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अफगानिस्तान से फौज की जल्दी वापसी में जोखिम

४ जुलाई २०११

अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों को सेना की सुझाई गति से ज्यादा तेज वापसी का राष्ट्रपति बराक ओबामा का फैसला वहां जंग की धार को कमजोर कर सकता है. अमेरिकी सीनेटर जॉन मैक्केन ने रविवार को कही यह बात.

तस्वीर: dapd

मैक्केन और उनके साथ रिपब्लिकन सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने यह भी कहा कि वे इस बात से भी चिंतित हैं कि अफगानिस्तान सरकार और उसके नाटो सहयोगियों से लड़ रहे उग्रवादियों का संबंध पाकिस्तान से जुड़ रहा है. जून के आखिर में राष्ट्रपति ओबामा ने एलान किया कि इस साल के अंत तक अफगानिस्तान से 10 हजार सैनिकों की वापसी हो जाईग. इसके बाद अगले साल की गर्मी खत्म होने से पहले 23 हजार सैनिक वापस वतन लौट जाएंगे. इस समयसीमा से अमेरिकी सेना ने खुद को दूर कर लिया है. सेना ने अमेरिकी कांग्रेस से कहा है कि वे इससे धीमी और कम जोखिम वाली वापसी की समयसीमा चाहते हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

मैक्केन की चिंता

काबुल के दौरे पर आए जॉन मैक्केन ने कहा, "मुझे ज्यादा चिंता इस बात की है कि क्या हम देश के दक्षिणी हिस्से से देश के पूर्वी हिस्से की ओर सेना की कमान ले जाने में सक्षम हैं और क्या वहां से अपना काम पूरा किया जा सकता है." 2009 में राष्ट्रपति ओबामा ने अतिरिक्त अमेरिकी सैनिकों की मांग की थी. इनमें से ज्यादातर दक्षिणी हिस्से में तालिबान से लोहा ले रहे हैं. यहां इन सैनिकों को कुछ कामयाबी जरूर मिली है, लेकिन पाकिस्तान से लगते पूर्वी क्षेत्र की सीमा पर हालात बिगड़ गए हैं. सर्दियों के दौरान उग्रवादी पाकिस्तान में सुरक्षित लौट रहे हैं और फिर गर्मी पड़ने पर आ कर यहां हमले कर रहे हैं. सैन्य अधिकारियों ने अपना ध्यान इस साल दक्षिणी हिस्से की ओर लगाया है. लेकिन मैक्केन का कहना है कि अगले साल की जंग में ध्यान पूर्वी इलाके पर होगा और इसके लिए और फौज की जरूरत पड़ सकती है. मैक्केन ने कहा है, "मेरा मानना है कि वापसी की योजना में एक गैरजरूरी जोखिम है और इसीलिए कोई सैन्य अधिकारी इस पर अपनी मुहर नहीं लगा रहा है.

तस्वीर: AP

उग्रवादियों को पनाह मिल रही है

मैक्केन ने कहा है कि अफगानी चरमपंथी और पाकिस्तान की प्रमुख खुफिया एजेंसी आईएसआई के बीच रिश्तों की भूमिका पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. बहुत सारे उग्रवादियों के गुटों को सीमा पार पनाह मिल रही है. इन गुटों में खतरनाक हक्कानी गुट भी शामिल है. मैक्केन ने कहा, "हमें पाकिस्तान से वास्तविकता के आधार पर बात करनी होगी. आईएसआई, हक्कानी नेटवर्क और तालिबान के बीच संबंध हैं. ग्राहम ने पाकिस्तान से सख्त कदम उठाने की मांग की है. ग्राहम ने कहा, "जब तक पाकिस्तान मदद शुरू नहीं करता यह बेहद मुश्किल काम होगा. सीनेट के सदस्य के रूप में हमारा काम पाकिस्तानी सेना को यह कहना है, कि आपको यह तय करना होगा कि किसे आप दोस्त बना कर रखना चाहते हैं और किसे दुश्मन. हम आपके दोस्त बने रहना चाहते हैं."

रिपोर्टः एजेंसियां/ एन रंजन

संपादनः ईशा भाटिया

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