अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की अफगान नीति पर अमेरिका और दूसरे देशों में बहस शुरू हो गयी है. अफगान विभाग के प्रमुख फ्लोरियान वाइगांड का कहना है कि नागरिक संरचनाओं के विकास के बिना हिंदुकुश पर शांति संभव नहीं होगी.
विज्ञापन
अफगानिस्तान के लिए नयी अमेरिकी रणनीति में हालांकि बहुत से सवाल खुले हैं, लेकिन ट्रंप के लिहाज से यह बहुत यथार्थवादी है. मेज पर कई विकल्प थे, सेना की फौरन वापसी से लेकर युद्ध को गैरसरकारी सुरक्षा कंपनियों को सौंपने तक. सलाहकारों ने अच्छा काम किया है, कम से कम सेना के जनरलों के नजरिये से. क्योंकि राष्ट्रपति के फैसले के पीछे सिर्फ अमेरिका केंद्रित सैन्य नीति है, कोई मानवीय तर्क नहीं. उसके पीछे नये 9/11 का डर है, अफगान लोगों की खुशहाली नहीं. अमेरिका की मौजूदा नीति और इस नई नीति से वहां और गहराने वाली लड़ाई के परिणास्वरूप कई और लोग अफगानिस्तान छोड़कर भागेंगे. लेकिन उस समस्या का सामना अमेरिका को नहीं, बल्कि अफगानिस्तान के पड़ोसी मुल्कों और यूरोप को करना होगा.
सैनिक तर्क के साथ तय की गयी अमेरिकी नीति राजनयिक तौर पर अस्पष्ट है. इसमें भारत से सहायता के वायदे और पाकिस्तान को स्पष्ट चेतावनी है. लेकिन यह नीति सेना को आवश्यक लचीलापन देती है ताकि वह खुद फैसला कर सके कि उसे कितने सैनिकों की जरूरत है. राष्ट्रपति ने ना तो आंकड़े दिये हैं और नहीं विस्तृत आदेश. सैनिकों की संख्या की बात न करना महत्वपूर्ण है. इसलिए भी कि सेना की संख्या अहम नहीं होती, उनकी कार्रवाई अहम है. अफगानिस्तान के पास 350,000 की सेना है लेकिन इसके बावजूद एक दिन पहले तालिबान ने एक जिले पर बिना लड़ाई के कब्जा कर लिया. असल काम तो अमेरिकी स्पेशल फोर्स की मदद से अफगान स्पेशल फोर्स को करना है.
लेकिन इसके साथ ही अच्छी खबरों का सिलसिला खत्म हो जाता है. जैसा कि राष्ट्रपति ने कहा, अमेरिका की दिलचस्पी आतंकवाद को कुचलने में है, अफगानिस्तान में राष्ट्र निर्माण में नहीं. ये समझना मुश्किल नहीं कि नागरिक विकास सहायता के लिए इसका क्या मतलब है. लोकतंत्र को प्रोत्साहन देने, भ्रष्टाचार से लड़ने, महिला अधिकारों को बढ़ावा देने या मीडिया की आजादी जैसी परियोजनाओं के लिए संसाधनों का अभाव हो जायेगा और सरकार तथा वार लॉर्ड उस तरह से शासन कर पाएंगे जैसा वे सोचते हैं.
लेकिन इसके साथ ट्रंप उस कामयाबी को खतरे में डाल रहे हैं जो वे हथियारों की मदद से हासिल करना चाहते हैं. सैनिक कार्रवाई के कट्टर समर्थक भी अब मानने लगे हैं कि अफगानिस्तान में शांति बंदूक की नाल से नहीं आ सकती. सैनिक सफलता नागरिक विकास के लिए समय उपलब्ध कराती है, जिसमें स्थिरता और शांति कायम की जा सके.
अफगानिस्तान में फैशन शो
कड़ी सुरक्षा के बीच युवा मॉ़डलों ने काबुल के एक निजी बंगले के बगीचे में कैटवॉक किया इसमें छह औरतें भी थीं. चरमपंथी हमलों और जंग के शोर में कराहते अफगानिस्तान में फैशन को सामने लाने की कुछ कोशिशें बीते सालों में हुई हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Gul
रैंप के रंग
पिछले हफ्ते हुए फैशन शो में मॉडलों ने अफगानिस्तान की पारंपरिक पोशाकों को दिखाया जिसे यहीं के कई अलग अलग डिजायनरों ने तैयार किया है. अफगानिस्तान के अलग अलग जातीय समुदायों के पहनावे की शैलियों में फर्क होता है और यही इस फैशन शो में भी नजर आया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Gul
फैशन की बहार
फैशन शो को देखने के लिए 100 से ज्यादा पुरुष और महिलाएं जमा हुए थे. छोटी सी जगह पूरी तरह से भर गई थी और लोगों का उत्साह देखने लायक था. तालिबान के शासन में इस तरह के नजारे की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Gul
जोखिम है तो हुआ करे
शो के आयोजक 22 साल के मॉडल और फैशन डिजायनर अजमल हकीकी के लिए ये काम बेहद जोखिमभरा था लेकिन उन्होंने इसके लिए हिम्मत जुटा लिया. वे कहते हैं, "मैंने खुद से कहा अगर आत्मघाती हमलावर हम पर हमला करता है, मैं अपने हाथ पांव खो देता हूं तब भी उसी रास्ते पर चलूंगा जिसे मैंने चुना है."
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot
फैशन से आएगी एकता!
आयोजक अजमल हकीकी को अफगान संस्कृति और यहां के पारंपरिक इलाकाई लिबासों की चमक अभिभूत कर देती है और इन्हें लोगों के सामने लाने की उनके अंदर की मजबूत इच्छा इन डियाजनों को देख और ज्यादा प्रखर हो जाती है. उनका मानना है कि अगर अफगान लोग अपनी इस विरासत के मूल्य को जान लें तो इससे उन्हें एक करने में भी मदद मिलेगी.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot
अफगान से अफगान का अफगान के लिए
बीते कुछ सालों में काबुल में कुछ फैशन शो हुए हैं लेकिन आमतौर पर उनमें अंतरराष्ट्रीय दर्शक होते है. हकीकी का शो पहली बार पूरी तरह से अफगान फैशन शो था जिसमें अफगानिस्तान के पारंपरिक लिबास को अफगान मॉडलों ने अफगान लोगों के सामने पेश किया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Gul
दिलों में डर अब भी है
हालांकि महिलाओं को इस तरह से लोगों के सामने पेश करने को लेकर अफगानिस्तान अब भी सहमा हुआ है. पांच साल के तालिबान शासन में जो डर बना वो उनके सत्ता से हटने के 16 साल बाद भी बना हुआ है. नियमित होने वाली हिंसा उस डर को जब तब मजबूत करती रहती है.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot
औरतों की मुश्किल
आज भी कुछ महिलाएं बिना बुर्के के घरों से बाहर नहीं निकलतीं जो उन्हें सिर से लेकर पैरों तक ढंके रखता है. महिलाओँ के खिलाफ हिंसा भी बहुत आम बात है. इसके अलावा पुरुषों से प्रेम करने पर महिलाओं को पत्थर से मारने, सरेआम मौत की सजा देने और जेल में डालने की खबरें भी आती रहती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot
कम समय में बड़ी कामयाबी
ऐसे हालात में भी हकीकी की मॉडलिंग एजेंसी ने अफगान फैशन की दुनिया में बहुत कम समय में अपनी एक पहचान कायम कर ली है. वो कई बार राष्ट्रीय टेलिविजन पर भी अलग अलग मौकों पर आ चुके हैं. एजेंसी अपनी खुद के ब्रैंड नाम से कपड़े बेचती है. उनके खरीदारों में 70 फीसदी से ज्यादा विदेशी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot
पहले भी हुए हैं फैशन शो
काबुल में ये तीसरा बड़ा फैशन शो था. इसमें शामिल होने वाली मॉडलों, खासतौर से लड़कियों के लिए ये एक अनोखा अनुभव था. सुरक्षा के भारी इंतजामों के बावजूद उन्हें डर भी लग रहा था. हालांकि एक बेहतर भविष्य के सपने ने रैंप पर उनके कदमों को चलाते रखा.
तस्वीर: Getty Images/AFP/W. Kohsar
शोख रंगों की अफगान शैली
अफगान शैली के कपड़ों में चटक रंगों का भी खूब इस्तेमाल होता है. कपड़ों का रंग देखने वालों की आंखों के साथ ही ये मॉ़डलों के मन में भी सपनों के रंग बुनता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/W. Kohsar
भविष्य की तैयारी
दर्शकों में शामिल हुए लोगों के लिए भी ये अनुभव उम्मीदें जगाने वाला था. दर्शकों में शामिल एक महिला ने कहा, "अगर हम अपने लोगों की सोच बदल सकें और इतने सालों की जंग से दूर रख सकें तो मुझे यकीन है कि लोग एक बेहतर भविष्य के लिए तैयार हैं."
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Hossaini
काबुल में सब ठीक है
तालिबान का शासन खत्म होने के बाद अफगानिस्तान में थोड़ी तब्दीली आई है. खासतौर से काबुल में शिक्षा और रोजगार को लेकर हालात थोड़े बेहतर हैं. हालांकि अकसर होने वाले हमलों ने इन्हें पूरी तरह बदलने से रोक रखा है. अफगान लोग हर रात इस आशंका के साथ ही सोते हैं कि अगली सुबह कहीं फिर उनकी आंखें तालिबान के शासन में ना खुलें.