अमेरिकी रक्षा मंत्री जिम मैटिस दो दिन के भारत दौरे पर हैं. अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद कैबिनेट स्तर के अधिकारी की यह पहली भारत यात्रा है.
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मंगलवार को दिल्ली पहुंचने पर भारतीय रक्षामंत्री निर्मला सीतारमन ने मैटिस का स्वागत किया. समझा जाता है कि दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरे अधिकारियों से मुलाकात में मैटिस अफगानिस्तान में सुरक्षा और भारत-अमेरिका के बीच रक्षा संबंधों पर बातचीत करेंगे. इनमें सैन्य तकनीकों और लड़ाकू विमानों के लिए सौदे पर भी बातचीत हो सकती है.
मंगलवार सुबह अमेरिकी रक्षा मंत्री का कार्यक्रम अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों से मुलाकात के साथ शुरू हुआ उसके बाद नई दिल्ली में उन्होंने अपने सम्मान में दिये गये सेना के गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण किया. बाद में वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल और भारतीय रक्षामंत्री निर्मला सीतारमन से मुलाकात करेंगे.
बीते सप्ताह अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने कहा था कि अमेरिका भारत को एक अहम और प्रभावशाली साझेदार मानता है, जिसमें आपसी दिलचस्पियों को दक्षिण एशिया से आगे ले जाने की मंशा है." दोनों देशों के बीच बातचीत में अफगानिस्तान में सहयोग बढ़ाने और अमेरिका से लड़ाकू विमानों की खरीद पर चर्चा होगी.
पिछले महीने अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत से आग्रह किया था कि वह अफगानिस्तान में सुरक्षा के प्रयासों में अपना सहयोग बढ़ाये. अमेरिका खुद भी अफगानिस्तान में आगे बढ़ रहे तालिबान लड़ाकों के खिलाफ अपने अभियान को तेज करने जा रहा है.
अब तक भारत ने जंग से तबाह अफगानिस्तान में सड़क निर्माण, बिजली की सप्लाई लाइन और बांध बनाने के साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए करीब तीन अरब अमेरिकी डॉलर का सहयोग किया है. अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के मुताबिक मंगलवार की बातचीत में दोनों देश उन तौर तरीकों पर बातचीत करेंगे, जिनके जरिये अफगानिस्तान में भारत सुरक्षा व्यवस्था बेहतर बनाने में सहयोग कर सकता है. दिल्ली के कुछ अधिकारियों का कहना है कि भारत अफगानिस्तान के सैनिकों को आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए प्रशिक्षण दे सकता है. मैटिस कुछ रक्षा समझौतों को भी आगे बढ़ाने पर भारत से बातचीत कर सकते हैं.
भारत इस वक्त दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार है और ड्रोन, लड़ाकू विमान, पनडुब्बी के लिए दुनिया भर के हथियार बेचने वालों से बातचीत कर रहा है. भारत अमेरिका पर हथियार बेचने के साथ ही उन्हें बनाने की तकनीक देने के लिए भी दबाव बना रहा है. हालांकि अमेरिका भारत को एफ16 लड़ाकू विमान बेचने की फिराक में है.
अमेरिकी कंपनी बोइंग ने एफ ए18 लड़ाकू विमान भारत में बनाने की इच्छा जतायी है लेकिन इसके लिए भारतीय नौसेना को बोइंग से लड़ाकू विमान खरीदने होंगे.
दोनों देश हिंद प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को बढ़ाने पर भी बातचीत करेंगे. अमेरिका इस इलाके में चीन के आक्रामक रुख से थोड़ा चिंतित है.
एनआर/आरपी (एपी)
अफगानिस्तान का अंतहीन संघर्ष
अफगानिस्तान पर अमेरिकी आक्रमण को 16 साल बीत गये हैं. युद्ध प्रभावित यह देश आज भी इस्लामी आतंक की चपेट में है. वहां लगातार आतंकी हमले होते रहते हैं.
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'ग्रीन जोन'
काबुल के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले इलाके डिप्लोमैटिक क्वार्टर में घुसकर 31 मई को आतंकियों ने बड़ा धमाका किया. कम से कम 90 लोगों की जान गयी. जर्मन दूतावास को खासतौर पर नुकसान पहुंचा. इसकी जिम्मेदारी किसी ने भी नहीं ली है.
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हमलों की लंबी श्रृंखला
अफगान राजधानी पर पहले भी ऐसे हमले होते आये हैं. मई में इसके पहले भी आईएस के एक हमले में आठ विदेशी सैनिक मारे गये थे. मार्च में विद्रोहियों के एक हमले में अफगान सेना के अस्पताल में कम से कम 38 लोगों की जान गयी थी.
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"ऑपरेशन मंसूर"
इसी साल अप्रैल में अफगान तालिबान ने प्रण लिया था कि वे अफगान सुरक्षा बलों और गठबंधन सेनाओं पर हमले तेज करेंगे. इसे वे सालाना वसंत आक्रमण कहते हैं, जिसे उन्होंने "ऑपरेशन मंसूर" नाम दिया. मंसूर तालिबानी नेता था, जो 2016 में अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया.
तस्वीर: Reuters
ट्रंप की अफगान नीति
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अब तक इसकी घोषणा नहीं की है. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि उनकी नीति काफी हद तक पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा जैसी ही होगी. वे भी अफगान सरकार और तालिबान के बीच सुलह का रास्ता चाहेंगे.
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अफगान शांति प्रक्रिया
अफगानिस्तान पर्यवेक्षक कहते हैं कि आतंकी समूह इस समय शांति वार्ता में दिलचस्पी नहीं दिखाएगा क्योंकि फिलहाल वे अफगान सरकार पर भारी पड़ रहे हैं. 2001 के बाद से इस समय उनके कब्जे में सबसे ज्यादा अफगान जिले हैं.
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पाकिस्तानी मदद
पाकिस्तान पर आरोप लगते हैं कि वह तालिबान का इस्तेमाल कर अफगानिस्तान में भारत का असर कम करना चाहता है. हाल ही में पाकिस्तान तालिबान के पूर्व प्रवक्ता एहसानुल्लाह एहसन (तस्वीर में) पकड़ा गया लेकिन फिर पाकिस्तान ने उसे माफ कर दिया जब उसने भारत पर तालिबान की मदद का आरोप लगाया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/H. Muslim
वारलॉर्ड्स की भूमिका
तालिबान के अलावा अफगान वारलॉर्ड्स का आज भी देश में काफी प्रभाव है. 20 साल बाद हिज्बे इस्लामी के नेता गुलबुद्दीन हिकमत्यार राजनीति में कदम रखने के लिए काबुल लौटे. सितंबर 2016 में अफगान सरकार ने उनके साथ समझौता किया ताकि दूसरे वारलॉर्ड्स और आतंकी समूह अफगान सरकार के साथ काम करें.
तस्वीर: Reuters/O.Sobhani
जुड़े हैं रूस के हित
रूस ने अफगानिस्तान के साथ अपने संबंध प्रगाढ़ करने पर ध्यान दिया है. कई सालों तक दूरी बनाये रखने के बाद अब रूस अफगानिस्तान पर "उदासीन" रवैया नहीं रखना चाहता. रूस ने अफगानिस्तान में कई वार्ताएं आयोजित कीं, जिसमें चीन, पाकिस्तान और ईरान को शामिल किया.
तस्वीर: picture-alliance/A. Druzhinin/RIA Novosti
अप्रभावी सरकार
राष्ट्रपति अशरफ गनी को व्यापक समर्थन हासिल नहीं है और अफगान सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं. देश में सत्ता हथियाने को लेकर एक अंतहीन सा दिखने वाला संघर्ष जारी है. (शामिल शम्स/आरपी)