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अपने घर में परदेसी चीन के कामगार

१४ जून २०११

आप्रवास के साथ विस्थापन जुड़ा होता है, चाहे वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो, या देश के अंदर. यह बात आज चीन में देखी जा रही है, जहां आप्रवासी कामगारों की वजह से नई सामाजिक समस्याएं पैदा हो रही है.

***Achtung: Nur zur Berichterstattung über Greenpeace verwenden!*** Every morning, workers at a denim washing factory must search through wastewater to scoop out stones that are washed with the fabric in industrial washing machines to make stonewash denim. Xintang *** Greenpeace has found high degrees of industrial pollution in two factory towns in Guangdong province, China. Both these towns have economies that center around textile production. Gurao, in Shantou, produces 200 million bras every year and is known as one of China’s leading towns for underwear manufacturing. Xintang, in Zengcheng, is devoted to the complete manufacturing process of jeans, from weaving, dyeing and washing to tailoring and packaging. *** undatiert, eingestellt November 2010
तस्वीर: Greenpeace/Qiu Bo

चीन के दक्षिण में त्सेंगछेंग नगर में हिंसा पर उतारू आप्रवासी कामगारों को काबू करने के लिए दंगा विरोधी पुलिस दस्तों को भेजना पड़ा. एक गर्भवती महिला ठेलेवाली के साथ पुलिस ज्यादती के बाद वहां सप्ताहांत के दौरान हिंसा भड़क उठी थी.

स्थिरता को खतरा

मंगलवार को प्रकाशित चीन के स्टेट कौंसिल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के अंदर दसियों लाख कामगारों का आप्रवास स्थिरता के लिए एक गंभीर खतरा बनता जा रहा है. रिपोर्ट में ध्यान दिलाया गया है कि देहाती इलाकों से आने वाले आप्रवासी कामगारों और छोटे व्यापारियों की भारी तादाद बड़े शहरों में अपनी किस्मत आजमाने आती है, लेकिन यहां उन्हें बिन बुलाए मेहमानों की तरह देखा जाता है और उनके अधिकार भी सीमित हैं.

रिफॉर्म नामक मैगजीन में छपे इस अध्ययन में कहा गया है कि देहात से शहर की ओर पलायन का यह सिलसिला अगले कई दशकों तक जारी रहेगा और अगर शहरी इलाकों में उनकी देखभाल, रिहायशी बंदोबस्त और कानूनी दर्जे का ख्याल न रखा जाए तो वे देश की स्थिरता के लिए एक गंभीर खतरा बन सकते हैं.

तस्वीर: picture alliance/Newscom

रिपोर्ट के अनुसार शहरों में देहाती इलाकों से आए कामगार हाशिए पर होते हैं, उन्हें सस्ते मजदूर के तौर पर देखा जाता है, उन्हें शहरी जिंदगी में शामिल करने के बदले उनके साथ भेदभाव किया जाता है, यहां तक कि नुकसान पहुंचाया जाता है.

वापस गांव नहीं जाना

चीन के राष्ट्रपति हू जिनताओ और प्रधानमंत्री वेन जिआबाओ अक्सर कह चुके हैं कि साढ़े पंद्रह लाख आप्रवासी कामगारों सहित 75 लाख देहाती लोगों का जीवन स्तर सुधारना कम्युनिस्ट पार्टी का एक प्रमुख लक्ष्य है. एक अध्ययन में कहा गया है कि आप्रवासी कामगारों के वेतन कुछ बढ़े हैं, बकाये वेतन की धन राशि कुछ घटी है, लेकिन अब भी वह 4.3 फीसदी के बराबर है.

सिर्फ 0.8 फीसदी आप्रवासी कामगारों के पास अपने घर है. बाकी लोग कारखाने से मुहैया कराए गए क्वॉर्टरों में रहते हैं. लेकिन खासकर नौजवान कामगार गांव वापस नहीं जाना चाहते. अगर वे जाएं भी तो कोई फायदा नहीं, क्योंकि खेती का काम वे भूल चुके हैं. लेकिन अभी तक 80 फीसदी कामगार अपने खेत बनाए रखना चाहते हैं. कल का क्या भरोसा, खासकर अगर वह शहराती कल हो?

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: ए कुमार

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