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अफगान ट्रक ड्राइवरों की मुश्किलें

२९ जुलाई २०१२

पाकिस्तान ने नाटो सेनाओं के लिए सप्लाई ले जाने वाले ट्रकों के लिए रास्ता खुल गया है. सैन्य और राजनीतिक स्तर पर चल रही चर्चा सबका ध्यान खींच रही है लेकिन ट्रक ड्राइवरों और उनकी मुश्किलों पर किसी का ध्यान नहीं है.

तस्वीर: Reuters

धूल से भरी पथरीली सडकों और तालिबान के हमलों के खतरों के बीच पाकिस्तान और अफगानिस्तान के ड्राइवर नाटो के ट्रकों को सीमा पार ले जाते हैं. अक्सर इन्हें यह भी नहीं पता होता कि ये घर लौट पाएंगे या नहीं. दो साल बाद नाटो के अफगानिस्तान से चले जाने की बात से अफगानिस्तान के ड्राइवरों में डर पैदा हो गया है. ट्रकों के ठेकेदार हबीबुल्लाह बताते हैं, "हमें नाटो के चले जाने के बाद की चिंता सता रही है क्योंकि तालिबान हमें गद्दार कहते हैं. उनके लिए हम सिर्फ दुश्मन ही नहीं, बल्कि काफिर भी हैं."

नाटो का कहना है कि पिछले तीन महीनों में तालिबान के हमले करीब ग्यारह फीसदी बढ़ गए हैं. पिछले हफ्ते ही हबीबुल्लाह की कंपनी के तीन ट्रकों को तालिबान ने जला दिया. इसी तरह एक दूसरे ट्रक पर भी हमला किया गया और उसके ड्राइवर की हत्या कर दी गयी. 22 तेल के टैंकरों को भी जला दिया गया. "हमारे एक ड्राइवर को जान से मार दिया गया. हम उसके शव को जलालाबाद ले कर आए. उसकी बीवी ने मेरा गिरेबान पकड़ लिया, मेरी कमीज फाड़ दी और चिल्लाने लगी कि तुमने मेरे पति की जान ली है. मुझे उसे कुछ पैसा भी देना पडा. अमेरिकी कोई मदद नहीं करते."

एक ट्रक ड्राइवर लालाजान बताते हैं, "इस साल हम अब तक पंद्रह ट्रक खो चुके हैं. हमारा एक ट्रक रास्ते में खराब हुआ तो हमने मदद के लिए लोगों को भेजा. जाने कहां से तालिबानी वहां पहुंच गए. मैंने उन्हें कहा कि मेरा ट्रक मत जलाओ, मैं तुम्हे पैसे दे देता हूं. पर उन्होंने कहा कि मेरा पैसा हराम है. और उनके नेता ने ट्रक जला दिया."

तस्वीर: Reuters

सीमा के बंद होने का नुकसान भी इन ट्रक ड्राइवरों को ही उठाना पड़ा है. पाकिस्तान ने सात महीनों तक नाटो के ट्रकों को सीमा पार करने की अनुमति नहीं दी. हालांकि पाक सरकार का कहना है कि नुकसान की भरपाई के लिए दोगुनी संख्या में ट्रकों को सीमा पार करने दिया जा रहा है, लेकिन लालाजान कुछ और ही बताते हैं, "अब भी बहुत से ट्रक वहां अटके हुए हैं. कई बार तो कुछ ही ट्रकों को आने की इजाजत मिल पाती है, जबकि पिछले साल हर रोज औसतन 160 ट्रक आ जाया करते थे."

एक तरफ तालिबान का खतरा है तो दूसरी तरफ आर्थिक मार. 23 साल के हबीबुल्लाह का कहना है कि अमेरिकी सेना से उन्हें जितना पैसा मिलता है उसका आधा बिचौलिये ही खा जाते हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार सेना ने औसतन आठ हजार डॉलर के जो ठेके दिए उनमें से चार हजार तो बिचौलियों की ही जेबों में चले गए. ड्राइवरों को महीने का करीब तीन सौ डॉलर का वेतन मिल पाया. लालाजान बताते हैं, "बिचौलिए अक्सर महीनों तक हमारा पैसा रोक लेते हैं. कई बार जब हम पैसा मांगने जाते हैं तो देखते हैं कि कंपनी ही गायब हो चुकी है. अमेरिकियों को इसकी कोई परवाह नहीं होती."

हबीबुल्लाह का कहना है कि उन्हें डर है कि तालिबान नाटो के जाने के बाद उन्हें जीने नहीं देगा, "हमें इस बात का कोई भरोसा नहीं है कि सरकार तालिबान के साथ किसी समझौते पर पहुंच पाएगी. अगर समझौता होता भी है, तब भी हम पर हमले जारी रहेंगे, क्योंकि तालिबान की नजरों में हम काफिर हैं." हबीबुल्लाह की मांग है कि ड्राइवरों को देश छोड़ कर जाने की अनुमति दी जाए, "हमें लगता है कि हमारे जैसे ड्राइवरों के लिए सीमा खोल देनी चाहिए. ऐसा पहले कुछ ट्रांसलेटरों के साथ भी हो चुका है. हमें भी उनकी तरह अफगानिस्तान छोड़ने की इजाजत दी जानी चाहिए."

आईबी/एनआर (रॉयटर्स)

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