1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

अफगानिस्तान पर भारत को ईरान से उम्मीद

६ अगस्त २०२१

विदेश मंत्री एस जयशंकर के ईरान के नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण शामिल में शामिल होने को भारत की तरफ से एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है.

तस्वीर: MEHR

जयशंकर ना सिर्फ इब्राहिम रईसी के शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद रहे, बल्कि वो रईसी से अलग से मिल कर भारत-ईरान संबंधों पर बातचीत भी करेंगे. इसे अफगानिस्तान में बिगड़ते हालात और ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर पश्चिमी देशों की नाराजगी के बीच भारत और ईरान के द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है.

वैसे तो दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संबंध हैं, लेकिन हाल में इन संबंधों पर ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर लंबे समय से चल रहे विवाद की छाया पड़ गई थी. मई 2019 में ईरान पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से भारत ने ईरान से कच्चा तेल खरीदना बंद कर दिया था. फिर अगस्त 2019 में कश्मीर के संबंध में लिए गए फैसलों की ईरानी नेताओं ने आलोचना भी की.

रिश्तों में दरार

2020 में दिल्ली में हुए दंगों के बाद भी ईरानी नेताओं ने भारत में मुस्लिमों के हालात पर सख्त शब्दों में चिंता व्यक्त की थी, जिसके बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने ईरान के राजदूत को बुला कर इन टिप्पणियों पर भारत की नाराजगी भी व्यक्त की थी. हालांकि अब रईसी के शपथ ग्रहण में खुद विदेश मंत्री की मौजूदगी दोनों देशों के रिश्तों को लेकर नए संकेत दे रही है.

रईसी के शपथ ग्रहण के लिए पहुंचे अन्य नेताओं के बीच जयशंकरतस्वीर: MEHR

लगभग एक महीने की अवधि के अंदर यह जयशंकर की दूसरी तेहरान यात्रा है. माना जा रहा है कि इन दोनों यात्राओं का उद्देश्य जिन मुद्दों पर चर्चा करना है उनमें अफगानिस्तान में बिगड़ते हालात सबसे अहम् मुद्दों में से है. अफगानिस्तान ईरान का पड़ोसी देश है और दोनों देशों करीब 900 किलोमीटर लंबी साझा सीमा है. ऐतिहासिक रूप से ईरान के तालिबान से रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं. तालिबान में सुन्नी मुसलमानों का वर्चस्व है और ईरान में शिया मुसलमानों की संख्या ज्यादा है.

1996 से 2001 तक जब तक अफगानिस्तान में तालिबान का शासन रहा, ईरान ने तालिबान की सरकार को मान्यता नहीं दे. हालांकि अब हालात अलग हैं. अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान छोड़ कर चले जाने की तालिबान की मांग का ईरान ने समर्थन किया था और अब वो तालिबान के साथ एक व्यवहार्य रिश्ता रखना चाह रहा है. ईरान के विदेश मंत्री जावद जरीफ ने हाल ही में अफगानिस्तान पर एक बैठक की मेजबानी की, जिसमें तालिबान के प्रतिनिधि भी शामिल थे.

अफगानिस्तान पर चिंता

भारत भी अफगानिस्तान के हालत को लेकर चिंतित है और अफगानिस्तान के भविष्य से जुड़े सभी हितग्राहियों से बात कर रहा है. संभव है जयशंकर की ईरान यात्राओं के उद्देश्यों में से यह एक अहम् बिंदु हो. मध्य एशिया मामलों के जानकार जाकिर हुसैन कहते हैं कि तालिबान के नेता अगर कट्टरपंथ की तरफ जाते हैं तो यह स्थिति ईरान के लिए भी खतरनाक होगी और ऐसा होने पर वो तालिबान के खिलाफ ऐसे देशों के साथ साझेदारी करना चाहेगा जिनसे उसकी सोच मिलती है.

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ रईसीतस्वीर: Office of the president of Afghanistan

जाकिर कहते हैं इस संबंध में भारत और ईरान के बीच साझेदारी की काफी संभावना है. जानकारों का मानना है कि अफगानिस्तान के अलावा जयशंकर की यात्रा का उद्देश्य आने वाले दिनों में रईसी के नेतृत्व में भारत-ईरान साझेदारी को आगे बढ़ाने का संकेत देना भी हो सकता है. वरिष्ठ पत्रकार संदीप दीक्षित कहते हैं कि ईरान में भारत की परियोजनाओं का विस्तार अमेरिकी प्रतिबंधों के खत्म होने पर निर्धारित होगा.

इनमें चाबहार बंदरगाह परियोजना सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है. यह बंदरगाह ईरान के दक्षिणी-पूर्वी तट पर ओमान की खाड़ी पर स्थित है और भारत से हुए समझौते के तहत, भारत इस बंदरगाह के एक हिस्से का निर्माण कर रहा है. इससे भारत को पाकिस्तान से बचते हुए ईरान, अफगानिस्तान और केंद्रीय एशिया के अन्य देशों तक सामान पहुंचाने में आसानी होगी.

इस परियोजना पर अभी तक अमेरिका ने प्रतिबंध नहीं लगाए हैं लेकिन पिछले कुछ महीनों में इस पर काम काफी धीमा हो गया था. हाल ही में भारत सरकार ने कहा है कि मई तक बंदरगाह के पूरी तरह से चालू हो जाने की उम्मीद की जा रही है. इसके अलावा भारत के कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की जरूरतों को पूरा करने में भी ईरान की अहम् भूमिका है. जानकारों का मानना है कि दोनों पक्ष प्रतिबंधों के हटने के बाद इन पहलुओं को आगे बढ़ाने की तैयारी भी कर रहे हैं.

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें