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अफगानिस्तान की राह पर पाकिस्तान

२८ नवम्बर २०१२

कभी पाकिस्तान और अफगानिस्तान में धार्मिक कट्टरपंथ के लिहाज से बड़ा फर्क था. लेकिन अब धीरे धीरे पाकिस्तान की हालत भी तालिबान के गढ़ जैसी बनती जा रही है. कट्टरपंथी अब इस्लाम के नाम पर स्वतंत्र आवाज को दबाने में जुटे हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

पत्रकार हामिद मीर की हत्या की कोशिश के पहले से ही पाकिस्तान पत्रकारों के लिए खतरनाक बना हुआ है. मीर पाकिस्तान के सबसे बड़े निजी न्यूज चैनल जियो टीवी के पत्रकार हैं. सोमवार को मीर की कार में तालिबान ने बम रखा. धमाके से पहले इसे नाकाम कर दिया गया.

यूनेस्को ने 2012 में पत्रकारों की स्थिति को लेकर एक रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट में पाकिस्तान को पत्रकारों के लिए दुनिया की दूसरी सबसे खतरनाक जगह बताया गया. पहले नंबर पर ड्रग माफियाओं से जूझ रहा मेक्सिको है. साउथ एशिया फ्री मीडिया एसोसिएशन के मुताबिक बीते साल दक्षिण एशिया में 17 पत्रकार मारे गए, इनमें से 12 की हत्या पाकिस्तान में हुई. रिपोर्ट के मुताबिक आतकंवाद और धार्मिक कट्टरपंथ पाकिस्तान में पत्रकारों के लिए सबसे बड़ा खतरा है.

कट्टरपंथी आलोचना बिल्कुल नहीं सहन कर पा रहे हैं. कभी अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन का इंटरव्यू कर सुर्खियों में आए हामिद मीर ने हाल ही में पाकिस्तानी तालिबान की आलोचना की. मीर ने टीवी शो में मलाला यूसुफजई पर हुए हमले की आलोचना की. 15 साल की मलाला पश्चिमोत्तर पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा के लिए आवाज बुलंद कर रही थी. अक्टूबर में तालिबानी चरमपंथियों ने स्कूल बस में घुसकर उसे गोली मार दी. मलाला का लंदन के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है.

बाल बाल बचे हामिद मीरतस्वीर: picture-alliance/dpa

मीर की हत्या की साजिश के बाद तहरीक ए तालिबान के प्रवक्ता एहसानुल्लाह एहसान ने कहा, "जिंदगी और मौत तो अल्लाह के हाथ में है. अल्लाह ने उसकी जान बचाई लेकिन हम ऐसी कोशिश दोबारा करेंगे. हम उन्हें इसलिए निशाना बना रहे हैं क्योंकि अब वह इस्लाम और मुस्लमानों के हितों के खिलाफ काम कर रहे हैं."

मीर को एक अर्से तक रुढ़िवादी पत्रकार माना जाता था. हाल के दिनों में मीर पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी (आईएसआई) की आलोचना करने लगे हैं. बाल बाल बचने के बाद डॉयचे वेले से बातचीत में मीर ने कहा कि वे जांच पूरी होने तक किसी पर अंगुली नहीं उठाएंगे.

मीर ने कहा, "पिछले महीने जब मैंने यूसुफजई के बारे में शो किया तो मुझे जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं. मुझे पता चला कि गृह मंत्रालय ने प्रांत सरकारों को चिट्ठी लिखकर यह जानकारी दी थी कि तालिबान नेता हकीमुल्लाह महसूद ने मुझे मारने के लिए हमलावर भेजे हैं." मीर का कहना है कि उन्हें अभी नहीं पता कि क्या उनकी हत्या की साजिश में सरकारी तत्व भी शामिल हैं.

मलाला के समर्थन में उतरे लोगतस्वीर: Aamir Qureshi/AFP/Getty Images

पत्रकार और राजनीति विश्लेषक मतीउल्लाह जान इस असुरक्षित माहौल के लिए सुरक्षा एजेंसियों को जिम्मेदार ठहराते हैं, "पश्चिमोत्तर के कबाइली इलाकों में अगर किसी पत्रकार पर हमला हो तो आप उग्रवादियों को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं, लेकिन अगर राजधानी के केंद्र में ऐसा हो तो सरकारी एजेंसियों पर शक होना लाजिमी है."

पाकिस्तान में कई विश्लेषकों को लग रहा है कि सरकारी एजेंसियां आतंकवाद से लड़ाई के नाम पर दोहरा खेल खेल रही है. आरोप है कि कुछ उग्रवादी संगठनों को आईएसआई का समर्थन मिला है. साउथ एशिया फ्री मीडिया एसोसिएशन के महासचिव इम्तियाज आलम के मुताबिक सरकारी तत्व और गैर सरकारी तत्व, दोनों पाकिस्तान में प्रेस की स्वतंत्रता के खिलाफ हैं.

यही है वह 'सवाल का निशान' जिसे आप तलाश रहे हैं. इसकी तारीख 28/11 और कोड 1683 हमें भेज दीजिए ईमेल के ज़रिए hindi@dw.de पर या फिर एसएमएस करें +91 9967354007 पर.तस्वीर: Fotolia/Yuri Arcurs

आलम कहते हैं, "पाकिस्तान में कई पत्रकार मारे जा चुके हैं लेकिन अब तक हत्या के किसी एक मामले में भी न्याय नहीं हुआ. सलीम शहजाद की हत्या की जांच करने वाले न्यायिक आयोग के सुझावों को कभी लागू नहीं किया गया." सलीम शहजाद की हत्या मई 2011 में हुई. न्यायिक आयोग की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि हत्या में आईएसआई का हाथ है. सलीम पाकिस्तानी की सरकारी एजेंसियों और आतंकवादियों के बीच साठगांठ पर काफी जानकारी जुटा चुके थे.

कराची में काम कर रहे नसीर तुफैल मानते है कि पाकिस्तान में इस्लाम और आतंकवाद पर रिपोर्टिंग करना पत्रकारों के लिए सबसे ज्यादा जोखिम भरा है. इन मुद्दों पर रिपोर्टिंग करते समय कई पत्रकार बहुत ज्यादा सावधान और घबराये होते हैं.

जंग अखबार के वरिष्ठ पत्रकार गाजी सलाहुद्दीन कहते हैं, "कई पत्रकार डरे और धमकाये हुए दिखते हैं. पाकिस्तान में राजनीति का अपराधीकरण हो चुका है. पत्रकारों को लिए स्वतंत्रता से अपना काम करना बहुत मुश्किल हो गया है."

रिपोर्टः शकूर रहीम(इस्लामाबाद)/ओएसजे

संपादनः एन रंजन

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