अफगानिस्तान की जंग में बीते छह महीनों में जितने लोगों की जान गई है वो एक रिकॉर्ड है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से ज्यादातर लोग चरमपंथियों के बम धमाकों में मारे गए हैं.
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संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार आयुक्त जईद राद अल हुसैन ने कहा है कि इस साल जनवरी से जून के बीच 1662 लोग मारे गए हैं. हुसैन का कहना है, "ये डरावने आंकड़े कभी नहीं बता सकते कि अफगानिस्तान के लोग क्या कुछ झेल रहे हैं."
रिपोर्ट में कहा गया है कि 31 मई को काबुल के मध्य में एक ट्रक बम से जो हमला हुआ था वो 2001 में अफगानिस्तान पर अमेरिकी हमले के बाद अब तक का सबसे घातक हमला था. इस हमले में 90 लोग मारे गए थे. हुसैन ने कहा है, "मौत का हर आंकड़ा एक टूटे परिवार, अकल्पनीय तकलीफ और दिक्कतों के साथ ही लोगों के मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है."
चरमपंथियों के हमले में 1141 नागरिकों की मौत हुई है. पिछले साल से इसकी तुलना करें तो मौत के आंकड़ों में करीब 12 फीसदी का इजाफा हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक इन हमलों में 2,348 लोग घायल हुए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक सुरक्षा बलों और चरमपंथियों के बीच गोली बारी में पिछले साल के मुकाबले इस साल कम लोगों की मौत हुई है. इसके लिए रिपोर्ट में अफगान सुरक्षा बलों की तारीफ की गई है.
अफगान रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता दौलत वजीरी ने इसके पीछे चरमपंथियों की आम लोगों को मानव कवच के रूप में इस्तेमाल करने को वजह बताया है. वजीरी ने समाचार एजेंसी एपी से कहा, "सेना अपने अभियानों के दौरान आम लोगों को मौत से बचाने में सजग रही है."
अफगानिस्तान का अंतहीन संघर्ष
अफगानिस्तान पर अमेरिकी आक्रमण को 16 साल बीत गये हैं. युद्ध प्रभावित यह देश आज भी इस्लामी आतंक की चपेट में है. वहां लगातार आतंकी हमले होते रहते हैं.
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'ग्रीन जोन'
काबुल के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले इलाके डिप्लोमैटिक क्वार्टर में घुसकर 31 मई को आतंकियों ने बड़ा धमाका किया. कम से कम 90 लोगों की जान गयी. जर्मन दूतावास को खासतौर पर नुकसान पहुंचा. इसकी जिम्मेदारी किसी ने भी नहीं ली है.
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हमलों की लंबी श्रृंखला
अफगान राजधानी पर पहले भी ऐसे हमले होते आये हैं. मई में इसके पहले भी आईएस के एक हमले में आठ विदेशी सैनिक मारे गये थे. मार्च में विद्रोहियों के एक हमले में अफगान सेना के अस्पताल में कम से कम 38 लोगों की जान गयी थी.
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"ऑपरेशन मंसूर"
इसी साल अप्रैल में अफगान तालिबान ने प्रण लिया था कि वे अफगान सुरक्षा बलों और गठबंधन सेनाओं पर हमले तेज करेंगे. इसे वे सालाना वसंत आक्रमण कहते हैं, जिसे उन्होंने "ऑपरेशन मंसूर" नाम दिया. मंसूर तालिबानी नेता था, जो 2016 में अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया.
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ट्रंप की अफगान नीति
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अब तक इसकी घोषणा नहीं की है. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि उनकी नीति काफी हद तक पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा जैसी ही होगी. वे भी अफगान सरकार और तालिबान के बीच सुलह का रास्ता चाहेंगे.
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अफगान शांति प्रक्रिया
अफगानिस्तान पर्यवेक्षक कहते हैं कि आतंकी समूह इस समय शांति वार्ता में दिलचस्पी नहीं दिखाएगा क्योंकि फिलहाल वे अफगान सरकार पर भारी पड़ रहे हैं. 2001 के बाद से इस समय उनके कब्जे में सबसे ज्यादा अफगान जिले हैं.
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पाकिस्तानी मदद
पाकिस्तान पर आरोप लगते हैं कि वह तालिबान का इस्तेमाल कर अफगानिस्तान में भारत का असर कम करना चाहता है. हाल ही में पाकिस्तान तालिबान के पूर्व प्रवक्ता एहसानुल्लाह एहसन (तस्वीर में) पकड़ा गया लेकिन फिर पाकिस्तान ने उसे माफ कर दिया जब उसने भारत पर तालिबान की मदद का आरोप लगाया.
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वारलॉर्ड्स की भूमिका
तालिबान के अलावा अफगान वारलॉर्ड्स का आज भी देश में काफी प्रभाव है. 20 साल बाद हिज्बे इस्लामी के नेता गुलबुद्दीन हिकमत्यार राजनीति में कदम रखने के लिए काबुल लौटे. सितंबर 2016 में अफगान सरकार ने उनके साथ समझौता किया ताकि दूसरे वारलॉर्ड्स और आतंकी समूह अफगान सरकार के साथ काम करें.
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जुड़े हैं रूस के हित
रूस ने अफगानिस्तान के साथ अपने संबंध प्रगाढ़ करने पर ध्यान दिया है. कई सालों तक दूरी बनाये रखने के बाद अब रूस अफगानिस्तान पर "उदासीन" रवैया नहीं रखना चाहता. रूस ने अफगानिस्तान में कई वार्ताएं आयोजित कीं, जिसमें चीन, पाकिस्तान और ईरान को शामिल किया.
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अप्रभावी सरकार
राष्ट्रपति अशरफ गनी को व्यापक समर्थन हासिल नहीं है और अफगान सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं. देश में सत्ता हथियाने को लेकर एक अंतहीन सा दिखने वाला संघर्ष जारी है. (शामिल शम्स/आरपी)
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तालिबान प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने इस रिपोर्ट को "पक्षपातपूर्ण" बताते हुए खारिज कर दिया. उनका कहना है कि इसमें तालिबान के नियंत्रण वाले इलाकों में सेना और सुरक्षा बलों की कार्रवाई के दौरान मारे गए लोगों का ब्यौरा नहीं है. जबीहुल्लाह मुजाहिद ने अपने दावों को पुष्ट करने के लिए कोई आंकड़ा नहीं दिया.
2014 के आखिर में अफगानिस्तान में नाटो और अमेरिकी फौज का युद्धक मिशन पूरा हो जाने के बाद चरमपंथियों ने अपनी गतिविधियों का दायरा बड़ा कर लिया है. तालिबान ने देश के कई जिलों को अपने नियंत्रण में ले लिया है. अफगान सरकार ने सोमवार को कहा कि सेना ने दक्षिणी हेलमंद प्रांत में एक अहम जिले को फिर से अपने कब्जे में ले लिया. नावाय जिले में हुई जंग बहुत भीषण थी जिसमें तालिबान के कम से कम 50 लड़ाके मारे गए. वजीरी के मुताबिक इस अभियान में सुरक्षा बल के केवल पांच जवान जख्मी हुए. तालिबान ने इस पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया.
लश्कर गाह से केवल 16 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद नवाय चरमपंथी हमलों का केंद्र रहा है. अमेरिका और नाटो की सेना अफगान सेना की हेलमंद में मदद कर रही है. अफगानिस्तान में दूसरी जगहों पर तालिबान ने सीमा पुलिस की कार से तीन अधिकारियों को अगवा कर उनकी हत्या कर दी. इनमें एक महिला भी थी.