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अफगानिस्तान के भविष्य पर क्षेत्रीय सम्मेलन

१४ जून २०१२

काबुल में अफगानिस्तान और पड़ोसी देशों की सुरक्षा के लिए में भारत, पाकिस्तान, तुर्की और केंद्रीय एशियाई देशों सहित 15 देशों के प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं. जर्मन विदेश मंत्री भी बैठक में हिस्सा ले रहे हैं.

तस्वीर: AP

इस बैठक को "हार्ट ऑफ एशिया" यानी एशिया का दिल नाम दिया गया है और यह खास तौर पर स्थानीय साझेदारी को बढ़ाने के लिए बुलाई गई है. यह बातचीत इस्तांबुल प्रक्रिया का हिस्सा है. पिछले साल नवंबर में तुर्की में विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई जिसके बाद स्थानीय सुरक्षा, पुनर्निर्माण और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सहयोग पर एक साझा मगर हर तरह के बंधनों से मुक्त योजना का फैसला लिया गया. अफगान विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जनान मोसाजाई ने कहा, "15 देशों ने एक साथ मिलकर अफगानिस्तान के साथ विश्वास बढ़ाने के लिए कुछ योजनाएं बनाई हैं और इस्तांबुल में लिए गए फैसलों पर अमल करने के बारे में तय किया है."

मोसाजाई ने कहा, "हमारा मानना है कि राजनीति, सुरक्षा, संस्कृति और लोगों के बीच आपसी संबंधों को लेकर इस क्षेत्र में बहुत मौके हैं." अफगानिस्तान के अलावा बैठक में तुर्की, पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, अजरबैजान, कजाकिस्तान, किरगिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ईरान, पाकिस्तान, भारत, चीन और रूस शामिल हैं. जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका और जापान के प्रतिनिधि भी बैठक में सहयोगी देशों के तौर पर हिस्सा ले रहे हैं. जर्मन विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले राष्ट्रपति हामिद करजई से भी मुलाकात करेंगे.

14 जून को काबुल बैठक के बाद टोक्यो की बैठक होने वाली है जिसमें अफगानिस्तान को सहायता देने वाले देश 2014 के बाद वहां असैन्य वित्तीय सहायता पर चर्चा करेंगे. 2014 तक नाटो के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय सेना के अफगानिस्तान से निकलने की योजना है. इस्तांबुल बैठक में अफगानिस्तान के लिए 2014 के बाद एक नई क्षेत्रीय सहायता प्रणाली को कायम करने की बात कही गई जिससे कि अफगानिस्तान के पड़ोसी वहां आतंकवाद खत्म करने में और बड़ी भूमिका निभा सकें.

काबुल में सरकार ने क्षेत्रीय सहयोग को अहम बताया है और अपने पड़ोसियों के साथ व्यापार और विकास संबंधी परियोजनाओं पर बात करना चाहता है. लेकिन इस्तांबुल बैठक में भी किसी पड़ोसी देश ने इस सिलसिले में ठोस वादे नहीं किए हैं. अंतरराष्ट्रीय सेना 2014 में अफगानिस्तान से निकल तो रही है लेकिन तालिबान को अब तक काबू में नहीं किया जा सका है. उधर पाकिस्तान पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि वह अपने देश में आतंकवादियों को पनाह दे रहा है. यह मुद्दे किसी भी समझौते की राह पर अड़ंगा बन सकते हैं.

एमजी/एमजे(डीपीए)

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