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अमेरिका और तालिबान पर आईसीसी में चलेगा मुकदमा

५ मार्च २०२०

अंतरराष्ट्रीय युद्ध अपराध के जजों ने अफगानिस्तान में हुए अपराधों के मामले चलाने को मंजूरी दे दी है. इससे पहले अदालत ने इसकी अनुमति देने से इंकार कर दिया था.

Afghanistan 2017 | Operation Resolute Support | US-Armee
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Operation Resolute Support Headquarters/Sgt. Justin T. Updegraff

अफगानिस्तान की जमीन पर इन अपराधों के लिए अमेरिकी सेना और तालिबान को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. हेग में मौजूद अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत आईसीसी ने पिछले साल मुख्य अभियोजक की उस मांग को खारिज कर दिया था जिसमें अफगानिस्तान में हुए अपराधों के लिए मुकदमा चलाने की बात थी. अमेरिका ऐसी जांच का प्रबल विरोधी है.

अभियोजकों का कहना है कि ये मामले पूरी तरह से मुकदमा चलाए जाने लायक हैं और उनका आधार उचित है. उन्होंने पहले के फैसले को दोषपूर्ण बताते हुए कहा कि वह "इंसाफ के हित में नहीं" था. अब जजों ने भी अभियोजन की दलील से सहमति जताई है.

आईसीसी के जज पिओत्र होफमांस्की ने कहा है, "अभियोजक को अफगानिस्तान के इलाके में 1 मई 2003 के बाद हुए कथित अपराधों की जांच करने का अधिकार है. यह अभियोजक पर है कि वह जांच शुरू करने के उचित आधार का फैसला करे." होफमांस्की ने कहा कि सुनवाई से पूर्व जजों को सिर्फ इसलिए बुलाया गया था कि वे इसके उचित आधार का निर्णय करें, उन्हें, "अभियोजकों के विश्लेषण की समीक्षा के लिए नहीं बुलाया गया था."

2006 में आईसीसी के अभियोजक ने मध्य एशिया में 2003 के बाद संभावित युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराधों की प्राथमिक जांच शुरू की थी.  2017 में अभियोजक फतू बेनसुदा ने जजों से ना सिर्फ तालिबान और अफगान सरकार बल्कि अंतरराष्ट्रीय सेनाओं, अमेरिकी सैनिकों और सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी के कर्मियों की भी पूरी तरह से जांच करने के लिए अनुमति मांगी. तब सुनवाई से पूर्व जजों ने कहा था कि यह "इंसाफ के हितों की रक्षा नहीं" कर सकेगा और अदालत को ऐसे मामलों पर ध्यान देना चाहिए जिनमें सफलता की अच्छी गुंजाइश हो.

मानवाधिकार गुटों ने गुरुवार को इस फैसले का स्वागत किया. मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच के परमप्रीत सिंह ने कहा,"यह फैसला मौजूदा और भविष्य में गुनाह करने वालों को भी यह जरूरी संकेत देगा कि एक ना एक दिन इंसाफ उन्हें पकड़ेगा."

फतू बेनसुदा के इस कदम ने हालांकि अमेरिका को नाराज होने का मौका दे दिया है. पिछले साल अप्रैल में अमेरिका ने गांबिया में जन्मे मख्य अभियोजक का वीजा वापस ले लिया था. यह कदम अमेरिका या गठबंधन सेना के कर्मियों की जांच करने वाले आईसीसी स्टाफ पर लगाई पाबंदियों का हिस्सा था. अमेरिका के पूर्व सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने 2018 में चेतावनी दी थी कि अगर अफगानिस्तान के बारे में जांच शुरू होती है तो अमेरिका आईसीसी के जजों को गिरफ्तार कर लेगा.

अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत आईसीसीतस्वीर: Imago/P. Seyfferth

अमेरिका आईसीसी में कभी नहीं रहा और वह अमेरिकी नागरिकों पर इसके अधिकार को मान्यता नहीं देता. अमेरिका का कहना है कि इससे देश की राष्ट्रीय संप्रभुता को खतरा है. अमेरिका की दलील है कि किसी भी तरह की गड़बड़ियों में शामिल होने वाले अमेरिकी नागरिकों से निबटने के लिए अमेरिका के पास अपनी प्रक्रिया है. सिर्फ अमेरिका ही नहीं, अफगानिस्तान भी इस जांच का विरोध करता है. अफगानिस्तान का कहना है, "अपने देश और अपने लोगों के लिए इंसाफ की जिम्मेदारी देश की है."

आईसीसी का फैसला ऐसे वक्त में आया है जब तालिबान चरमपंथियों ने बीती रात हुए हमलों में कम से कम 20 अफगान सैनिकों और पुलिसकर्मियों की जान ली है. इन हमलों ने अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं.

हाल ही में हुए अमेरिका और तालिबन का समझौते के तहत विदेशी फौजों को 14 महीने के भीतर वहां से चले जाना है. इसमें तालिबान की ओर से सुरक्षा की गारंटी की शर्त है, साथ ही तालबान ने काबुल से बातचीत शुरू करने पर भी सहमति जताई है. हालांकि तालिबान और अफगानिस्तान के बीच बातचीत को लेकर फिलहाल सूरते हाल कुछ ठीक नहीं दिख रहे हैं.

अमेरिका के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय फौज ने 11 सितंबर के हमलों के बाद 2001 में अफगानिस्तान पर धावा बोला था. उनका लक्ष्य अल कायदा को खत्म करना था जिसे मौजूदा तालिबान सरकार ने पनाह दे रखी थी. उसके बाद से ही अफगानिस्तान में जंग चली आ रही है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक बीते साल कम से कम 3,400 आम नागरिकों की मौत हुई और 7,000 से ज्यादा लोग घायल हुए.

एनआर/आईबी (एएफपी)

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