क्या परमाणु वैज्ञानिक की हत्या पर पलटवार करेगा ईरान?
३० नवम्बर २०२०
ईरान में देश के प्रमुख परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरिजादे के अंतिम संस्कार के बीच इस सवाल पर बहस भी चल रही है कि उनकी हत्या का बदला कब और कैसे लिया जाए. ईरान फखरिजादे की हत्या के लिए इस्राएल को जिम्मेदार मान रहा है.
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फखरिजादे की हत्या शुक्रवार को तेहरान के पास उनके सुरक्षाकर्मियों और अज्ञात बंदूकधारियों के बीच हुई गोलीबारी में मारे गए थे. सोमवार 30 नवंबर को उनका अंतिम संस्कार होना है. उनकी हत्या पर रोष प्रकट करते हुए ईरान की संसद ने देश के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े स्थलों पर अंतरराष्ट्रीय निरिक्षण रोकने की मांग की है. देश के एक उच्च अधिकारी ने यह भी सुझाया है कि ईरान को वैश्विक परमाणु प्रसार निरोध संधि को छोड़ देना चाहिए.
अमूमन, ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े फैसले देश की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद लेती है और संसद द्वारा पास किए गए विधेयकों को देश के शक्तिशाली गार्जियंस परिषद का अनुमोदन मिलना जरूरी होता है. राष्ट्रपति हसन रूहानी ने जोर दे कर कहा है कि देश अपना बदला "समय आने पर" लेगा और जल्दीबाजी कर किसी "जाल" में नहीं फंसेगा.
इस्राएल का कहना है कि फखरिजादे ईरान के एक ऐसे सैन्य परमाणु कार्यक्रम के मुखिया थे जिसके होने के बारे में ईरान हमेशा से इनकार करता आया है. 2008 में अमेरिका ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़ी गतविधियों के लिए उन पर प्रतिबंध लगाए थे. रविवार को उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए पवित्र शहर कॉम ले जाया गया था, जिसके बाद शव को ईरान के संस्थापक इमाम खोमेनी की मजार पर ले जाया गया.
सोमवार को तेहरान से दिखाई जा रही लाइव वीडियो में वर्दीधारी पुरुषों को एक जुलूस में फखरिजादे की तस्वीर के इर्द गिर्द इकठ्ठा होते हुए दिखाया गया. इस्राएल ने उनकी हत्या पर आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा है, जो कि ऐसे समय पर हुई है जब बतौर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के उदघाटन में दो महीने से भी कम का समय बचा है.
बाइडेन ने संकेत दिए हैं कि उनका प्रशासन राष्ट्रपति ट्रंप के परमाणु संधि को छोड़ देने के फैसले को पलट कर संधि में फिर से शामिल हो सकता है, लेकिन फखरिजादे की हत्या से ईरान में ही कई लोग संधि के खिलाफ हो गए हैं. ईरान के एक्सपेडिएन्सी परिषद के मुखिया मोहसिन रेजाइ ने कहा, "ईरान को संधि पर पुनर्विचार करने से रोकने का कोई कारण नहीं है." ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खमेनी पहले ही फखरिजादे के हत्यारों को सजा दिलवाने की मांग कर चुके हैं.
इस्राएली अखबार हारेत्ज के अनुसार फखरिजादे की हत्या का बाइडेन के राष्ट्रपति चुने जाने से सीधा संबंध है. अखबार ने कहा, "हत्या जिस समय पर की गई है वो बाइडेन के लिए परमाणु संधि को पुनर्जीवित करने की योजनाओं के प्रति इस्राएल की आलोचना का स्पष्ट संदेश है." सितंबर में ही इस्राएल से अपने संबंध सामान्य करने के बाद यूएई ने फखरिजादे की हत्या की निंदा की और संयम की जरूरत पर जोर दिया.
संधि में शामिल ब्रिटेन ने कहा है कि वो फखरिजादे की हत्या के बाद मध्य पूर्व में तनाव के गहरा जाने को लेकर चिंतित है. तुर्की ने हत्या को एक "आतंकवादी" घटना बताया और कहा कि इससे "इलाके में शांति को नुकसान" हुआ है.
शिया बहुल ईरान में कभी ऐसे शाह का शासन था जिन्हें जनता अमेरिका की कठपुतली मानने लगी. एक मौलवी ने इस आक्रोश का फायदा उठाया और 1979 में इस्लामिक क्रांति कर डाली.
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आक्रोश के बीज
ईरान की इस्लामी क्रांति के बीज कई मायनों में 1963 में पड़े. तत्कालीन शाह, मोहम्मद रजा शाह पहलवी ने श्वेत क्रांति का एलान किया. ये ऐसे आर्थिक और सामाजिक सुधार थे, जो ईरान के परंपरागत समाज को पश्चिमी मूल्यों की तरफ ले जाते थे. इनका विरोध होने लगा.
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शाह के शाही ख्बाव
1973 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दामों में भारी गिरावट आई. इससे ईरान की आमदनी चरमरा गई. लोग संकट में फंसे थे और शाह श्वेत क्रांति के सफल होने के ख्बावों में. इसी दौरान मौलवियों के एक धड़े ने श्वेत क्रांति को इस्लाम पर चोट करार दिया.
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लोग जुटते गए
सितंबर 1978 में ईरान में मोहम्मद रजा शाह पहलवी के खिलाफ प्रदर्शन भड़क उठे. धीरे धीरे मौलवियों के समूह ने प्रदर्शनों का नेतृत्व संभाल लिया. मौलवियों को फ्रांस में रह रहे अयातोल्लाह खोमैनी से निर्देश मिल रहे थे.
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अमेरिका की कठपुतली
लोगों में मोहम्मद रजा शाह की नीतियों के प्रति बहुत आक्रोश था. आलोचक कहते थे कि शाह अमेरिका के इशारों पर नाच रहे थे. लोग इससे खीझ गए थे. शाह ने आक्रोश को शांत करने के बजाए प्रदर्शकारियों को दबाने के लिए मार्शल लॉ लागू कर दिया.
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खूनी संघर्ष
जनवरी 1979 आते आते पूरे ईरान में हालात बिल्कुल गृह युद्ध जैसे हो गए. प्रदर्शनकारी, निर्वासन में रह रहे अयातोल्लाह खोमैनी की वापसी की मांग कर रहे थे. उस समय सेना उन पर गोलियां चला रही थी.
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भाग गए शाह
हालात बेकाबू हो गए. शाह को परिवार समेत ईरान से भागना पड़ा. लेकिन भागने से पहले शाह विपक्षी नेता शापोर बख्तियार को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त कर गए.
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खोमैनी की वापसी
शापोर बख्तियार ने अयातोल्ला खोमैनी को ईरान वापस लौटने की इजाजत दे दी. लेकिन उन्होंने यह शर्त रखी कि प्रधानमंत्री वही रहेंगे.
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लौट आए खोमैनी
बख्तियार से ग्रीन सिग्नल मिलते ही अयातोल्लाह खोमैनी ने 14 साल बाद फ्रांस के निर्वासन से देश वापस लौटने का एलान किया. यह तस्वीर 11 फरवरी 1979 को छपे कायहान अखबार की है.
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तेहरान में स्वागत
12 फरवरी 1979 को खोमैनी एयर फ्रांस की फ्लाइट में सवार होकर पेरिस से तेहरान के लिए निकले. विमान जब तेहरान में लैंड हुआ तो क्रांतिकारी धड़े के नेताओं ने खोमैनी का जोरदार स्वागत किया.
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खोमैनी का सीधा दखल
तेहरान में लोगों को संबोधित करते हुए खोमैनी ने कहा, "मैं सरकार का गठन करुंगा." तेहरान के बेहशत ए जाहरा में उनका भाषण को सुनने के लिए एक लाख से ज्यादा लोग जमा हुए थे.
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समानान्तर सत्ता
खोमैनी ने लोगों से बख्तियार सरकार के खिलाफ प्रदर्शन जारी रखने की अपील की. इसी बीच 16 फरवरी को खोमैनी ने मेहदी बाजारगान को अंतरिम सरकार का नया प्रधानमंत्री घोषित कर दिया.
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प्रदर्शन का इस्लामीकरण
ईरान में दो प्रधानमंत्री हो गए. एक बख्तियार और दूसरे बाजारगान. बाजारगान के पीछे खोमैनी के साथ साथ बड़ा जन समर्थन था. धीरे धीरे खोमैनी ने प्रदर्शन को धार्मिक रंग दे दिया.
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सेना में फूट
इसी बीच खबर आई कि ईरान की वायुसेना खोमैनी के समर्थन में उतर गई है. 19 फरवरी 1979 को कायहान अखबार की इस तस्वीर में वायु सैनिक खोमैनी को सलाम करते दिख रहे हैं.
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आपस में भिड़े सैनिक
20 फरवरी को तेहरान में एक निर्णायक घटना हुई. शाह के प्रति वफादारी दिखाने वाले इंपीरियल गार्ड के सैनिकों ने एयरफोर्स डिफेंस ट्रूप्स पर हमला कर दिया.
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ढह गया पुराना ढांचा
इसके बाद मार्च तक हिंसक झड़पें चलती रही. धीरे धीरे सेना भी हथियारबंद विद्रोहियों के साथ इमाम खोमैनी के समर्थन में झुकती चली गई.
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इस्लामिक ईरान के सर्वेसर्वा
अप्रैल 1979 में एक जनमत संग्रह के बाद इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान का एलान किया गया. सरकार चुनी गई और खोमैनी को देश का सर्वोच्च धार्मिक नेता घोषित किया गया. खोमैनी के उत्तराधिकारी अयातोल्लाह खमेनेई आज भी इसी भूमिका में हर सरकार से ऊपर हैं.