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अफगान टीम के लिए जर्मनी में प्रतिभा की खोज

१९ सितम्बर २०११

फुटबॉल खेलने वाले देशों के बीच अफगानिस्तान की मौजूदा रैंकिंग फिलहाल 181 है. पर अब बहुत कुछ बदल सकता है. एक अफगान व्यक्ति जर्मनी में फुटबॉल खिलाड़ियों की खोज में है जिससे अफगान राष्ट्रीय टीम को सुधारा जा सके.

हैमबर्ग में रहते अफगान मोहम्मद साबिर रोहपरवरतस्वीर: DW

अफगानिस्तान में फुटबॉल के लिए मोहम्मद साबिर रोहपरवर बड़ा नाम हैं. सेंटर फॉरवर्ड खिलाड़ी के तौर पर हिंदुकुश काबुल क्लब के लिए 70 के दशक में साबिर ने 200 से ज्यादा गोल किए हैं. राष्ट्रीय टीम के लिए भी उन्होंने 56 मैचों में 25 गोल दागे हैं. मई 1980 में अपने छह साथियों के साथ जब वह अफगानिस्तान से चले गए तो बड़ी हायतौबा मची. यह अफगानिस्तान में सोवियत संघ के घुसने पर विरोध जताने का उनका अपना तरीका था.

अच्छे फुटबॉल खिलाड़ी की तलाश

31 साल में रोहपरवर जर्मनी के हैम्बर्ग में घर बसा लिया हैं. हैम्बर्ग में अफगानिस्तान से भाग कर आए लोगों की सबसे बड़ी आबादी रहती है. साबिर को अफगानिस्तान छोड़ने के अपने फैसले पर कभी अफसोस नहीं हुआ उस वक्त भी जब यहां जर्मनी में उन्हें सब कुछ नया शुरू करना पड़ा. काबुल यूनिवर्सिटी से कृषि अर्थशास्त्र में ली गई उनकी डिग्री का यहां कोई मोल नहीं था इसलिए वह टैक्सी ड्राइवर बन गए और साथ ही अफगान फुटबॉल एसोसिएशन के लिए प्रतिभाओं की तलाश भी शुरू कर दी. रोहपरवर कहते हैं, "नए नाम तलाश करने के लिए मैं हमेशा कोशिश करता हूं कि जितना ज्यादा हो सके अखबार पढ़ूं. इसके बाद में उनके फोन नंबर ढूंढता हूं या फिर दूसरी जगहों पर खेल रहे अपने दोस्तों से बात कर अच्छे खिलाड़ियों के बारे में पूछता हूं." रोहपरवर की कोशिश लगता है रंग ला रही है क्योंकि उन्हें कई खिलाड़ी मिल गए हैं जो अफगान राष्ट्रीय टीम में खेल रहे हैं.

मंजिल अफगानिस्तान

मंसूर फकिरयार रोहपरवर की ही खोज हैं. मंसूर के मां बाप उनके पैदा होने से कुछ ही समय पहले अफगानिस्तान से भाग आए और इस वजह से उनकी परवरिश जर्मन शहर ब्रेमेन में हुई जहां वह अब भी रहते हैं. मंसूर ओल्डेनबुर्ग फुटबॉल क्लब के गोलकीपर हैं और यहीं से उनके लिए राष्ट्रीय टीम के दरवाजे भी खुल गए हैं. इस साल पहली बार वह अफगानिस्तान के लिए खेलने जा रहे हैं. यह उनके लिए न सिर्फ खुशी और गर्व का पल है बल्कि वह कहते हैं, "यह बहुत प्रोत्साहित करने वाला पल है जब आप ऐसे देश से जुड़ रहे हैं जिसे आप जानते तो नहीं लेकिन वो आपका घर भी है."

मंसूर फकियार ने अब तक पांच अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं. अगर वह जख्मी नहीं हुए होते और नौकरशाही के चक्कर में नहीं उलझे होते तो तो ज्यादा मैच भी खेल सकते थे. 2008 में रोहपरवर ने तब के राष्ट्रीय कोच क्लाउस स्टार्क को ब्रेमेन के इस प्रतिभाशाली गोलकीपर के बारे में बताया.

मंजिल अभी दूर है

फकिरयार और उनकी टीम के लिए हर अंतरराष्ट्रीय मैच में कुछ न कुछ जोखिम से भरा होता है. सुरक्षा कारणों से राष्ट्रीय टीम को घरेलू मैदान पर खेलने की अनुमति नहीं मिलती. इसकी बजाए इन्हें भारत, नेपाल या तजाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों में मैच खेलना पड़ता है. यही वजह है कि फकिरयार ने अपने माता पिता के देश को सिर्फ एक बार ही देखा है वो भी बस पांच घंटे के लिए ही. तब किसी और देश के लिए जा रही उनकी टीम काबुल में कुछ देर के लिए रुकी थी.   हालांकि सिर्फ यही रोक टीम की राह में बाधा नहीं है. टीम की संरचना भी एक बड़ी चुनौती है क्योंकि इस टीम में दो बिलकुल अलग दुनियाओं के खिलाड़ी हैं. जैसे कि फकीरयार और उनके जैसे दूसरे खिलाड़ी जो दूसरे देशों में रह रहे हैं. फकीरयार ने माना, "यह झूठ होगा अगर मैं कहूं कि सब कुछ बहुत सद्भावपूर्ण है. मेरा अनुमान है कि ऐसा किसी फुटबॉल टीम में नहीं होता होगा हमारे कुछ अलग तरह की समस्याएं हैं. उदाहरण के लिए कुछ खिलाड़ी केवल पश्तो बोलते हैं तो कुछ केवल दरी और कुछ केवल अंग्रेजी."

तस्वीर: Fars

अंतरराष्ट्रीय दौरों पर उनके रहने की और दूसरी सुविधाएं बहुत साधारण होती हैं ऐसे में चुनौतियों का सामना करने के लिए जरूरी धैर्य बनाए रखने में देशभक्ति और आदर्शवाद की एक तगड़ी खुराक की जरूरत होती है. पर इसके कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं जिनकी ओर ध्यान दिलाते हुए फकीरयार कहते हैं, "जब मैं वापस जर्मनी आता हूं तो चीजों को दूसरी तरह से भी देखता हूं मैं अलग तरह से उन्हें जोड़ पाता हूं."

जर्मनी की मदद

हालांकि फकीरयार खुद को राष्ट्रीय खिलाड़ी कहते हैं लेकिन वह जानते हैं कि अफगान फुटबॉल निचले स्तर पर ही अच्छा है. उनका कहना है, "मुझे लगता है कि अफगानिस्तान में फुटबॉल का आयोजन बस पिछले पांच सालों से हो रहा है. जर्मनी की तरह पिछले पचास सालों से नहीं. यह भी सोचने वाली बात है." रोहपरवर जैसे प्रतिभा ढूंढने वालों की तरह ही उन्हें खुशी है कि अफगान फुटबॉल को खड़ा करने के लिए कोशिशें हो रही हैं.

जर्मनी का विदेश मंत्रालय कई प्रोजेक्ट के लिए पैसा दे रहा है. इसी तरह जर्मन ओलिम्पिक स्पोर्ट्स एसोसिएशन कई तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है. इन सबके पीछे विचार यह है कि फुटबॉल को तब तक के लिए किसी तरह खड़ा किया जाए जब तक कि अफगानिस्तान में राजनैतिक स्थिरता नहीं आ जाती. फकीरयार और रोहपरवर खुद को सहायताकर्मी ही मानते है.

अफगानिस्तान को वर्ल्ड कप तक पहुंचने में तो वक्त लगेगा लेकिन उसने एशियन कप के लिए क्वालिफाई कर लिया है. वैसे फकीरयार के लिए उससे पहले एक छोटा सपना भी है, वह अपने देश के मैच, अपने देश के लिए राजधानी काबुल में खेलना चाहते हैं. 

रिपोर्टः टॉर्स्टेन आहलेस/एन रंजन

संपादनः आभा एम


 

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