सऊदी पत्रकार जमाल खशोगी की गुमशुदगी पर कई सवाल उठ रहे हैं. माना जा रहा है कि उनकी हत्या कर दी गई. लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि कोई सऊदी नागरिक रहस्यमयी रूप से विदेश में गायब हो गया हो.
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खालेद बिन फरहान अल सऊद सऊदी अरब के राजघराने से नाता रखते हैं. वैसे तो वह अपने नाम के आगे "प्रिंस" लगाते हैं लेकिन उनका जीवन राजकुमारों जैसा नहीं है. 2004 से वह जर्मनी में रह रहे हैं. उन्हें सऊदी अरब से भाग कर यहां आना पड़ा. 41 वर्षीय अल सऊद बताते हैं कि आज भी सऊदी सरकार उन्हें किसी तरह वापस लाने की कोशिश में लगी है. उनका कहना है कि जमाल खशोगी की ही तरह, उनके लिए भी जाल बिछाया गया था.
वह बताते हैं कि सितंबर में मिस्र की राजधानी काहिरा के एक बड़े होटल में एक गुप्त मीटिंग रखी गई थी. सऊदी दूतावास के कुछ कर्मचारी लाखों डॉलर का चेक लिए वहां पहुंचे. उन्होंने अल सऊद के एक रिश्तेदार को मुलाकात के लिए बुलाया था, "उन्होंने मेरे रिश्तेदार से कहा कि वे मेरी मदद करना चाहते हैं क्योंकि मेरे पास पैसे नहीं बचे हैं. उन्होंने कहा कि मुझे सिर्फ इतना करना है कि काहिरा स्थित सऊदी दूतावास में आ कर वह चेक ले जाना है. लेकिन मैं जानता था कि यह एक जाल है."
इस घटना के लगभग दो हफ्ते बाद अल सऊद को जमाल खशोगी की गुमशुदगी के बारे में पता चला. दरअसल खशोगी सऊदी अरब के पत्रकार हैं, जो कुछ समय से अमेरिका में रह रहे थे. उन्हें सऊदी सरकार के कड़े आलोचकों में गिना जाता रहा है. आखिरी बार उन्हें दो अक्टूबर को इस्तांबुल के सऊदी कंसुलेट में जाते हुए देखा गया था. वे अपनी शादी से जुड़े कुछ दस्तावेज लेने वहां गए थे. तुर्की का कहना है कि वहीं उनकी हत्या कर दी गई और इस काम के लिए सऊदी अरब से एक पूरे स्क्वॉड को वहां भेजा गया था. सऊदी अरब अब तक इससे इनकार कर रहा है और खशोगी की मौत की पुष्टि भी नहीं हो सकी है.
अल सऊद को यकीन है कि अगर वह काहिरा गए होते, तो उनका भी यही हश्र हुआ होता, "वह मुझे मारने के लिए कोई अमानवीय तरीका अपनाते ताकि दूसरों को भी डरा सकें." अल सऊद के पास जर्मनी की नागरिकता है और वे ड्यूसलडॉर्फ शहर में रहते हैं. स्थानीय खुफिया सेवा के अधिकारी लगातार उनसे संपर्क में रहते हैं और ड्यूसलडॉर्फ पुलिस भी उनके मामले से अवगत है. समचार एजेंसी डीपीए के अनुसार पिछले साल सऊदी अरब ने जर्मनी से इस बारे में भी जानने की कोशिश की कि किस तरह से अल सऊद को वापस सऊदी भेजा जा सकता है लेकिन जर्मनी ने इसका जवाब देने की जरूरत नहीं समझी.
सऊदी अरब देश से बाहर रह रहे अपने राजकुमारों पर लगातार नजर रखता है. इससे पहले ऐसे कम से कम तीन मामले सामने आ चुके हैं, जब सऊदी राजकुमार रहस्यमयी तरीके से गायब हो गए. जनवरी 2016 में पेरिस में रहने वाले राजकुमार सुल्तान बिन तुर्की ने अपने पिता से मिलने की इच्छा व्यक्त की, जो काहिरा में थे. इसके लिए सऊदी कंसुलेट की ओर से एक प्राइवेट जेट भेजा गया जिसने उड़ान भरने के बाद काहिरा की जगह रियाद का रुख कर लिया.
सऊदी अरब को बदलने चला एक नौजवान शहजादा
31 साल के सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने अपने फैसलों से ना सिर्फ सऊदी अरब में, बल्कि पूरे मध्य पूर्व में खलबली मचा रखी है. जानिए वह आखिर क्या करना चाहते हैं.
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अहम जिम्मेदारी
शाह सलमान ने अपने 57 वर्षीय भतीजे मोहम्मद बिन नायेफ को हटाकर अपने बेटे मोहम्मद बिन सलमान को क्राउन प्रिंस घोषित किया है. प्रिंस मोहम्मद बिन नायेफ से अहम गृह मंत्रालय भी छीन लिया गया है.
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संकट में मध्य पूर्व
सुन्नी देश सऊदी अरब में यह फेरबदल ऐसे समय में हुआ है जब एक तरफ ईरान के साथ सऊदी अरब का तनाव चल रहा है तो दूसरी तरफ कतर से रिश्ते तोड़ने के बाद खाड़ी देशों में तीखे मतभेद सामने आये हैं.
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सब ठीक ठाक है?
कुछ लोगों का कहना है कि यह फेरबदल सऊद परिवार में अंदरूनी खींचतान को दिखाता है. लेकिन सऊदी मीडिया में चल रही एक तस्वीर के जरिये दिखाने की कोशिश की गई है कि सब ठीक ठाक है. इसमें प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान प्रिंस मोहम्मद बिन नायेफ का हाथ चूम रहे हैं.
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तेजी से बढ़ता रुतबा
2015 में सऊदी शाह अब्दुल्लाह का 90 की आयु में निधन हुआ था. उसके बाद शाह सलमान ने गद्दी संभाली है. तभी से मोहम्मद बिन सलमान का कद सऊदी शाही परिवार में तेजी से बढ़ा है.
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सत्ता पर पकड़
नवंबर 2017 में सऊदी अरब में कई ताकतवर राजकुमारों, सैन्य अधिकारियों, प्रभावशाली कारोबारियों और मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया है. आलोचकों ने इसे क्राउन प्रिंस की सत्ता पर पकड़ मजबूत करने की कोशिश बताया.
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सुधारों के समर्थक
नये क्राउन प्रिंस आर्थिक सुधारों और आक्रामक विदेश नीति के पैरोकार हैं. तेल पर सऊदी अरब की निर्भरता को कम करने के लिए मोहम्मद बिन सलमान देश की अर्थव्यवस्था में विविधता लाना चाहते हैं.
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तेल का खेल
सऊदी अरब दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश है. उसकी जीडीपी का एक तिहायी हिस्सा तेल उद्योग से आता है जबकि सरकार को मिलने वाले राजस्व के तीन चौथाई का स्रोत भी यही है. लेकिन कच्चे तेल के घटते दामों ने उसकी चिंता बढ़ा दी है.
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सत्ता पर पकड़
मोहम्मद बिन सलमान क्राउन प्रिंस होने के अलावा उप प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री भी हैं. इसके अलावा तेल और आर्थिक मंत्रालय भी उनकी निगरानी में हैं, जिसमें दिग्गज सरकारी तेल कंपनी आरामको का नियंत्रण भी शामिल है.
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जंग छेड़ी
पिता के गद्दी संभालते ही युवा राजकुमार को देश का रक्षा मंत्री बनाया गया था. इसके बाद उन्होंने कई अरब देशों के साथ मिलकर यमन में शिया हूथी बागियों के खिलाफ जंग शुरू की.
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आक्रामक विदेश नीति
यमन में हस्तक्षेप सऊदी विदेश नीति में आक्रामकता का संकेत है. इसके लिए अरबों डॉलर के हथियार झोंके गये हैं. इसके चलते सऊदी अरब के शिया प्रतिद्वंद्वी ईरान पर भी दबाव बढ़ा है.
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ईरान पर तल्ख
ईरान को लेकर मोहम्मद बिन सलमान के तेवर खासे तल्ख हैं. वह भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की तरह ईरान को मध्य पूर्व में अस्थिरता की जड़ मानते हैं. उन्हें ईरान के साथ कोई समझौता मंजूर नहीं.
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युवा नेतृत्व
प्रिंस मोहम्मद सऊदी अरब में खूब लोकप्रिय हैं. उनके उभार को युवा नेतृत्व के उभार के तौर पर देखा जा रहा है. अर्थव्यवस्था के लिए उनकी महत्वाकांक्षी योजनाओं से कई लोगों को बहुत उम्मीदें हैं.
इसके अलावा दो अन्य राजकुमार तुर्की बिन बंदार और सऊद बिन सैफ अल नस्र भी यूरोप में गायब हो चुके हैं. इन सभी मामलों में अपहरण की ही बात कही जा रही है. जानकारों का कहना है कि 2015 में जब से राजकुमार मोहम्मद बिन सलमान ने देश की कमान संभाली है, तब से इस तरह के मामले ज्यादा देखने को मिल रहे हैं.
अल सऊद को भी अपनी सुरक्षा की चिंता है. वह बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में वह कम से कम दस बार सऊदी राजदूत से मिल चुके हैं. हर बार वह बर्लिन के किसी कैफे को ही मुलाकात के लिए चुनते हैं ताकि महफूज रह सकें. अल सऊद के अनुसार सऊदी राजदूत ने कई बार उन्हें देश वापस ले जाने और वहां जा कर राजा के साथ मामले सुलझाने का प्रस्ताव दिया लेकिन हर बार उन्होंने उसे ठुकरा दिया, "अगर मैं चला गया होता, तो आज मैं आपसे बात नहीं कर रहा होता."
उनका कहना है कि जर्मनी में वह सुरक्षित तो महसूस करते हैं लेकिन यह भी जानते हैं कि सऊदी सरकार रुकने वाली नहीं है. ऐसे में उनके लिए एकमात्र विकल्प है सतर्क रहना और लगातार अपने वकील के संपर्क में रहना.
आईबी/एके (डीपीए)
इन हकों के लिए अब भी तरस रही हैं सऊदी महिलाएं
सऊदी अरब में लंबी जद्दोजहद के बाद महिलाओं को ड्राइविंग का अधिकार तो मिल गया है. लेकिन कई बुनियादी हकों के लिए वे अब भी जूझ रही हैं.
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पुरुषों के बगैर नहीं
सऊदी अरब में औरतें किसी मर्द के बगैर घर में भी नहीं रह सकती हैं. अगर घर के मर्द नहीं हैं तो गार्ड का होना जरूरी है. बाहर जाने के लिए घर के किसी मर्द का साथ होना जरूरी है, फिर चाहे डॉक्टर के यहां जाना हो या खरीदारी करने.
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फैशन और मेकअप
देश भर में महिलाओं को घर से बाहर निकलने के लिए कपड़ों के तौर तरीकों के कुछ खास नियमों का पालन करना होता है. बाहर निकलने वाले कपड़े तंग नहीं होने चाहिए. पूरा शरीर सिर से पांव तक ढका होना चाहिए, जिसके लिए बुर्के को उपयुक्त माना जाता है. हालांकि चेहरे को ढकने के नियम नहीं हैं लेकिन इसकी मांग उठती रहती है. महिलाओं को बहुत ज्यादा मेकअप होने पर भी टोका जाता है.
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मर्दों से संपर्क
ऐसी महिला और पुरुष का साथ होना जिनके बीच खून का संबंध नहीं है, अच्छा नहीं माना जाता. डेली टेलीग्राफ के मुताबिक सामाजिक स्थलों पर महिलाओं और पुरुषों के लिए प्रवेश द्वार भी अलग अलग होते हैं. सामाजिक स्थलों जैसे पार्कों, समुद्र किनारे और यातायात के दौरान भी महिलाओं और पुरुषों की अलग अलग व्यवस्था होती है. अगर उन्हें अनुमति के बगैर साथ पाया गया तो भारी हर्जाना देना पड़ सकता है.
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रोजगार
सऊदी सरकार चाहती है कि महिलाएं कामकाजी बनें. कई सऊदी महिलाएं रिटेल सेक्टर के अलावा ट्रैफिक कंट्रोल और इमरजेंसी कॉल सेंटर में नौकरी कर रही हैं. लेकिन उच्च पदों पर महिलाएं ना के बराबर हैं और दफ्तर में उनके लिए खास सुविधाएं भी नहीं है.
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आधी गवाही
सऊदी अरब में महिलाएं अदालत में जाकर गवाही दे सकती हैं, लेकिन कुछ मामलों में उनकी गवाही को पुरुषों के मुकाबले आधा ही माना जाता है. सऊदी अरब में पहली बार 2013 में एक महिला वकील को प्रैक्टिस करने का लाइसेंस मिला था.
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खेलकूद में
सऊदी अरब में लोगों के लिए यह स्वीकारना मुश्किल है कि महिलाएं भी खेलकूद में हिस्सा ले सकती हैं. जब सऊदी अरब ने 2012 में पहली बार महिला एथलीट्स को लंदन भेजा तो कट्टरपंथी नेताओं ने उन्हें "यौनकर्मी" कह कर पुकारा. महिलाओं के कसरत करने को भी कई लोग अच्छा नहीं मानते हैं. रियो ओलंपिक में सऊदी अरब ने चार महिला खिलाड़ियों को भेजा था.
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संपत्ति खरीदने का हक
ऐसी औपचारिक बंदिश तो नहीं है जो सऊदी अरब में महिलाओं को संपत्ति खरीदने या किराये पर लेने से रोकती हो, लेकिन मानवाधिकार समूहों का कहना है कि किसी पुरुष रिश्तेदार के बिना महिलाओं के लिए ऐसा करना खासा मुश्किल काम है.