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अफगानिस्तान में आईएस के निशाने पर शिया क्यों?

मसूद सैफुल्लाह
२९ दिसम्बर २०१७

मध्य पूर्व के देशों में आईएस की ताकत घट रही है लेकिन अफगानिस्तान में उसका असर बढ़ रहा है. खासकर अफगानिस्तान में वह शिया लोगों को निशाना बना रहा है. आखिर क्यों?

Afghanistan Anschlag in Kabul auf Afghan Voice
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Marai

अफगानिस्तान में 2015 में पहली बार अधिकारियों ने तथाकथित इस्लामिक स्टेट को खतरा माना. उस वक्त दावा किया गया कि आईएस सिर्फ पूर्वी नंगरहार प्रांत तक सीमित है. खासकर आचिन जिले के ज्यादातर हिस्से पर उसका नियंत्रण बताया गया.

सरकार ने इसके बाद वहां सैन्य अभियान चलाया और मार्च 2016 में आईएस के खिलाफ जीत का दावा किया. उसी साल अफगानिस्तान और अमेरिका ने पुष्टि की कि आईएस की तथाकथित खुरासन शाखा का प्रमुख हाफिज सईद खान एक अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया. आईएस खुरासन शाखा के तहत अफगानिस्तान, पाकिस्तान और मध्य एशियाई देशों के कुछ हिस्सों को भी शामिल करता है.

पेंटागन ने जुलाई 2017 में पुष्टि की कि अफगानिस्तान में आईएस का प्रमुख अबु सैयद कुन्नार प्रांत में एक अमेरिकी हवाई हमले में मारा गया है. अमेरिकी रक्षा मंत्री जिम मैटिस ने कहा कि सैयद की मौत अफगानिस्तान में आईएस के लिए बड़ा झटका है.

तालिबान से भी लोहा

अफगानिस्तान में आईएस को न सिर्फ सरकारी बलों से, बल्कि तालिबान से भी लोहा लेना पड़ा रहा है जो अफगानिस्तान में कहीं ज्यादा मजबूत और पुराना चरमपंथी संगठन है. इस वजह से अफगान अधिकारियों को उम्मीद थी कि आईएस अफगानिस्तान में जड़ें नहीं जमा पाएगा. लेकिन स्थिति वैसी नहीं रही, जैसी अफगान अधिकारियों ने सोची थी. आईएस के लड़ाके अब देश भर में घातक हमले कर रहे हैं.

आईएस ने राजधानी काबुल में हुए धमाके की जिम्मेदारी ली जिसमें 40 लोग मारे गए और लगभग 30 घायल हो गए. हमले का निशाना एक शिया सांस्कृतिक केंद्र पर होने वाला कार्यक्रम था. यह पहला मौका नहीं है जब सुन्नी चरमपंथी संगठन आईएस ने शियाओं को निशाना बनाया है. अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक शिया समुदाय ने 2017 में कई हमले झेले हैं. मस्जिदों और धार्मिक स्थलों पर होने वाले हमलों में सैकड़ों लोग मारे गए हैं. अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में काबुल में तीन शिया मस्जिदों को निशाना बनाया गया.

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सांप्रदायिक मतभेद

काबुल में रहने वाले सुरक्षा विश्लेषक वाहिद मुजदा कहते हैं कि जिहादी समूह आईएस अफगान समाज में सांप्रदायिक मतभेद पैदा करना चाहता है. उनके मुताबिक, "अफगानिस्तान में खुद को स्थापित करने के लिए, आईएस को स्थानीय सुन्नी चरमपंथी गुटों के समर्थन की जरूरत है. आईएस खुद की तालिबान से अलग पहचान बनाने के लिए शिया लोगों को निशाना बना रहा है."

अफगान सुरक्षा विश्लेषकों को डर है कि आईएस देश को सांप्रदायिक तौर पर बांट सकता है. हालांकि मुजदा कहते हैं कि यह काम इतना आसान भी नहीं है. उनकी राय में, "अफगान शिया लोगों पर आईएस के हर हमले के बाद इस्लाम की सभी शाखाओं के धार्मिक नेताओं ने पीड़ितों के साथ एकजुटता दिखाई है. लेकिन अगर सरकार ने ऐसे हमलों को रोकने के लिए कुछ नहीं किया तो सांप्रदायिक खाई चौड़ी होती चली जाएगी."

पाकिस्तान में भी बढ़े हमले

आईएस को 2017 में सीरिया और इराक में बहुत नुकसान उठाना पड़ा है. इराक में आईएस की हार के बाद बहुत से जानकारों ने आशंका जताई थी कि बड़ी संख्या में आईएस के लड़ाके मध्य पूर्व से पाकिस्तान और अफगानिस्तान में जा सकते हैं. जर्मनी की हाइडेलबर्ग यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशिया मामलों के जानकार जीगफ्रीड ओ वॉल्फ भी इससे सहमत हैं. वह कहते हैं, "सीरिया और इराक में लगे झटकों के बाद, आईएस को अपनी गतिविधियां चलाने के लिए नए इलाके चाहिए. इसीलिए उसके बहुत से लड़ाके पाकिस्तान और अफगानिस्तान का रुख करेंगे."

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अब अफगानिस्तान में आईएस का असर सिर्फ पूर्वी नंगरहार प्रांत तक सीमित नहीं रहा है. ताजा रिपोर्टें बताती हैं कि इस गुट ने अफगानिस्तान के दूसरे इलाकों में भी अपनी सरगर्मियां शुरू कर दी हैं. पाकिस्तान में भी आईएस या उससे जुड़े गुटों के हमले बढ़े हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान में आईएस को ऐसे चरमपंथी गुटों का साथ मिल सकता है जो शिया विरोधी हैं या फिर अपने देश में ईरान के बढ़ते असर को लेकर चिंतित हैं.

अफगानिस्तान लंबे समय से पाकिस्तान पर आतंकवादी गुटों का साथ देने का आरोप लगाता रहता है. उसका कहना है कि अफगानिस्तान में अपना असर बनाए रखने के लिए पाकिस्तान जिहादियों का सहारा ले रहा है. लेकिन पाकिस्तान इन आरोपों से इनकार करता है. विशेषज्ञ कहते हैं कि हालांकि पाकिस्तान आईएस या उससे जुड़े किसी गुट को अपना सहयोगी नहीं मानता, जो अफगानिस्तान में उसके रणनीति उद्देश्यों को पूरा करने में मददगार हो सके, लेकिन भविष्य में परिस्थितियां बदल भी सकती हैं.

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