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अफगानिस्तान में चुपके चुपके बड़े कैदी रिहा

७ मई २०१२

अफगानिस्तान में कई सालों से अमेरिका चुपके चुपके बड़े कैदियों को रिहा करता रहा है. चरमपंथी गुटों के साथ समझौते के तहत यह कार्रवाई होती रही है जिसका मकसद हिंसा में कमी लाना है. अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने यह खबर दी है.

तस्वीर: picture-alliance/ dpa/dpaweb

वॉशिंगटन पोस्ट ने अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से नाम जाहिर किए बगैर बताया है कि यह कार्यक्रम बेहद जोखिम भरा था लेकिन कैदियों को इस शर्त पर रिहा किया जाता रहा कि वो हिंसा छोड़ देंगे और अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया जाएगा. अफगानिस्तान में बगराम हवाई अड्डे के पास मौजूद परवान डिटेंशन सेंटर में यह कार्यक्रम चला. यहां के एक अमेरिकी अधिकारी का बयान अखबार ने छापा है, "हर कोई मानता है कि ये लोग अच्छे नहीं हैं, लेकिन फायदे ने जोखिम मिटा दिया."

तस्वीर: picture-alliance / dpa

इस कार्यक्रम के तहत कितने कैदियों की रिहाई हुई इस बारे में कोई आंकड़ा नहीं दिया गया, लेकिन यह गठबंधन सेना को सामरिक बढ़त दिलाने के लिए तैयार किया गया. इस मामले में तालिबान के साथ कोई बड़ा समझौता नहीं किया गया. इस गोपनीय कार्यक्रम के तहत रिहाई के लिए आने वाले आवेदनों पर शीर्ष अमेरिकी कमांडर और अफगानिस्तान में सैनिक मामलों से जुड़े वकीलों की रजामंदी जरूरी है. रिहाई की प्रक्रिया अमेरिकी सैन्य अधिकारियों और चरमपंथी गुटों के कमांडर और इलाके के वरिष्ठ अफगान नागरिकों के बीच बातचीत के साथ शुरू होती. इस बातचीत में यह वादा किया जाता कि अगर प्रस्तावित कैदी को रिहा कर दिया जाता है तो उनके जिले में हिंसा में कमी आएगी. अमेरिकी अधिकारी ने अखबार से कहा है, "हम ऐसे कैदियों की पहचान करते हैं जिनका दूसरे चरमपंथियों पर प्रभाव होता है और जिनकी रिहाई पूरे इलाके में शांति लाने में मददगार होती है. ऐसे मामलों में चरमपंथियों को रिहा करने का फायदा उन्हें कैद कर रखने की वजहों पर भारी पड़ जाता है."

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पिछले हफ्ते काबुल में अफगानिस्तान के साथ रणनीतिक साझेदारी के समझौते पर दस्तखत किया. इसमें 2014 में अमेरिकी युद्धक सेना के देश से बाहर चले जाने के बाद दोनों देशों के रिश्तों की रुपरेखा तय की गई है. हालांकि अभी इसका पूरा ब्यौरा तैयार नहीं हुआ है. अमेरिकी चुनाव से छह महीने पहले ओबामा का अफगानिस्तान आना मुख्य रूप से यह जताने के लिए है कि अमेरिका दशक भर से विदेशों में चल रही जंग से अब अपना ध्यान हटा कर घरेलू मुद्दों की ओर ला रहा है.

तस्वीर: AP

अफगानिस्तान में फिलहाल नाटो के करीब 130,000 सैनिक तैनात हैं जिनमें ज्यादातर अमेरिका के हैं. यह सेना अफगानिस्तान में तालिबान के नेतृत्व में चल रही हिंसक कार्रवाइयों पर लगाम कसने की कोशिश कर रही है. 2001 में अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को पनाह देने की वजह से अमेरिका ने तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता से उखाड़ फेंका और हामिद करजई को देश की सत्ता पर काबिज किया.

एनआर/एमजे (एएफपी)

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