मध्य पूर्व के देशों में आईएस की ताकत घट रही है लेकिन अफगानिस्तान में उसका असर बढ़ रहा है. खासकर अफगानिस्तान में वह शिया लोगों को निशाना बना रहा है. आखिर क्यों?
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अफगानिस्तान में 2015 में पहली बार अधिकारियों ने तथाकथित इस्लामिक स्टेट को खतरा माना. उस वक्त दावा किया गया कि आईएस सिर्फ पूर्वी नंगरहार प्रांत तक सीमित है. खासकर आचिन जिले के ज्यादातर हिस्से पर उसका नियंत्रण बताया गया.
सरकार ने इसके बाद वहां सैन्य अभियान चलाया और मार्च 2016 में आईएस के खिलाफ जीत का दावा किया. उसी साल अफगानिस्तान और अमेरिका ने पुष्टि की कि आईएस की तथाकथित खुरासन शाखा का प्रमुख हाफिज सईद खान एक अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया. आईएस खुरासन शाखा के तहत अफगानिस्तान, पाकिस्तान और मध्य एशियाई देशों के कुछ हिस्सों को भी शामिल करता है.
पेंटागन ने जुलाई 2017 में पुष्टि की कि अफगानिस्तान में आईएस का प्रमुख अबु सैयद कुन्नार प्रांत में एक अमेरिकी हवाई हमले में मारा गया है. अमेरिकी रक्षा मंत्री जिम मैटिस ने कहा कि सैयद की मौत अफगानिस्तान में आईएस के लिए बड़ा झटका है.
खतरे उठाकर सुरों को साधती ये अफगान लड़कियां
बेहद कट्टरपंथी समझे जाने वाले अफगान समाज में कुछ लड़कियों ने सुरों के सहारे बदलाव का बीड़ा उठाया है. उन्होंने अफगानिस्तान का पहला महिला ऑर्केस्ट्रा बनाया है जिसे दुनिया भर में प्यार और सराहना मिल रही है.
तस्वीर: G.Beadle/WEF
क्यों अहम है जोहरा
अफगानिस्तान में संगीत को अच्छा नहीं समझा जाता और खासकर महिलाओं के लिए तो बिल्कुल नहीं. इसलिए कुछ लड़कियों का एक साथ मिल कर जोहरा नाम से ऑर्केस्ट्रा बनाना बहुत अहमियत रखता है. ये सभी लड़कियां अफगानिस्तान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक में पढ़ती हैं.
तस्वीर: G.Beadle/WEF
संगीत के लिए टूटे रिश्ते
इस सिम्फनी की दो कंडक्टरों में से एक नेगिन के पिता तो उनका साथ देते हैं. लेकिन उनके अलावा पूरा परिवार संगीत सीखने और ऑर्केस्ट्रा में शामिल होने के खिलाफ था. वह बताती हैं कि उनके कई रिश्तेदारों ने इसी वजह से उनके पिता से अपने संबंध तक तोड़ लिए.
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अहम संस्थान
अफगानिस्तान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक देश के उन चंद संस्थानों में से एक है जहां लड़के लड़कियां एक साथ पढ़ते हैं. नेगिन ने यहीं पियानो और ड्रम बजाना सीखा और वे जोहरा की कंडक्टर बन गईं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Jawad
संगीत की महक
जोहरा ने अपनी पहली विदेशी परफॉर्मेंस स्विट्जरलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक फोरम के दौरान दी. इसके बाद स्विट्जरलैंड और जर्मनी के चार अन्य शहरों में भी उन्होंने अपने संगीत का जादू बिखेरा. पारंपरिक पोशाकों में सजी इन लड़कियों के संगीत की महक धीरे धीरे दुनिया में फैल रही है.
तस्वीर: A. Sarmast
संगीत की देवी
जोहरा में 12 साल से 20 साल तक की उम्र की 30 से ज्यादा लड़कियां हैं. ऑर्केस्ट्रा का नाम फारसी साहित्य में संगीत की देवी कही जाने वाले जोहरा के नाम पर रखा है. यह ऑर्केस्ट्रा पारंपरिक अफगान और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत बजाता है.
सरमस्त ने इसके लिए जोखिम भी बहुत उठाए हैं. 2014 में एक कंसर्ट के दौरान एक तालिबान आत्मघाती हमलावर ने खुद को उड़ा लिया था. इस घटना में खुद सरमस्त घायल हो गए थे जबकि दर्शकों में शामिल एक जर्मन व्यक्ति की जान चली गई थी.
तस्वीर: ANIM
मकसद
अफगानिस्तान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक के संस्थापक और निदेशक अहमद नासिर सरमस्त कहते हैं कि इस ऑर्केस्ट्रा को बनाने का मकसद यही है कि लोगों के बीच एक सकारात्मक संदेश जाए और वे बच्चे और लड़कियों को संगीत सीखने और उसमें योगदान देने के लिए प्रेरित करें.
तस्वीर: ANIM
कहां गई मीना?
इस ऑर्केस्ट्रा की शुरुआत 2014 में हुई जब सातवीं में पढ़ने वाली एक लड़की मीना ने सरमस्त के सामने ऑर्केस्ट्रा बनाने का सुझाव रखा. ऑर्केस्ट्रा तो बन गया, लेकिन पूर्वी नंगरहार प्रांत में अपनी बहन की शादी में शामिल होने गई मीना फिर कभी संस्थान में नहीं लौट पाई.
तस्वीर: Save The Children
मुश्किलें
नेगिन की तरह ऑर्केस्ट्रा की दूसरी कंडक्टर जरीफा आबिदा को भी परिवार की तरफ से विरोध झेलना पड़ा. 2014 में जब उन्होंने म्यूजिक इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया तो सिर्फ अपनी मां और सौतेले पिता को बताया, अपने चार भाइयों और अन्य रिश्तेदारों को नहीं, क्योंकि वे कभी इसकी इजाजत नहीं देते.
तस्वीर: DW/A. Behrad
बदलाव होगा
अब हालात कुछ बेहतर हुए हैं. जरीफा के दो भाइयों को छोड़कर परिवार के सभी सदस्य उनके साथ हैं. जरीफा को उम्मीद है कि वे दोनों भी जल्दी मान जाएंगे. वह कहती हैं कि धीरे धीरे ही सही, लेकिन अफगानिस्तान भी बदलेगा जरूर.
अफगानिस्तान में आईएस को न सिर्फ सरकारी बलों से, बल्कि तालिबान से भी लोहा लेना पड़ा रहा है जो अफगानिस्तान में कहीं ज्यादा मजबूत और पुराना चरमपंथी संगठन है. इस वजह से अफगान अधिकारियों को उम्मीद थी कि आईएस अफगानिस्तान में जड़ें नहीं जमा पाएगा. लेकिन स्थिति वैसी नहीं रही, जैसी अफगान अधिकारियों ने सोची थी. आईएस के लड़ाके अब देश भर में घातक हमले कर रहे हैं.
आईएस ने राजधानी काबुल में हुए धमाके की जिम्मेदारी ली जिसमें 40 लोग मारे गए और लगभग 30 घायल हो गए. हमले का निशाना एक शिया सांस्कृतिक केंद्र पर होने वाला कार्यक्रम था. यह पहला मौका नहीं है जब सुन्नी चरमपंथी संगठन आईएस ने शियाओं को निशाना बनाया है. अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक शिया समुदाय ने 2017 में कई हमले झेले हैं. मस्जिदों और धार्मिक स्थलों पर होने वाले हमलों में सैकड़ों लोग मारे गए हैं. अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में काबुल में तीन शिया मस्जिदों को निशाना बनाया गया.
अफगानियों के जख्मों पर संगीत का मरहम लगाता अमेरिकी
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सांप्रदायिक मतभेद
काबुल में रहने वाले सुरक्षा विश्लेषक वाहिद मुजदा कहते हैं कि जिहादी समूह आईएस अफगान समाज में सांप्रदायिक मतभेद पैदा करना चाहता है. उनके मुताबिक, "अफगानिस्तान में खुद को स्थापित करने के लिए, आईएस को स्थानीय सुन्नी चरमपंथी गुटों के समर्थन की जरूरत है. आईएस खुद की तालिबान से अलग पहचान बनाने के लिए शिया लोगों को निशाना बना रहा है."
अफगान सुरक्षा विश्लेषकों को डर है कि आईएस देश को सांप्रदायिक तौर पर बांट सकता है. हालांकि मुजदा कहते हैं कि यह काम इतना आसान भी नहीं है. उनकी राय में, "अफगान शिया लोगों पर आईएस के हर हमले के बाद इस्लाम की सभी शाखाओं के धार्मिक नेताओं ने पीड़ितों के साथ एकजुटता दिखाई है. लेकिन अगर सरकार ने ऐसे हमलों को रोकने के लिए कुछ नहीं किया तो सांप्रदायिक खाई चौड़ी होती चली जाएगी."
ऐसे होते हैं अफगान
जर्मन फोटोग्राफर येंस उमबाख ने उत्तरी अफगानिस्तान का दौरा किया. इस इलाके में जर्मन सेना तैनात रही है और लोग जर्मन लोगों से अपरिचित नहीं हैं.
मजार-ए-शरीफ के चेहरे
ये बुजुर्ग उन 100 से ज्यादा अफगान लोगों में से एक हैं जिन्हें जर्मन फोटोग्राफर येंस उमबाख ने मजार-ए-शरीफ शहर के हालिया दौरे में अपने कैमरे में कैद किया है.
असली चेहरे
उमबाख ऐसे चेहरों को सामने लाना चाहते थे जो अकसर सुर्खियों के पीछे छिप जाते हैं. वो कहते हैं, “जैसे कि ये लड़की जिसने अपनी सारी जिंदगी विदेशी फौजों की मौजूदगी में गुजारी है.”
नजारे
उमबाख 2010 में पहली बार अफगानिस्तान गए और तभी से उन्हें इस देश से लगाव हो गया. उन्हें शिकायत है कि मीडिया सिर्फ अफगानिस्तान का कुरूप चेहरा ही दिखाता है.
मेहमानवाजी
अफगान लोग उमबाख के साथ बहुत प्यार और दोस्ताना तरीके से पेश आए. वो कहते हैं, “हमें अकसर दावतों, संगीत कार्यक्रमों और राष्ट्रीय खेल बुजकाशी के मुकाबलों में बुलाया जाता था.”
सुरक्षा
अफगानिस्तान में लोगों की फोटो लेना आसान काम नहीं था. हर जगह सुरक्षा होती थी. उमबाख को उनके स्थानीय सहायक ने बताया कि कहां जाना है और कहां नहीं.
नेता और उग्रवादी
उमबाख ने अता मोहम्मद नूर जैसे प्रभावशाली राजनेताओं की तस्वीरें भी लीं. बाल्ख प्रांत के गवर्नर मोहम्मद नूर जर्मनों के एक साझीदार है. उन्होंने कुछ उग्रवादियों को भी अपने कैमरे में कैद किया.
जर्मनी में प्रदर्शनी
उमबाख ने अपनी इन तस्वीरों की जर्मनी में एक प्रदर्शनी भी आयोजित की. कोलोन में लगने वाले दुनिया के सबसे बड़े फोटोग्राफी मेले फोटोकीना में भी उनके फोटो पेश किए गए.
फोटो बुक
येंस उमबाख अपनी तस्वीरों को किताब की शक्ल देना चाहते हैं. इसके लिए वो चंदा जमा कर रहे हैं. वो कहते हैं कि किताब की शक्ल में ये तस्वीरें हमेशा एक दस्तावेज के तौर पर बनी रहेंगी.
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पाकिस्तान में भी बढ़े हमले
आईएस को 2017 में सीरिया और इराक में बहुत नुकसान उठाना पड़ा है. इराक में आईएस की हार के बाद बहुत से जानकारों ने आशंका जताई थी कि बड़ी संख्या में आईएस के लड़ाके मध्य पूर्व से पाकिस्तान और अफगानिस्तान में जा सकते हैं. जर्मनी की हाइडेलबर्ग यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशिया मामलों के जानकार जीगफ्रीड ओ वॉल्फ भी इससे सहमत हैं. वह कहते हैं, "सीरिया और इराक में लगे झटकों के बाद, आईएस को अपनी गतिविधियां चलाने के लिए नए इलाके चाहिए. इसीलिए उसके बहुत से लड़ाके पाकिस्तान और अफगानिस्तान का रुख करेंगे."
चरमपंथियों को रोकने में कामयाब होगा पाकिस्तान?
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अब अफगानिस्तान में आईएस का असर सिर्फ पूर्वी नंगरहार प्रांत तक सीमित नहीं रहा है. ताजा रिपोर्टें बताती हैं कि इस गुट ने अफगानिस्तान के दूसरे इलाकों में भी अपनी सरगर्मियां शुरू कर दी हैं. पाकिस्तान में भी आईएस या उससे जुड़े गुटों के हमले बढ़े हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान में आईएस को ऐसे चरमपंथी गुटों का साथ मिल सकता है जो शिया विरोधी हैं या फिर अपने देश में ईरान के बढ़ते असर को लेकर चिंतित हैं.
अफगानिस्तान लंबे समय से पाकिस्तान पर आतंकवादी गुटों का साथ देने का आरोप लगाता रहता है. उसका कहना है कि अफगानिस्तान में अपना असर बनाए रखने के लिए पाकिस्तान जिहादियों का सहारा ले रहा है. लेकिन पाकिस्तान इन आरोपों से इनकार करता है. विशेषज्ञ कहते हैं कि हालांकि पाकिस्तान आईएस या उससे जुड़े किसी गुट को अपना सहयोगी नहीं मानता, जो अफगानिस्तान में उसके रणनीति उद्देश्यों को पूरा करने में मददगार हो सके, लेकिन भविष्य में परिस्थितियां बदल भी सकती हैं.