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अफगानिस्तान में रहेगी जर्मन सेना

१९ अप्रैल २०१३

अफगानिस्तान में विदेशी सेनाओं का अभियान खत्म हो रहा है. युद्धक दस्तों की तैनाती खत्म हो रही है लेकिन जर्मन सेना अफगानिस्तान में रहेगी. 2015 से उनकी जिम्मेदारी अफगान सेना का प्रशिक्षण होगी.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

2014 में नाटो के अफगानिस्तान अभियान के खत्म होने बाद भी सैकड़ों जर्मन सैनिक वहां तैनात रहेंगे. जर्मन सरकार ने कहा है कि 2015-16 में 600-800 सैनिक अफगानिस्तान में रहेंगे. उसके बाद बुंडेसवेयर के 200-300 सैनिक अफगान सैनिकों के प्रशिक्षण, सलाह और मदद के लिए रहेंगे. अफगानिस्तान से पूरी तरह से वापसी की फिलहाल संभावना नहीं दिख रही है. जर्मन रक्षा मंत्री थोमस डे मेजियर का कहना है कि बुंडेसवेयर को अफगानिस्तान में तैनात रखकर अब तक के अभियान की उपलब्धियों को सुरक्षित रखने की योजना है, "हम चाहते हैं कि हमारा एक दशक से ज्यादा का अभियान स्थायी रूप से सफल रहे."

जर्मन सेना बुंडेसवेयर के सैनिक ग्यारह साल से ज्यादा से अफगानिस्तान में तैनात हैं. इस समय जर्मनी के 4200 सैनिक वहां हैं. पिछले ग्यारह सालों में 52 जर्मन सैनिकों ने हिंदुकुश की पहाड़ियों में अपनी जान गंवाई है. 2014 के अंत में अफगानिस्तान में नाटो का युद्धक अभियान खत्म हो जाएगा और तब तक पश्चिमी देशों के सैनिक वहां से लौट जाएंगे. हालांकि 8 हजार से 12 हजार सैनिकों का ट्रेनिंग दस्ता वहां रहेगा.

जर्मन सैनिकों के साथ डे मेजियेरतस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी नाटो का पहला देश है जिसने इसके लिए अपनी ओर से पेशकश की है. 2016 के अंत तक वह उत्तरी अफगानिस्तान में अपनी जिम्मेदारी वाले इलाके में रहेगा. उसके बाद से उसकी गतिविधियां राजधानी काबुल तक ही सीमित रहेंगी. जर्मन सैनिक अफगान सैनिकों को प्रशिक्षण देंगे और उन्हें सुरक्षा मामलों में सलाह देंगे. कुछ सैनिक प्रशिक्षकों और सलाहकारों की सुरक्षा के लिए भी रहेंगे.

2015 से जर्मन सैनिकों की तैनाती का फैसला जर्मन सरकार को अफगान सरकार से इसके लिए निमंत्रण पर निर्भर करेगा. रक्षा मंत्री डे मेजियर ने कहा, "हम चाहते हैं कि हमारा स्वागत हो." इसके अलावा सैनिकों की तैनाती पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव, अफगानिस्तान और जर्मनी के बीच एक सैन्य समझौते और पर्याप्त सुरक्षा की जरूरत होगी.

जर्मन विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले ने युद्धक मिशन से प्रशिक्षण मिशन में बदलाव को ऐतिहासिक बदलाव बताया है. उन्होंने उम्मीद जताई कि इस योजना को संसद में व्यापक समर्थन मिलेगा, "हम अफगानिस्तान के लोगों को भंवर में नहीं छोड़ेंगे."

अफगान सैनिकों को ट्रेनिंग देते जर्मन सैनिकतस्वीर: picture-alliance/dpa

अफगानिस्तान में तैनात सैनिकों की संख्या में कटौती के साथ यह सवाल भी उठता रहा है कि बुंडेसवेयर की मदद करने वाले अफगान नागरिकों का क्या होगा. उन्हें डर है कि पश्चिमी देशों का साथ देने के कारण तालिबान के लड़ाके उन्हें सजा देंगे. स्थानीय कर्मचारियों में से एक को जर्मन सरकार ने शरण देने का आश्वासन दिया है. सरकारी सूत्रों के अनुसार शरण के आवेदन कुछ दर्जन भर ही हैं. इस समय रक्षा, गृह और विदेश मंत्रालयों ने करीब 1,500 अफगानों को नौकरी दे रखी है जो ट्रांसलेटर, कारीगर और सफाई कर्मचारी का काम करते हैं.जर्मन सेना में 450 ट्रांसलेटर काम करते हैं.

जर्मन सैनिकों के संगठन बुंडेसवेयर फरबांड ने सैनिकों को 2014 के बाद भी अफगानिस्तान में रखने के सरकार के फैसले को सकारात्मक बताया है. संगठन के प्रमुख उलरिष किर्ष ने समय रहते योजना बनाने का स्वागत करते हुए कहा है कि यह सवाल अनुत्तरित है कि विस्तार के बाद सेना का सिविल हिस्सा कैसा दिखेगा. उन्होंने कहा कि यदि यह काम नहीं करता है तो "शीघ्र ही ज्यादा सैनिकों की जरूरत पड़ सकती है. विपक्षी एसपीडी के रक्षा प्रवक्ता राइनर आरनॉल्ड ने कहा है कि जरुरी यह है कि जर्मनी को अमेरिका और नाटो का इंतजार नहीं करना चाहिए, खुद बताना चाहिए कि वह भविष्य में क्या कुछ कर सकता है.

अफगानिस्तान में तैनात अंतरराष्ट्रीय टुकड़ी आइसैफ में अमेरिका और ब्रिटेन के बाद जर्मनी के सबसे ज्यादा सैनिक तैनात हैं. जर्मन सेना को 5,000 से हटाकर 4,200 पर लाया जा चुका है और इस समय 1,200 गाड़ियों और 4,800 कंटेनरों को जर्मनी लाने की तैयारी चल रही है. यह सारा सामान तुर्की के ट्राबजोन बंदरगाह से होकर लाया जाएगा.

एमजे/एनआर (डीपीए, एएफपी)

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