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अफगानिस्तान से वापसी की तैयारी

२ अगस्त २०१३

जर्मन सेना अफगानिस्तान से अपनी टुकड़ियों को वापस बुला रही है. यह काम बड़ी चुनौती का है. सिर्फ सैनिकों और साज सामान लाने के लिए विमानों पर 15 करोड़ यूरो खर्च होंगे. छावनियों का इस्तेमाल बाद में अफगान सेना करेगी.

तस्वीर: cc-by-nd/Bundeswehr/Schmidt.

जर्मन सेना बुंडेसवेयर को विदेशों में तैनाती का अच्छा खासा अनुभव है, लेकिन फिर भी अफगानिस्तान से वापसी उसके लिए लॉजिस्टिक की एक ऐसी बड़ी चुनौती है, जिसका सामना उसने अब तक नहीं किया है. बुंडेसवेयर के अनुसार 2014 के अंत तक अफगानिस्तान से सेना को वापस बुलाने के अलावा, 1200 बख्तरबंद गाड़ियों और हथियारों, कंप्यूटरों और दूसरे साज सामानों से भरे 4,800 कंटेनर लाने होंगे.

फैजाबाद के पूर्वोत्तर में स्थित चौकी जैसी छोटी चौकियों को पहले ही खाली किया जा चुका है. कुंदूज के इलाके में भी जवानों ने पैकिंग शुरू कर दी है. बुंडेसवेयर इस साल सर्दियों से पहले ही उत्तरी अफगानिस्तान की अपनी चौकियों को खाली कर देगा ताकि उसे कम से कम मौसम की वजह से होने वाली दिक्कतों का सामना न करना पड़े.

हब मजारे शरीफ

शुरुआती काफिला इस बीच निकल चुका है. सेना के परिवहन विशेषज्ञों की सबसे बड़ी चुनौती है, अफगानिस्तान का किसी समुद्री तट से जुड़ा न होना. इसलिए कंटेनर वाले जहाजों का इस्तेमाल नहीं हो सकता. तो लॉजिस्टिक अधिकारियों को वैकल्पिक साधनों का इस्तेमाल करना होगा. तोप जैसे संवेदनशील हथियारों का ट्रांसपोर्ट विमानों से सीधे जर्मन शहर लाइपजिग पहुंचाया जाएगा. इस पर सेना के 15 करोड़ यूरो खर्च होंगे.

ट्राबजोन के बंदरगाह से जर्मनीतस्वीर: Bundeswehr - PIZ SKB/Foto: Vanita Schanze

बाकी सामान को अफगानिस्तान से जर्मनी लाने के लिए तीन वैकल्पिक रास्ते हैं-

1. उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, रूस और बाल्टिक होकर रेल का उत्तरी रास्ता.

2. हवाई या थल मार्ग से पहले कराची और फिर समुद्र मार्ग से जर्मनी वाला दक्षिणी रास्ता.

3. मजारे शरीफ से काला सागर पर तुर्की के बंदरगाह ट्राबजोन तक.

ट्राबजोन में बुंडेसवेयर ने ट्रांसपोर्ट के लिए एक हब बनाया है, जहां से नागरिक जहाजों पर सामान बोस्पोरस और जिब्राल्टर होकर जर्मनी के एम्डेन तक लाया जाएगा.

क्या लाएं क्या छोड़ें?

अफगानिस्तान में जर्मन सेना के पास ऐसा सामान भी है जो आर्थिक या सैन्य कारणों से वापस नहीं लाया जा सकता. यह 'रिडिप्लॉयमेंट प्लानिंग' जर्मन सेना के लिए गंभीर चुनौती है. हर सामान की सूची बनाई जा रही है. उसके बाद फैसला किया जाएगा कि क्या तैनाती की जगह पर ही नष्ट कर दिया जाए कौन सा सामान अफगान सेना को दे दिया जाए या वापस जर्मनी लाया जाए. बुंडेसवेयर के स्थानीय कमांडर यॉर्क फ्राइहेर फॉन रेशेनबर्ग कहते हैं, "जिन चीजों को वापस ले जाने का खर्च बहुत ज्यादा है, उन्हें कूंदूज में ही बेच दिया जाएगा." इनमें बिजली बनाने की मशीन और फर्नीचर जैसे गैर सैनिक सामान होंगे.

दो साल पहले 60 लाख यूरो में खरीदे गए आधुनिक अस्पताल का एक हिस्सा वापस लाया जाएगा और एक हिस्सा वहीं छोड़ दिया जाएगा. कमांडर बताते हैं, "चिकित्सीय उपकरणों का बड़ा हिस्सा वापस लाया जाएगा, क्योंकि अगर हम उन्हें वहां छोड़ेंगे तो दो साल के लिए उसकी गारंटी देनी होगी, जो हमारे लिए काफी महंगी होगी." इनका इस्तेमाल जर्मनी में या अगली तैनाती के दौरान किया जा सकेगा. इसके विपरीत अस्पताल के कमरे और एयर कंडीशनिंग मशीन वहां बनने वाले पुलिस ट्रेनिंग सेंटर को दे दी जाएगी.

सेना-पुलिस की हिस्सेदारी

अफगानिस्तान के राष्ट्रीय पुलिस के ट्रेनिंग सेंटर के अलावा अफगान सेना की चौकी भी यहां जर्मन सेना के पूर्व बैरक में होगी. कर्नल रेशेनबर्ग के अनुसार बैरक को अफगान सेना की जरूरतों के अनुसार ढाला जाएगा और एक दीवार से दो हिस्सों में बांट दिया जाएगा. सेना और पुलिस के लिए बिजली की सप्लाई भी अलग अलग होगी. बिजली की सप्लाई जेनरेटरों से नहीं बल्कि नेटवर्क से होगी जो उतना भरोसेमंद तो नहीं लेकिन किफायती जरूर है. दोनों का अलग अलग किचन होगा और अलग हीटिंग और वॉटर सप्लाई भी होगी. इस पर कुछ लाख यूरो का खर्च आएगा.

पैकिंग शुरूतस्वीर: cc-by/Sebastian Wilke/Bundeswehr

कर्नल रेशेनबर्ग की पोस्टिंग का समय बीत रहा है, लेकिन उन्होंने जर्मन सेना की पूरी वापसी होने तक वहां रहने की सहमति दे दी है. उनका कहना है कि अफगान सेना जर्मन सेना के बिना भी अपनी जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार है. इसके विपरीत अफगान पुलिस के कुंदूज कमांडर जनरल खलील अंदराबी का कहना है कि पूरी तैयारी के बावजूद अभी भी ट्रेनिंग, क्वालिटी हथियारों और हवाई समर्थन की कमी है. "यह कुंदूज में हमारे काम को मुश्किल बनाता है. जर्मन सेना की वापसी समय से थोड़ी पहले हो रही है. हमारे जर्मन साथियों को वापसी के लिए 2014 में राष्ट्रपति चुनावों का इंतजार करना चाहिए था."

रिपोर्ट: नबीला करीमी अलेकोजाई/एमजे

संपादन: आभा मोंढे

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