1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

तालिबान को सता रहा आर्थिक संकट

१५ सितम्बर २०२१

काबुल को कब्जाने के एक महीने बाद तालिबान कई बड़ी समस्याओं का सामना कर रहा है. देश में सूखा और अकाल फैल रहे हैं और डर है कि इस महीने के अंत तक 1.4 करोड़ लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच सकते हैं.

Afghanistan Kabul | Anti-Pakistan Proteste
तस्वीर: REUTERS

चार दशक लंबे युद्ध और हजारों लोगों की मौत के बाद अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो चुकी है. पिछले 20 सालों में विकास के नाम पर खर्च किए गए अरबों डॉलर भी स्थिति को बेहतर नहीं बना पाए.

सूखे और अकाल की वजह से हजारों लोग ग्रामीण इलाकों को छोड़ कर शहरों की तरफ जा रहे हैं. विश्व खाद्य कार्यक्रम को डर है कि इसी महीने के अंत तक भोजन खत्म हो सकता है और करीब 1.4 करोड़ लोग भुखमरी के कगार तक पहुंच सकते हैं.

जिंदा रहने का सवाल

अभी तक पश्चिमी देशों ने ज्यादा ध्यान इन सवालों पर दिया है कि नई तालिबान सरकार महिलाओं के अधिकारों को संरक्षण देने का अपना वादा निभाएगी या नहीं या अल-कायदा जैसे आतंकवादी संगठनों को शरण देगी या नहीं. लेकिन कई आम अफगानियों के लिए जिंदा रहना ही मुख्य प्राथमिकता है.

काबुल के खैर खाना इलाके में इस्तेमाल किए हुए घर के सामान की एक अस्थायी दुकानतस्वीर: WAKIL KOHSAR/AFP

काबुल में रहने वाले अब्दुल्ला कहते हैं, "हर अफगान, बच्चा हो या बड़ा, भूखा है, उनके पास आटा और खाना पकाने का तेल तक नहीं है." बैंकों के बाहर अभी भी लंबी कतारें लग रही हैं. देश के खत्म होते पैसों को बचाए रखने के लिए एक सप्ताह में 200 डॉलर से ज्यादा निकालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.

पूरे काबुल में जहां तहां अस्थायी बाजार लग गए हैं जिनमें लोग नकद पैसों के लिए घर का सामान बेच रहे हैं. हालांकि सामान खरीदने की स्थिति में भी बहुत कम लोग बचे हैं.

अरबों डॉलर की विदेशी मदद के बावजूद अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा ही रही थी. आर्थिक विकास लगातार बढ़ती आबादी के साथ कदम मिला कर नहीं चल पा रहा था. नौकरियां कम हैं और सरकारी मुलाजिमों को कम से कम जुलाई से वेतन नहीं मिला है.

विदेशी मदद

अधिकतर लोगों ने लड़ाई के अंत का स्वागत तो किया है लेकिन अर्थव्यवस्था के लगभग बंद होने की वजह से यह राहत फीकी ही रही है.

काबुल में काम मिलने का इंतजार कर रहे सड़क पर बैठे मजदूरतस्वीर: Bernat Armangue/AP/picture alliance

काबुल के बीबी माहरो इलाके में रहने वाले एक कसाई ने अपना नाम छुपाते हुए बताया, "इस समय सुरक्षा के मोर्चे पर तो हाल काफी अच्छा है, लेकिन हमारी कमाई बिलकुल भी नहीं हो रही है. हर रोज हमारे लिए हालात और खराब, और कड़वे हो जाते हैं. यह एक बहुत ही बुरी स्थिति है."

 

पिछले महीने काबुल से विदेशी नागरिकों के निकाले जाने की अफरा तफरी के बाद हवाई अड्डा अब खुल रहा है और मदद का सामान लिए विमान पहुंच रहे हैं. "पूरे देश के विनाश" की संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय दाताओं ने एक अरब डॉलर से भी ज्यादा के दान का वादा किया है.

लेकिन पिछले सप्ताह तालिबान के पुराने कट्टरवादी सदस्यों की सरकार बनने की घोषणा के बाद दुनिया भर के देशों की प्रतिक्रिया ठंडी रही है. अंतरराष्ट्रीय मान्यता का कोई संकेत नजर नहीं आ रहा है और ना ही अफगानिस्तान के बाहर रोक कर रखी नौ अरब डॉलर से भी ज्यादा मूल्य की विदेशी मुद्रा को छोड़ देने का भी संकेत नजर नहीं आ रहा है.

तालिबान की कई चुनौतियां

तालिबान के अधिकारियों ने कहा है कि वो पिछली तालिबान सरकार के कड़े कट्टरवादी शासन को दोहराने का इरादा नहीं रखते हैं. इसके बावजूद बाहर की दुनिया को यह मनाने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ रहा है कि वो सही में बदल गए हैं.

अफगानिस्तान की सीमा पार कर पाकिस्तान जाते लोगतस्वीर: Saeed Ali Achakzai/REUTERS

 

इसके अलावा ऐसी अटकलें भी लग रही हैं कि तालिबान के अंदर कई गुट हैं और उनके बीच गहरे मतभेद चल रहे हैं. हक्कानी नेटवर्क के समर्थकों के साथ हुई गोलाबारी में उप प्रधानमंत्री अब्दुल गनी बरादर के मारे जाने की "अफवाहों" को तालिबान ने नकार दिया है.

अधिकारियों का कहना है कि सरकार सभी सेवाओं को फिर से शुरू करने की कोशिश कर रही है और सड़कें भी अब सुरक्षित हैं. लेकिन युद्ध जैसे जैसे खत्म हो रहा है, आर्थिक संकट उससे भी बड़ी समस्या बनता जा रहा है. जैसा कि एक दुकानदार ने कहा, "चोरियां नहीं हो रही हैं. लेकिन रोटी भी तो नहीं है."

सीके/एए (रॉयटर्स)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें