इतिहास की हमे क्यों जरूरत है. इसका जल्द प्रीमियर भी होने वाला है. फिल्म में युवा लोग ही अपने तरीकों से जर्मनी के इतिहास के बारे में जानकारी देते हैं. युवा नाचते हैं. रोज़मर्रा के बारे में बताते हैं और जर्मन संविधान पढ़ते हैं.

इस फ़िल्म की एक बेवसाइट भी है जो सभी अहम ऐतिहासिक तथ्यों के बारे में जानकारी देती है. अनिका हार्टमैन बताती हैं. "इस तरह, मिसाल के तौर पर आप फिल्म 89 पर रोक भी सकते हैं. फिर वहां एक संक्षिप्त लेकिन अपने आप में पूर्ण जानकारी दी जाती है: 89 में दीवार गिर गई थी. और फिर आगे और आगे. हां उससे जुड़े लिंक भी आपको मिलते हैं. "

प्रोफ़ेसर उडो आर्नोल्ड मानते हैं कि यह अनूठा और दिलचस्प तरीक़ा है. इसमें बहुत ज़्यादा तारीखों और तथ्यो की भी भरमार नहीं है. वह कहते हैं, "स्कूल की आम क्लास से बाहर इस तरह सीखना अपने आप में बेहतरीन माध्यम है."


रिपोर्ट - बेंयामिन ब्राडेन

संपादन - ए कुमार

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