एक अच्छे पड़ोसी की तरह दक्षिण कोरिया अपने चिर प्रतिद्वंद्वी उत्तर कोरिया को 50,000 टन चावल भेजने जा रहा है. लेकिन सूखे के कारण खाद्यान्न संकट का सामना कर रहे उत्तर कोरिया को उससे और भी बहुत कुछ चाहिए.
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दक्षिण कोरिया ने कहा है कि विश्व खाद्य कार्यक्रम के तहत उसकी उत्तर कोरिया को 50 हजार टन चावल भेजने की योजना है. कुछ ही हफ्तों के भीतर उत्तर कोरिया के लिए ये उनकी दूसरी मदद की खेप होगी. पड़ोसी देश के खाद्यान्न संकट से उबरने और उसके साथ द्विपक्षीय संबंधों में बेहतरी लाने के लिए दक्षिण कोरिया ऐसे कदम उठा रहा है. इसके पहले भेजी गई खेप 80 लाख डॉलर की राशि थी, जो दक्षिण कोरिया ने विश्व खाद्य कार्यक्रम और यूएन चिल्ड्रंस फंड को दी थी, जो बच्चों और गर्भवती महिलाओं को मेडिकल और पोषण से जुड़ी मदद पहुंचाता है.
यूएन एजेंसी ने एक महीने पहले बताया था कि करीब एक करोड़ उत्तर कोरियाई लोगों को "गंभीर खाद्य संकट" झेलना पड़ रहा है. करीब एक दशक बाद इतना भयंकर सूखा पड़ा है. लेकिन यहां खाने की कमी का पुराना इतिहास रहा है. चार दशक पहले भी वहां ऐसी स्थिति पैदा हुई थी जब कम वर्षा के कारण देश को खाद्यान्न संकट झेलना पड़ा था.
मदद के इरादे के साथ खाने की समस्या जल्दी हल नहीं होने वाली. इतनी भारी मात्रा में चावल भेजने में काफी समय लगेगा. पिछले अनुभव के आधार पर अंदाजा लगाया जा रहा है कि इसमें शायद दो महीने तक लग जाएंगे. वायुमार्ग की बजाए पानी के रास्ते भेज कर इस प्रक्रिया को तेज करने की योजना पर भी विचार किया जा रहा है.
उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच बातचीत में फरवरी से ही रुकावट का दौर चल रहा है. जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के साथ चल रही उत्तर कोरियाई प्रमुख किम जोंग उन की वार्ता परमाणु शक्ति को लेकर मतभेदों के कारण खत्म हो गई. लेकिन दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन ने उम्मीद जताई है कि उनकी मानवतावादी मदद से दोनों के संबंध सुधरेंगे. उत्तर कोरिया की दक्षिण से इससे भी बड़ी चीजें हासिल करने की इच्छा है. जैसे कि वह दक्षिण कोरिया से 'इंटर-कोरियन इकोनॉमिक प्रोजेक्ट' फिर से शुरु करवाना चाहते है, जो अमेरिका-नीत प्रतिबंधों के कारण बंद हो गया है.
उत्तर और दक्षिण में विभाजित होने के समय से ही दोनों देशों की हालत खराब थी. लेकिन दक्षिण कोरिया अमेरिकी सहयोग में खूब फला-फूला. उधर, उत्तर कोरिया ने अपने नेता किम इल सुंग के नेतृत्व में तानाशाही व्यवस्था को अपनाया, जबकि दक्षिण कोरिया में बाद में लोकतंत्र बन गया. दक्षिण कोरिया ने खुद को तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़ाया. दोनों देशों के छह दशक पुराने संबंध अब तक नहीं सुधरे हैं. उत्तर कोरिया पर दक्षिण कोरिया में हमले करवाने के आरोप लगे और अब उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षणों ने दक्षिण कोरिया की नाक में दम कर दिया है.
लेफ्ट लिबरल माने जाने वाले मून जे इन जब से दक्षिण कोरिया के नए राष्ट्रपति बने हैं, उनका जोर अर्थव्यवस्था और उत्तर कोरिया के साथ संबंध बहाली पर रहा है. उत्तर कोरिया के साथ संबंध सुधारना मजबूरी भी है और चुनौती भी. मून जानते हैं कि अमेरिका की सुरक्षा गारंटी और रॉकेटरोधी प्रणालियों की तैनाती के बावजूद लड़ाई होने पर बर्बादी दक्षिण कोरिया की होगी और पीढ़ियों की मेहनत नष्ट हो जाएगी.
25 जून 1950 को कोरियाई युद्ध शुरू हुआ. इसमें सोवियत रूस समर्थित उत्तर कोरिया की तरफ से 75000 सैनिक पश्चिम समर्थित दक्षिण कोरिया से भिड़ने चले. जुलाई आते आते अमेरिकी सेना भी दक्षिण कोरिया की ओर से आ गई.
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अंतरराष्ट्रीय साम्यवाद के खिलाफ
अमेरिकी अधिकारियों के लिए यह अंतरराष्ट्रीय साम्यवाद के खिलाफ जंग थी. उनके पास इस युद्ध का विकल्प एक ही था रूस और चीन के साथ जंग या फिर कुछ लोग जिसकी चेतावनी देते है यानी तीसरा विश्वयुद्ध. अमेरिका इससे बचना चाहता था.
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50 लाख लोगों की मौत
1953 के जुलाई के अंत में जंग खत्म हुई तो सब मिला कर 50 लाख लोगों की जान जा चुकी थी. इसमें आधे से ज्यादा आम लोग थे. 40 हजार से ज्यादा अमेरिकी सैनिक कोरिया में मारे गए और 1 लाख से ज्यादा घायल हुए.
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जापानी साम्राज्य का हिस्सा
बीसवीं सदी की शुरुआत से ही कोरिया जापानी साम्राज्य का हिस्सा था. दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद अमेरिका और रूस को यह तय करना था कि दुश्मनों के साम्राज्य का क्या किया जाए. 1945 में अमेरिका के दो अधिकारियों ने इसे 38 वें समानांतर के साथ दो हिस्से में बांटने का फैसला किया.
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38 वां समानांतर
यह वो अक्षांश रेखा है जो पृथ्वी की भूमध्य रेखा से उत्तर में 38 डिग्री पर स्थित है. यह यूरोप, भूमध्यसागर, एशिया, प्रशांत महासागर, उत्तर अमेरिका, और अटलांटिक सागर से होकर गुजरती है. कोरियाई प्रायद्वीप में इसके एक तरफ उत्तर तो दूसरी तरफ दक्षिण कोरिया है.
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रूस और अमेरिका
दशक का अंत होते होते दो राष्ट्र अस्तित्व में आ गए. दक्षिण में साम्यवाद विरोधी नेता सिंगमान री को अमेरिका का थोड़े ना नुकुर के साथ समर्थन मिला तो उत्तर में साम्यवादी नेता किम इल सुंग को रूस का वरदहस्त. दोनों में से कोई अपनी सीमा में खुश नहीं था और सीमा पर छिटपुट संघर्ष लगातार हो रहे थे. जंग शुरू होने के पहले ही दोनों ओर के 10 हजार से ज्यादा सैनिक मारे जा चुके थे.
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कोरिया की जंग और शीत युद्ध
इतना होने पर भी अमेरिकी अधिकारी उत्तर कोरिया के हमले से हतप्रभ थे. उन्हें इस बात की चिंता थी कि यह दो तानाशाहों के बीच सीमा युद्ध ना होकर दुनिया को अपने कब्जे में करने की साम्यावादी मुहिम का पहला कदम है. यही वजह थी कि तब फैसला करने वालों ने हस्तक्षेप नहीं करने जैसे कदमों के बारे में सोचना गवारा नहीं किया. उत्तर कोरिया सोल की तरफ बढ़ा और अमेरिकी सेना साम्यवाद के खिलाफ तैयार होने लगी.
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साम्यवादियों की शुरुआती बढ़त
पहले यह जंग सुरक्षात्मक थी और मित्र देशों पर भारी पड़ी. उत्तर कोरिया की सेना अनुशासित, प्रशिक्षित, और उन्नत हथियारों से लैस थी जबकि री की सेना भयभीत, परेशान और हल्के से उकसावे पर मैदान छोड़ने के लिए तैयार थी. यह कोरियाई प्रायद्वीप के लिए सबसे सूखे और गर्म दिन थे. अमेरिकी सैनिक भी बेहाल थे.
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नई रणनीति
गर्मी खत्म होते होते अमेरिकी सेना के जनरलों ने युद्ध को नई दिशा दी. अब उनके लिए कोरियाई युद्ध का मतलब हमलावर जंग हो गई जिसमें उन्हें उत्तर कोरिया को साम्यवादियों से आजाद कराने का लक्ष्य रखा. शुरुआत में बदली नीति सफल रही और उत्तर कोरियाई सैनिकों को सोल से खदेड़कर 38 वें समानांतर के पार पहुंचा दिया गया.
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चीन का डर और दखल
जैसे ही अमेरिकी सेना सीमा पार कर उत्तर में यालू नदी की ओर बढ़ी चीन को अपनी सुरक्षा का डर सताने लगा और उसने इसे चीन के खिलाफ जंग कह दिया. चीनी नेता माओत्से तुंग ने अपनी सेना उत्तर कोरिया में भेजी और अमेरिका को यालू की सीमा से दूर रहने को कहा.
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चीन से लड़ाई नहीं
अमेरिका राष्ट्रपति ट्रूमैन चीन से सीधा युद्ध नहीं चाहते थे क्योंकि इसका मतलब होता एक और बड़ा युद्ध. अप्रैल 1951 में अमेरिकी सेना के कमांडर को बर्खास्त किया गया और जुलाई 1951 में राष्ट्रपति और नए सैन्य कमांडर ने शांति वार्ता शुरू की. 38 समानांतर पर लड़ाई भी साथ साथ चल रही थी. दोनों पक्ष युद्ध रोकने को तैयार थे लेकिन युद्धबंदियों पर समझौता नहीं हो पा रहा था.
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युद्ध खत्म हुआ
आखिरकार दो साल की बातचीत के बाद 27 जुलाई 1953 को संधि पर दोनों पक्षों के दस्तखत हुए. इसमें युद्धबंदियों को जहां उनकी इच्छा हो रहने की आजादी मिली, नई सीमा रेखा खींची गई जो 38 पैरलल के करीब ही थी और इसमें दक्षिण कोरिया को 1500 वर्गमील का इलाका और मिल गया. इसके साथ ही 2 मील की चौड़ाई वाला एक असैन्य क्षेत्र भी बनाया गया. यह स्थिति आज भी कायम है.