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दुश्मन को चावल क्यों भेजेगा ये देश

२१ जून २०१९

एक अच्छे पड़ोसी की तरह दक्षिण कोरिया अपने चिर प्रतिद्वंद्वी उत्तर कोरिया को 50,000 टन चावल भेजने जा रहा है. लेकिन सूखे के कारण खाद्यान्न संकट का सामना कर रहे उत्तर कोरिया को उससे और भी बहुत कुछ चाहिए.

Nordkorea - Hungersnot
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/World Food Program/S. Buhr

दक्षिण कोरिया ने कहा है कि विश्व खाद्य कार्यक्रम के तहत उसकी उत्तर कोरिया को 50 हजार टन चावल भेजने की योजना है.  कुछ ही हफ्तों के भीतर उत्तर कोरिया के लिए ये उनकी दूसरी मदद की खेप होगी. पड़ोसी देश के खाद्यान्न संकट से उबरने और उसके साथ द्विपक्षीय संबंधों में बेहतरी लाने के लिए दक्षिण कोरिया ऐसे कदम उठा रहा है. इसके पहले भेजी गई खेप 80 लाख डॉलर की राशि थी, जो दक्षिण कोरिया ने विश्व खाद्य कार्यक्रम और यूएन चिल्ड्रंस फंड को दी थी, जो बच्चों और गर्भवती महिलाओं को मेडिकल और पोषण से जुड़ी मदद पहुंचाता है.

यूएन एजेंसी ने एक महीने पहले बताया था कि करीब एक करोड़ उत्तर कोरियाई लोगों को "गंभीर खाद्य संकट" झेलना पड़ रहा है. करीब एक दशक बाद इतना भयंकर सूखा पड़ा है. लेकिन यहां खाने की कमी का पुराना इतिहास रहा है. चार दशक पहले भी वहां ऐसी स्थिति पैदा हुई थी जब कम वर्षा के कारण देश को खाद्यान्न संकट झेलना पड़ा था. 

मदद के इरादे के साथ खाने की समस्या जल्दी हल नहीं होने वाली. इतनी भारी मात्रा में चावल भेजने में काफी समय लगेगा. पिछले अनुभव के आधार पर अंदाजा लगाया जा रहा है कि इसमें शायद दो महीने तक लग जाएंगे. वायुमार्ग की बजाए पानी के रास्ते भेज कर इस प्रक्रिया को तेज करने की योजना पर भी विचार किया जा रहा है.

उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच बातचीत में फरवरी से ही रुकावट का दौर चल रहा है. जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के साथ चल रही उत्तर कोरियाई प्रमुख किम जोंग उन की वार्ता परमाणु शक्ति को लेकर मतभेदों के कारण खत्म हो गई. लेकिन दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन ने उम्मीद जताई है कि उनकी मानवतावादी मदद से दोनों के संबंध सुधरेंगे. उत्तर कोरिया की दक्षिण से इससे भी बड़ी चीजें हासिल करने की इच्छा है. जैसे कि वह दक्षिण कोरिया से 'इंटर-कोरियन इकोनॉमिक प्रोजेक्ट' फिर से शुरु करवाना चाहते है, जो अमेरिका-नीत प्रतिबंधों के कारण बंद हो गया है.

उत्तर और दक्षिण में विभाजित होने के समय से ही दोनों देशों की हालत खराब थी. लेकिन दक्षिण कोरिया अमेरिकी सहयोग में खूब फला-फूला.  उधर, उत्तर कोरिया ने अपने नेता किम इल सुंग के नेतृत्व में तानाशाही व्यवस्था को अपनाया, जबकि दक्षिण कोरिया में बाद में लोकतंत्र बन गया. दक्षिण कोरिया ने खुद को तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़ाया. दोनों देशों के छह दशक पुराने संबंध अब तक नहीं सुधरे हैं. उत्तर कोरिया पर दक्षिण कोरिया में हमले करवाने के आरोप लगे और अब उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षणों ने दक्षिण कोरिया की नाक में दम कर दिया है.

लेफ्ट लिबरल माने जाने वाले मून जे इन जब से दक्षिण कोरिया के नए राष्ट्रपति बने हैं, उनका जोर अर्थव्यवस्था और उत्तर कोरिया के साथ संबंध बहाली पर रहा है. उत्तर कोरिया के साथ संबंध सुधारना मजबूरी भी है और चुनौती भी. मून जानते हैं कि अमेरिका की सुरक्षा गारंटी और रॉकेटरोधी प्रणालियों की तैनाती के बावजूद लड़ाई होने पर बर्बादी दक्षिण कोरिया की होगी और पीढ़ियों की मेहनत नष्ट हो जाएगी.

आरपी/आईबी (एपी)

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