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अफगानिस्तान में फेसबुक का फूल

२७ जुलाई २०१२

तालिबान के खात्मे के 10 साल बाद अफगानिस्तान में इन दिनों सोशल साइट्स का चलन जोरो पर हैं. नेता से लेकर कबीलाई सरदार तक और तालिबान से लेकर युवा वर्ग तक सभी सोशल साइट्स का इस्तेमाल अपना संदेश फैलाने के लिए कर रहे हैं.

तस्वीर: Reuters

अफगानिस्तान में 1996 से लेकर 2001 तक तालिबान का शासन था और इस दौरान सोशल साइट्स और इंटरनेट पर पूरी तरह प्रतिबंध था. पर अब स्थिति बदल रही है. पूर्व कबीलाई सरदार और अफगानिस्तान के जाने माने नेता अब्दुल रशीद दोस्तम के सहयोगी हुमायूं हकबीन का कहना है कि अरब क्रांति में फेसबुक और सोशल वेबसाइट के इस्तेमाल के बाद उनके नेता काफी प्रभावित हैं. अफगानिस्तान के उत्तरी इलाके में रहने वाले दोस्तम उजबेक मूल के हैं और नॉर्दन एलायंस के सदस्य भी हैं.  2014 में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों के लिए वह अभी से तैयारी में जुटे हैं. दोस्तम की तर्ज पर अफगानिस्तान के दूसरे नेता भी इन दिनों पढ़े लिखे युवकों और पश्चिमी देशों के लोगों को प्रभावित करने के लिए ट्विटर का इस्तेमाल कर रहे हैं.

अफगान संसद की सदस्य हुमारिया अय्यूबी का कहना हैं, "संसद का सदस्य होने के नाते मैं फेसबुक को बेहद काम का पाती हूं. लोगों से संपर्क कायम करने का ये बेहतरीन तरीका है. मुझे ये देखकर बहुत खुशी होती है कि हजारों पढे़ लिखे अफगान युवक युवतियां देश के अंदर बाहर फेसबुक और ट्विटर का इस्तेमाल करते हैं. और देश की राजनीतिक स्थिति के बारे में चर्चा करते हैं."

अय्यूबी कहती हैं कि अरब क्रांति के दौरान सोशल मीडिया का इस्तेमाल देखकर उन्हें अपने चुनाव क्षेत्र में लोगों को संगठित करने का ख्याल आया. अफगानिस्तान की महिलाएं भी फेसबुक और सोशल साइट का इस्तेमाल बढ़ चढ़ कर करने लगी हैं.

यंग वीमेन फॉर चेंज नाम के संगठन ने हाल ही में काबुल में एक ऐसा इंटरनेट कैफे खोला है जिसमें केवल महिलाएं जा सकती हैं. 15 साल की लड़की सहर गुल के नाम पर इस कैफे का नाम सहर गुल नेटकैफे रखा गया है. सहर गुल पर उसके पति और ससुराल वालों ने बहुत जुल्म किया था और उन्हें अपने ही घर में कैद करके रखा था. कैफे की मैनेजर टूबा अहमदयार का कहना है, "महिलाओं को इंटरनेट उपलब्ध कराने के अलावा हम उन्हें हर दिन ये ट्रेनिंग भी देते हैं कि जागरूकता बढ़ाने के लिए फेसबुक का इस्तेमाल कैसे किया जाए. अरब देशों की जनता ने अपने देश के तानाशहों को खिलाफ जनता को लामबंद करने के लिए फेसबुक और इंटरनेट का सहारा लिया. इसका इस्तेमाल हम पढ़े लिखे लोगों का एक समूह तैयार करने के लिए कर रहे हैं."

सिर्फ नेता और पढ़े लिखे लोग ही नहीं, तालिबान भी नाटो सेनाओं के खिलाफ संदेश फैलाने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं. हालांकि  इंटरनेट के बारे में आतंकवादियों का नजरिया बदला कैसे, इस बारे में बात करने के लिए वो तैयार नहीं हैं.

तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद का कहना है, "हम अभी भी इंटरनेट और दूसरे मीडिया माध्यमों पर प्रतिबंध लगाएंगे, अगर उनका इस्तेमाल गैर इस्लामी चीजों के प्रचार प्रसार में हो रहा है. वैसे हम अपना संदेश प्रसारित करने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं और इससे खुश हैं." तालिबान ने एक वेबसाइट भी तैयार की है, जिसमें नाटो सेनाओं के खिलाफ वीडियो क्लिप और बम विस्फोट की वीडियो क्लिप लगाई गई हैं. मुजाहिद का कहना है, ''अफगानिस्तान के नेता सोशल मीडिया, खास कर फेसबुक के खिलाफ नहीं हैं. अफगानिस्तान और विदेश तक अपना संदेश भेजने का अच्छा जरिया है. हम जानते हैं कि ट्विटर विदेश में खासकर पश्चिमी देशों में बेहद लोकप्रिय है. इसीलिए हम इसका इस्तेमाल उन लोगों तक संदेश पहुंचाने के लिए कर रहे हैं." अफगानिस्तान की आबादी का 10 प्रतिशत से भी कम हिस्सा इंटरनेट का इस्तेमाल करता है. पिछले कुछ सालों के दौरान इस आंकड़े में लगातार इजाफा होता है.

वीडी/एजेए (एएफपी)

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