कांग्रेस के 131वें स्थापना दिवस के सिलसिले में पार्टी के ही मुखपत्र ने जवाहर लाल नेहरू की कश्मीर, चीन और तिब्बत नीति की आलोचना करते हुए एक लेख छापा है. पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी पर भी निशाना साधा.
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कांग्रेस की मुंबई ईकाई के मुखपत्र के एक और लेख में पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी पर विवादास्पद टिप्पणियों से बेखबर होने की बात कहने वाले अखबार के संपादक और कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने इस मामले की जांच करवाने का आदेश दिया है. इन दोनों ही लेखों में लेखक का नाम प्रकाशित नहीं हुआ है. पार्टी के मासिक हिंदी प्रकाशन 'कांग्रेस दर्शन' में देश के पहले गृहमंत्री सरदार बल्लभ पटेल को समर्पित अंक निकाला गया था. 15 दिसंबर को सरदार पटेल की पुण्यतिथि होती है.
इस लेख में कहा गया है कि जलाहरलाल नेहरू को अंतरराष्ट्रीय मामलों में पटेल के विचारों को महत्व देना चाहिए था. लेख में भारत की पहली कैबिनेट के दोनों नेताओं के बीच लगातार रहे तनावपूर्व संबंधों के बारे में भी लिखा है. पत्र कहता है, "अगर नेहरू ने पटेल की दूरदर्शिता को अपनाया होता तो अंतरराष्ट्रीय मामलों में कई समस्याएं पैदा ही नहीं हुई होतीं."
एक दूसरे लेख में कांग्रेस की वर्तमान प्रमुख सोनिया गांधी के शुरुआती जीवन के बारे में काफी विस्तार से लिखा है. कांग्रेस अध्यक्षा के पिता के बारे में लिखा है कि वे उस इतावली सेना के सदस्य थे जिसे विश्व युद्ध में रूस के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. लेख में कहा गया है, "सोनिया गांधी के पिता स्टेफानो माइनो एक पूर्व फासीवादी सैनिक थे." इसके अलावा सोनिया गांधी के तेजी से पार्टी अध्यक्ष बनने का भी जिक्र है, "सोनिया गांधी ने 1997 में कांग्रेस के एक प्राथमिक सदस्य के रूप में पंजीकरण करवाया और मात्र 62 दिनों के भीतर पार्टी अध्यक्ष बन गईं." दिल्ली में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय पर इकट्ठा होकर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस का 131वां स्थापना दिवस मनाया.
मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष संजय निरूपम ने भूल मानते हुए मामले की जांच करवाने और गलती दोबारा ना दोहराए जाने का आश्वासन दिया है. निरूपम पर माफी मांगने और पार्टी से इस्तीफा देने की भी मांगें उठी हैं. कांग्रेस में आने से पूर्व निरूपम शिवसेना के साथ थे और तब वे भी सोनिया गांधी के खिलाफ बयान देते रहते थे.
भारतीय राजनीति के प्रमुख खिलाड़ी
भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार लोक सभा में बहुमत के बावजूद संसद में अपने कानूनों को पास करवाने में मुश्किल झेल रही है. विपक्ष को राजी करवाने में विफलता ने बीजेपी सरकार की प्रतिष्ठा और प्रधानमंत्री के रुतबे को कम किया है.
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नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की मुख्य चुनौती चुनाव में किए गए अपने वादों को पूरा करना है. वे देश को विकास के रास्ते पर लाने के लिए अपनी नीतियों के लिए संसद की मंजूरी चाहते हैं.
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सोनिया गांधी
संसद में बीजेपी को पर्याप्त बहुमत नहीं है. लोक सभा में उसे बहुमत पाने में कामयाबी मिली लेकिन प्रातों में मजबूत नहीं होने के कारण राज्य सभा में कांग्रेस अभी भी उसे रोक सकने की हालत में है.
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राहुल गांधी
कांग्रेस पार्टी अपनी इसी शक्ति का इस्तेमाल राज्य सभा में विधेयकों को रोकने में कर रही है. लोक सभा में सिर्फ 44 सांसदों वाली कांग्रेस बाधा डालने की रणनीति अपना रही है. बीजेपी भी पहले ऐसा कर चुकी है.
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सुषमा स्वराज
विदेश मंत्री भ्रष्टाचार कांडों में देश से भागे क्रिकेट प्रशासक ललित मोदी के लिए ब्रिटेन की सरकार को पत्र लिखकर फंस गई हैं. कांग्रेस संसद को चलने देने के लिए उनके इस्तीफे की मांग पर अड़ी है.
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अरुण जेटली
प्रधानमंत्री के विपरीत केंद्रीय वित्त मंत्री दिल्ली के हैं और सत्ता प्रतिष्ठान को जानते हैं. राज्य सभा के नेता होने के नाते वे सरकार और विपक्ष के बीच सुलह में अहम भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन अब तक नाकाम रहे हैं.
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मुलायम सिंह यादव
समाजवादी पार्टी के नेता उत्तर प्रदेश में बीजेपी का विरोध कर सत्ता में आए हैं लेकिन केंद्र की सरकार की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते. उन्होंने सदन में चर्चा का पक्ष लिया है और मोदी की तारीफ पाई है.
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ममता बनर्जी
कम्युनिस्टों को कमजोर करने के बाद बंगाल के मुख्यमंत्री की चुनौती बीजेपी है जो प्रदेश में अपना आधार बढ़ाने में लगी है. केंद्र सरकार ने वित्तीय घोटाले में उसके सांसदों और विधायकों पर नकेल कस रखी है.
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जयललिता
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों में काफी समय जेल में रही हैं. हाईकोर्ट से राहत पाकर वे फिर से सत्ता में अपनी स्थिति मजबूत कर रही हैं. केंद्र सरकार से वे कोई पंगा लेने की हालत में नहीं हैं.
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लालू यादव
मुख्यमंत्री के रूप में आरजेडी नेता ने बीजेपी के धार्मिक अभियान को रोकने की हिम्मत दिखाई थी और अल्पसंख्यकों का भरोसा जीता था. बिहार चुनाव जीतने के लिए वे बीजेपी विरोध की अपनी छवि भुना रहे हैं.
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नीतीश कुमार
बिहार के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री मोदी की हरेक बात का विरोध कर रहे हैं. बिहार में इस साल विधान सभा चुनाव होने वाले हैं जिसमें उनकी कुर्सी और राजनीतिक भविष्य, तो प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है.
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वेंकैया नायडू
संसदीय कार्य मंत्री की भूमिका संसद में सभी दलों के बीच सुलह कराने की होती है. लेकिन उन्होंने दबाव की नीति के तहत विपक्ष पर आरोपों की झड़ी लगाकर सुलह की संभावना को कम ही किया है.