एक मीडिया वॉचडॉग ने कहा कि पिछले दो महीनों में अफगान पत्रकारों के खिलाफ हिंसा और धमकियों के 30 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से लगभग 90 प्रतिशत तालिबान द्वारा किए गए हैं.
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अफगानिस्तान राष्ट्रीय पत्रकार संघ द्वारा दर्ज किए गए 40 फीसदी से अधिक मामले पिटाई के हैं और 40 प्रतिशत के करीब के मामले मौखिक धमकी वाले हैं. संघ के प्रमुख मासोरो लुत्फी ने कहा कि अन्य मामलों में पत्रकारों को एक दिन के लिए कैद किया गया और एक पत्रकार की मौत हुई.
संघ का कहना है राजधानी काबुल के बाहर पूरे अफगानिस्तान में सितंबर और अक्टूबर में अधिकांश मामले दर्ज किए गए थे लेकिन हिंसा के 30 मामले राजधानी में हुए. लुत्फी ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि हिंसा की अधिकाशं घटनाएं या हिंसा की धमकियां तालिबान के सदस्यों द्वारा की गई थीं लेकिन 30 में से तीन मामलों को अज्ञात लोगों द्वारा अंजाम दिया गया.
यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब अफगानिस्तान के तालिबान शासक अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ राजनयिक चैनल खोलने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय औपचारिक रूप से तालिबान के शासन को मान्यता देने के लिए अनिच्छुक नजर आ रहा है. तालिबान की कोशिश है कि वह खुद को जिम्मेदार शासक के रूप में स्थापित करे और वह सभी के लिए सुरक्षा का वादा कर रहा है.
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद का कहना है कि वह पत्रकारों के साथ हिंसा की वारदात से वाकिफ हैं और दोषियों को सजा देने के लिए मामले की जांच कर रहे हैं. उन्होंने समस्या को सुलझा लेने का वादा किया.
अक्टूबर की शुरुआत में पूर्वी नंगरहार प्रांत में एक हमले पत्रकार सैयद मरूफ सादत और उनके चचेरे भाई समेत दो तालिबानी लड़ाके मारे गए थे, इस हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट समूह ने ली थी. अगस्त के अंत में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद से अफगानिस्तान में सादत समेत तीन पत्रकार मारे गए हैं. राहा न्यूज एजेंसी की रिपोर्टर अलीरेजा अहमदी और जहान ए सेहत टीवी चैनल की एंकर नजमा सादिकी की निकासी के दौरान काबुल हवाईअड्डे पर आत्मघाती हमले में मौत हो गई थी.
तालिबान ने बार-बार मीडिया से इस्लामी कानूनों का पालन करने का आग्रह किया है, लेकिन विस्तार से बताए बिना. लुत्फी ने कहा कि उनका समूह मीडिया आउटलेट्स और तालिबानी अधिकारियों के साथ एक बिल पर काम कर रहा है ताकि मीडिया अपने दैनिक कार्यों को जारी रख सके.
अफगानिस्तान लंबे समय से पत्रकारों के लिए खतरनाक देश रहा है. द कमेटी टु प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने सितंबर की शुरुआत में कहा था कि 53 पत्रकार 2001 से देश में मारे गए हैं. इसी साल जुलाई महीने में पुलित्जर विजेता भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत तालिबान और अफगान सुरक्षाबलों की झड़प को कवर करते हुई थी.
एए/वीके (एपी)
पुलित्जर विजेता भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत
फोटोजर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की अफगानिस्तान में मौत हो गई है. अफगान सुरक्षा बलों और तालिबान के बीच हिंसक भिड़ंत में उनकी जान चली गई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
पुलित्जर से सम्मानित
हाल ही में अफगानिस्तान के बदलते हालातों और हिंसा के अलावा, उन्होंने इराक युद्ध और रोहिंग्या संकट की भी कई यादगार तस्वीरें ली थीं. सन 2010 से समाचार एजेंसी रॉयटर्स के लिए काम करने वाले दानिश सिद्दीकी को 2018 में रोहिंग्या की तस्वीरों के लिए ही पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
अफगान बल के साथ
विदेशी सेनाओं के अफगानिस्तान से निकलने और तालिबान के फिर से वहां कब्जा जमाने के इस दौर में हर दिन हिंसक घटनाएं हो रही हैं. ऐसे में अफगान सुरक्षा बलों के साथ मौजूद पत्रकारों के जत्थे में शामिल सिद्दिकी मरते दम तक अफगानिस्तान से तस्वीरें और खबरें भेजते रहे.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
कोरोना की नब्ज पर हाथ
हाल ही में भारत में कोरोना संकट की उनकी ली कई ऐसी तस्वीरें देश और दुनिया के मीडिया में छापी गईं. खुद संक्रमित होने का जोखिम उठाकर वह कोविड वॉर्डों से बीमार लोगों के हालात को कैमरे में कैद करते रहे.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
भगवान का रूप डॉक्टर
कोरोना काल में सिद्धीकी की ऐसी कई तस्वीरें आपने समाचारों में देखी होंगी जिसमें एक फोटो पूरी कहानी कहती है. महामारी के समय दानिश सिद्दीकी की ली ऐसी कई तस्वीरें इंसान की दुर्दशा और लाचारी को आंखों के सामने जीवंत करने वाली हैं.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
लाशों के ऐसे कई अंबार
जहां एक लाश का सामना किसी आम इंसान को हिला देता है वहीं पत्रकारिता के अपने पेशे में सिद्धीकी ने ना केवल लाशों के अंबार के सामने भी हिम्मत बनाए रखी बल्कि पेशेवर प्रतिबद्धता के बेहद ऊंचे प्रतिमान बनाए. कोरोना की दूसरी लहर के चरम पर दिल्ली के एक श्मशान की फोटो.
तस्वीर: DANISH SIDDIQUI/REUTERS
कश्मीर पर राजनीति
भारत की केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जब जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष राज्य का दर्जा रद्द कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा, उस समय भी ड्यूटी कर रहे फोटोजर्नलिस्ट सिद्दीकी ने वहां की सच्चाई पूरे विश्व तक पहुंचाई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
सीएए विरोध के वो पल
केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शनों से उनकी खींची ऐसी कई तस्वीरें दर्शकों के मन मानस पर छा गईं थी. जैसे 30 जनवरी 2020 को पुलिस की मौजूदगी में जामिया यूनिवर्सिटी के बाहर प्रदर्शन करने वालों पर बंदूक तानने वाले इस व्यक्ति की तस्वीर.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
समर्पण पर गर्वित परिवार
जामिया यूनिवर्सिटी के शिक्षा विभाग में प्रोफेसर उनके पिता अख्तर सिद्दीकी ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया कि दानिश सिद्दीकी "बहुत समर्पित इंसान थे और मानते थे कि जिस समाज ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है, वह पूरी ईमानदारी से सच्चाई को उन तक पहुंचाए." घटना के समय दानिश सिद्दीकी की पत्नी और बच्चे जर्मनी में छुट्टियां मनाने आए हुए थे.