कोरोना काल में बढ़ गई बुजुर्गों को बोझ मानने की प्रवृति
मुरली कृष्णन
९ अप्रैल २०२१
भारत में ऐसे बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है जिन्हें अपने लोग ही सता रहे हैं. काफी संख्या में ऐसे बुजुर्ग हैं जो शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक तरीके से शोषण का शिकार हो रहे हैं.
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हरियाणा के फरीदाबाद में एक वृद्धाश्रम है जिसका संचालन राज्य सरकार करती है. यहां करीब 300 बुजुर्ग रहते हैं. वे हर दिन शाम में चाय पीने के समय का बेसब्री से इंतजार करते है. यह वह समय होता है जब उन्हें पूरे दिन की नीरसता से थोड़ी देर के लिए निजात मिलती है.
कई बुजुर्ग यहां वर्षों से रह रहे हैं. हालांकि, पिछले एक साल में इस वृद्धाश्रम में कई नए लोग भी आए हैं. वजह यह है कि महामारी के बाद देश में लगे लॉकडाउन के दौरान बुजुर्गों की देखभाल करने को लेकर परिवार में काफी ज्यादा झगड़े हुए हैं.
राघव चड्डा की उम्र 66 साल है. वे सरकारी क्लर्क थे. राघव ने डॉयचे वेले को बताया, "मेरे पास कोई विकल्प नहीं था. बहू मेरी देखभाल नहीं करना चाहती थी. मेरे बेटे ने सोचा कि इस जगह पर रहना मेरे लिए सबसे अच्छा होगा क्योंकि उसे लगा कि मैं एक बोझ हूं."
चड्डा भाग्यशाली थे. कुछ परिवारों में कोरोना महामारी की शुरुआत में पैदा हुए नकारात्मक माहौल की वजह से बुजुर्गों को ताने दिए गए. उनके साथ गलत व्यवहार किया गया और कई बार उनका शोषण भी किया गया. बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में जाने के लिए मजबूर किया गया.
प्रीतम सिंह 76 साल के हैं. वे कहते हैं, "दरअसल, बुढ़ापा एक अभिशाप है. एक दिन मेरे दोनों बेटों ने मुझे यहां लाकर छोड़ दिया. मैं अब जिंदगी जीने के लिए संघर्ष कर रहा हूं. यह बस कहने की बात है कि हम सामाजिक मूल्यों को लेकर जागरूक हैं."
सहायता की कमी से डर रहे बुजुर्ग
हाल में हुए राष्ट्रीय सर्वे 'लॉन्जिटूडनल एजिंग स्टडीज ऑफ इंडिया (एलएएसआई)' में भी गंभीर मामलों का पता चला है. सर्वे के नतीजों में बताया गया कि देश में 60 और उससे अधिक आयु वर्ग के लगभग 5% लोगों के साथ पिछले एक साल में शारीरिक और भावनात्मक शोषण हुआ है. उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया. यह समस्या बिहार, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में सबसे अधिक देखी गई. दुर्व्यवहार करने वाले कोई और नहीं, बल्कि वे लोग ही थे जिन्हें इन बुजुर्गों ने पाल-पोस कर बड़ा किया था. यानी उनके बच्चे और पोते-पोतियां.
क्या रुकता है रात के कर्फ्यू से: कोरोना या काम?
भारत में कोरोना वायरस संक्रमण की इस खतरनाक लहर का मुकाबला करने के लिए कई शहरों में रात का कर्फ्यू लगा हुआ है. क्या रात का कर्फ्यू कोरोना को रोकने में प्रभावी है या इस से भी तालाबंदी की तरह आर्थिक नुकसान ज्यादा होता है?
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रात का कर्फ्यू
दिल्ली में 30 अप्रैल तक रात 10 बजे से सुबह के पांच बजे तक कर्फ्यू लगा रहेगा. इस समय दिल्ली, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, गुजरात और पंजाब जैसे राज्यों के कई शहरों में रात का कर्फ्यू लगा हुआ है. आवश्यक उत्पाद और सेवाएं देने वाले क्षेत्रों के कई संस्थानों को खुले रहने की अनुमति है.
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व्यापारी मायूस
कई व्यापारियों का कहना है कि तालाबंदी की मार से वो अभी उबरे भी नहीं थे, और अब ये कर्फ्यू आ गया. 10 बजे तक सब घर पहुंच जाएं इसके लिए दुकानों को नौ बजे ही बंद करना होगा. इसका मतलब है कि ग्राहकों के लिए उससे भी पहले दुकान बंद करनी पड़ेगी क्योंकि ग्राहकों के जाने के बाद भी सारा सामान समेट कर दुकान बंद करने में आधा-एक घंटा लग जाता है.
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मौसम की मार
दुकानें, दफ्तर, फैक्ट्रियां आदि जल्दी बंद करने का मतलब है उत्पादन और बिक्री में कटौती, जिससे व्यापारियों को नुकसान होगा. इसके अलावा उत्तर भारत में गर्मियों का मौसम चल रहा है. दिन में तापमान ज्यादा होने की वजह से लोग सामान लेने बाजारों में शाम में ही जाते हैं. दुकानें अगर जल्दी बंद हो गईं तो खरीदारी दिन की ही तरह शाम में भी मंदी ही रहेगी.
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कारखानों का संकट
लोहा, स्टील के सामान बनाने वाले कारखानों में दिन-रात काम चलता है. भट्टियां दिन-रात जलती रहती हैं, मजदूर शिफ्टों में काम करते हैं और सामान की आवाजाही तो रात में ही होती है. फैक्टरी मालिकों को डर है कि रात के कर्फ्यू से इन सब चीजों पर असर पड़ेगा.
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रेस्तरां वालों को नुकसान
सभी खाने पीने वाले संस्थानों में भी लोग शाम के बाद ही आते हैं और देर रात भोजन कर के वापस लौटते हैं. जल्दी बंद करने से इन्हें भी कमाई करने के लिए ज्यादा वक्त नहीं मिलेगा.
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ऑटो/टैक्सी चलाने वालों को नुकसान
ऑटो/टैक्सी वालों को भी तालाबंदी में भारी नुकसान हुआ था. अभी भी उनकी कमाई महामारी के पहले जैसे स्तर से बहुत दूर थी, और अब फिर से रात को आवाजाही पर प्रतिबंध लगने से पिछले साल के नुकसान की भरपाई के रास्ते भी बंद हो गए हैं.
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शादी, अन्य कार्यक्रमों की दिक्कत
जिन लोगों ने पहले से शादी जैसे कार्यक्रमों की तारीख तय की हुई है और सभी इंजताम कर लिए हैं, वो सोच में हैं कि कहीं विवाह स्थल 10 बजे के बाद बंद तो नहीं कर दिए जाएंगे. मेहमानों के आने-जाने पर भी असर पड़ सकता है.
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अर्थव्यवस्था पर असर
उत्पादन, बिक्री और अन्य आर्थिक गतिविधियां अगर घटेंगी तो जीडीपी के बढ़ने की दर पर भी असर पड़ेगा. कर वसूली के जरिए होने वाली सरकार की कमाई को भी चोट पहुंचेगी.
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रमजान हो जाएगा फीका
13 अप्रैल से रमजान का महीना शुरू हो रहा है और मुस्लिम श्रद्धालुओं को चिंता है कि कर्फ्यू की वजह से वो फीका पड़ जाएगा. रमजान में तरावीह की खास नमाज मस्जिदों में रात में ही पढ़ी जाती है और दिन भर के रोजे के बाद इफ्तार, मिलना-जुलना और खरीदारी समेत सब कुछ शाम को ही होता है. कई लोग रोजा तोड़ने के लिए छोटे रेस्तरां जैसी जगहों पर भी निर्भर होते हैं.
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सामाजिक कलंक और किसी तरह की सहायता न मिलने के डर से ये बुजुर्ग अपने साथ होने वाले दुर्व्यवहार के मामलों की शिकायत नहीं करते हैं. रचना कुचेरिया एक डॉक्टर हैं, वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों की देखभाल करती है. रचना कहती हैं, "यह एक कमजोर समूह है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दुर्व्यवहार का तरीका क्या है लेकिन इसका असर काफी ज्यादा होता है. व्यक्ति को लगातार मानसिक चोट पहुंचती है. ये लोग पहले से ही अपनी उम्र की वजह से कई तरह की परेशानियों का सामना कर रहे होते हैं."
एजवेल फाउंडेशन के किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि कोरोना महामारी के दौरान भारत में 71% बुजुर्गों का मानना था कि लॉकडाउन के दौरान उनके साथ दुर्व्यवहार के मामले बढ़ गए थे. रिपोर्ट में कहा गया, "बुजुर्गों का अपमान करना, दुर्व्यवहार का सबसे सामान्य तरीका है. जब उनके परिवार के सदस्य और रिश्तेदार उनसे बात नहीं करते, समय नहीं बिताते या उनकी जरूरतों का ख्याल नहीं रखते हैं, तो ऐसे में बुजुर्ग अपमानित महसूस करते हैं."
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शारीरिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार के अलावा परेशान करने वाली एक और बात यह थी कि भारत में दो-तिहाई बुजुर्ग पुरानी बीमारियों से पीड़ित हैं. 75 साल और उससे अधिक उम्र के लोग ह्रदय और उच्च-रक्तचाप से जुड़ी बीमारियों से सबसे ज्यादा पीड़ित थे.
एजवेल फाउंडेशन के अध्यक्ष हिमांशु राठ ने डॉयचे वेले को बताया, "बुजुर्गों की जरूरतों और अधिकारों के बारे में समाज में अधिक जागरूकता पैदा करने की तत्काल आवश्यकता है." बुजुर्गों की स्थिति को लेकर कई और अध्ययन किए गए हैं. इनमें भी शारीरिक शोषण और कई मामलों में बुजुर्गों को घर के निकालने की बात भी सामने आई है. कई बार हालात भयावह होने पर बुजुर्ग आत्महत्या कर लेते हैं.
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भारत में तेजी से बढ़ रही बुजुर्गों की आबादी
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 60 साल से अधिक उम्र के लोगों की संख्या 10 करोड़ से अधिक थी. यह कुल आबादी का करीब 8.6 प्रतिशत था. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2050 तक भारत में बुजुर्गों की कुल आबादी 31 करोड़ से अधिक हो जाने की उम्मीद है. सरकार का आर्थिक सर्वेक्षण भी इस प्रवृति की ओर इशारा करता है कि अगले दो दशकों में युवाओं की जनसंख्या के साथ-साथ बुजुर्गों की जनसंख्या भी कई गुना बढ़ जाएगी.
कई लोगों का मानना है कि देश में सामाजिक-आर्थिक बदलाव की वजह से पारिवारिक मूल्यों में कमी आई है. इसकी वजह से बुजुर्गों की उपेक्षा के मामले भी बढ़े हैं. एक अन्य वृद्धाश्रम में बुजुर्गों की देखभाल करने वाले नंद लाल कहते हैं, "भारत अपने बड़े और विशाल परिवार के लिए जाना जाता था. हालांकि अब माइग्रेशन और ग्लोबलाइजेशन की वजह से घरों में देखभाल करने वाला कोई नहीं बचा है."
भारत में 7.5 करोड़ बुजुर्ग गंभीर बीमारी के शिकार
साल 2050 तक भारत में बुजुर्गों की संख्या बढ़कर 31.9 करोड़ हो जाएगी. 2011 की जनगणना के हिसाब से इसमें तीन गुना वृद्धि हो जाएगी. केंद्र सरकार के एक सर्वे में बुजुर्गों की बीमारी पर कई जानकारी सामने आई है.
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कितने बुजुर्ग बीमार
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक ताजा सर्वे के मुताबिक भारत में 60 साल की आयु के ऊपर करीब साढ़े सात करोड़ बुजुर्ग किसी ना किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं. सर्वे के मुताबिक 40 प्रतिशत बुजुर्गों को कोई न कोई दिव्यांगता है और 20 प्रतिशत मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारी से ग्रसित हैं.
तस्वीर: Reuters
अपने तरह का पहला सर्वे
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण ने लौंगिट्यूडिनल एजिंग स्टडीज ऑफ इंडिया (एलएएसआई) पर इंडिया रिपोर्ट जारी की है. भारत में पहली बार और विश्व में इस तरह का सबसे बड़ा सर्वे हुआ है. एलएएसआई देश में उम्रदराज हो रही आबादी के स्वास्थ्य, आर्थिक और सामाजिक निर्धारकों और परिणामों की वैज्ञानिक जांच का व्यापक राष्ट्रीय सर्वे है.
तस्वीर: Fotolia - Marcel Mooij
दिल और मानसिक बीमारी
सर्वे के मुताबिक 60 साल या इससे अधिक उम्र के 34.6 फीसदी लोग दिल की बीमारियों के शिकार हैं. शहरी इलाकों में दिल की बीमारी के मरीजों की संख्या 37.5 फीसदी है तो वहीं ग्रामीण इलाकों में 23.2 फीसदी है. मानसिक रोग की बात की जाए तो बुजुर्ग मानसिक बीमारी के साथ अकेलेपन से भी पीड़ित हैं.
तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel
उच्च रक्तचाप
सर्वे के मुताबिक हाई ब्ल्ड प्रेशर की बीमारी से जूझ रहे लोगों की संख्या भी काफी है. सर्वे कहता है कि शहरी इलाकों में 35.6 प्रतिशत बुजुर्ग हाई बीपी के शिकार हैं तो ग्रामीण क्षेत्र में 21.1 फीसदी बुजुर्ग इसके मरीज हैं.
तस्वीर: Fotolia/Andrei Tsalko
सर्वे का मकसद
इस सर्वे का मकसद देश के बुजुर्गों की स्थिति का आकलन कर उनके स्वास्थ्य, सुरक्षा और कल्याण के लिए नीतियां बनाना है. केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के मुताबिक एलएएसआई से मिले डाटा का इस्तेमाल बुजुर्गों के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम को मजबूत और व्यापक बनाने में किया जाएगा.
2011 की जनगणना में 60 साल या उससे अधिक आबादी भारत की कुल आबादी का 8.6 प्रतिशत थी यानी 10.3 करोड़ लोग बुजुर्ग थे. सर्वे के मुताबिक तीन प्रतिशत की सालाना वृद्धि दर से 2050 में बुजुर्गों की आबादी बढ़कर 31.9 करोड़ हो जाएगी.
तस्वीर: picture-alliance/imageBROKER/W. Röth
सैंपल में कौन-कौन शामिल
एलएएसआई के सर्वे में 45 वर्ष और उसके ऊपर के 72,250 व्यक्तियों और उनके जीवनसाथी का बेसलाइन सैंपल कवर किया गया. इसमें 60 साल और उससे ऊपर की उम्र के 31,464 व्यक्ति और 75 वर्ष और उससे ऊपर की आयु के 6,749 व्यक्ति शामिल किए गए. ये सैंपल सिक्किम को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से लिए गए.
तस्वीर: DW/S. Bhowmick
कितने पढ़े-लिखे
सर्वे के मुताबिक देश के 60 साल या इससे अधिक उम्र के 43.5 प्रतिशत लोग पढ़े लिखे हैं. वहीं कृषि क्षेत्र में काम करने वाले 60 साल या उससे अधिक उम्र के लोगों का प्रतिशत 64.8 है. इस सर्वे में एक और तथ्य सामने आया वह यह है कि 60 साल या उससे अधिक वर्ष के 78 प्रतिशत लोगों को पेंशन नहीं मिलती है.