1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

अफगान शांति प्रक्रिया में भारत की प्राथमिकताएं

३० मार्च २०२१

ताजिकिस्तान में हो रही अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया से संबंधित बैठक में भारत का आधिकारिक रूप से शामिल होना इस पूरी प्रक्रिया में एक दिलचस्प मोड़ है. देखना होगा की भारत के शामिल होने से शांति प्रक्रिया पर क्या असर पड़ेगा.

Indien Besuch Staatschef Afghanistan
तस्वीर: courtesy PIB, Gov. of India

अभी तक भारत इस प्रक्रिया में बाहर से शामिल था, लेकिन यह पहली बार है जब भारत के विदेश मंत्री इस प्रक्रिया में आधिकारिक रूप से शामिल हो रहे हैं. साफ है कि जैसे जैसे अमेरिका के अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ वहां से निकल जाने की समय सीमा करीब आ रही है, शांति वार्ता में शामिल देशों की सोच में भारत की भूमिका को लेकर बदलाव आ रहे हैं.

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ताजीकिस्तान की राजधानी दुशांबे में चल रहे हार्ट ऑफ एशिया-इस्तांबुल प्रोसेस के नौवें मिनिस्टीरियल सम्मेलन में अफगानिस्तान और ताजीकिस्तान के विदेश मंत्रियों के निमंत्रण पर भाग लेने पहुंचे हैं. मंगलवार 30 मार्च को सम्मेलन में भाग लेते उन्होंने भारत के नजरिए से तीन बातों पर जोर दिया - भारत प्रांत में दोहरी शांति चाहता है, यानी अफगानिस्तान के अंदर और उसके इर्द-गिर्द भी; शांति वार्ता के सफल होने के लिए जरूरी है कि सभी पक्षों को एक दूसरे पर भरोसा हो और वो एक राजनीतिक समाधान ढूंढने के लिए प्रतिबद्ध हों; और हार्ट ऑफ एशिया प्रक्रिया के सिद्धांतों का पालन हो.

इसके अलावा जयशंकर ने भारत की तरफ से अमेरिका के उस प्रस्ताव का भी समर्थन किया जिसमें संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में एक ऐसी शांति प्रक्रिया की बात की गई है जिसमें रूस, चीन, पाकिस्तान, ईरान, भारत और अमेरिका के विदेश मंत्री साझा रूप से शामिल हों. जानकार जयशंकर के बयान में कई संकेत देख रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार नीलोवा रॉय चौधरी मानती हैं कि विदेश मंत्री ने अपने बयान से अमेरिका, अफगानिस्तान और पाकिस्तान तीनों को कुछ संकेत दिए हैं.

अमेरिका, अफगानिस्तान और पाकिस्तान को एक साथ संकेत

नीलोवा ने डीडब्ल्यू को बताया कि भारत जो बाइडेन प्रशासन को संकेत दे रहा है कि अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्तान से निकाल लेने का समय अभी नहीं आया है; अफगानिस्तान सरकार को संकेत दे रहा है कि चाहे जो भी हो, भारत हमेशा अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार के समर्थन में रहेगा; और पाकिस्तान को यह संकेत देने की कोशिश कर रहा है कि उसे यह मानना पड़ेगा कि अफगानिस्तान में भारत के वैध हित हैं और भारत अफगान शांति प्रक्रिया का हिस्सा है.

जयशंकर ने अपने बयान में तालिबान का भी जिक्र किया और कहा कि भारत अफगान सरकार और तालिबान के बीच बातचीत को आगे बढ़ाने की सभी कोशिशों के समर्थन में रहा है. लेकिन कई जानकार इसे एक बुरे आकलन के रूप में देख रहे हैं. ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो सुशांत सरीन कहते हैं कि जयशंकर ने अपने बयान में सब सही चीजें कही हैं लेकिन हर बात जो उन्होंने की वो सच होगी नहीं. सरीन मानते हैं कि अफगानिस्तान का समाधान बातचीत से नहीं, बल्कि बंदूक से निकलेगा और यही इस स्थिति का कड़वा सच है.

दिसंबर 2016 में अमृतसर में हुए हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Pal Singh

उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा कि तालिबान को ऐसा लगता है कि वो जीतने ही वाले हैं, तो इन हालत में वो कोई भी शर्त क्यों मानेंगे? सरीन ने कहा, "आप देखिए अभी तक तालिबान ने क्या कहा है...वो एक अमीरात की स्थापना की महत्वाकांक्षा से पीछे नहीं हटे हैं...उन्होंने अपनी इस्लामिक विचारधारा से समझौता करने से मना कर दिया है...उन्होंने किसी भी तरह के समझौते से इनकार कर दिया है."

क्या करेगा पाकिस्तान

जयशंकर के बयान के बाद अब यह देखने का इंतजार किया जा रहा है कि दुशांबे में उनकी मुलाकात पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से होगी या नहीं. दोनों देशों ने पिछले कुछ दिनों में पिछले दो सालों से खराब हुए आपसी रिश्तों को सुधारने की इच्छा के कई संकेत दिए हैं. कई जानकार मानते हैं कि कई दूसरे देश भी भारत और पाकिस्तान को दोस्ती की तरफ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं कि क्योंकि उन दोनों के बीच शांति के बिना अफगान शांति प्रक्रिया का सफल होना मुश्किल है.

जयशंकर के बयान में 'अफगानिस्तान के इर्द-गिर्द भी शांति' पर जोर देने को पाकिस्तान के लिए इशारा माना जा रहा है. नीलोवा का कहना है कि पाकिस्तान ने हमेशा से भारत को अफगान शांति प्रक्रिया से बाहर रखना चाहा है, लेकिन इस्लामाबाद को अब मानना होगा कि अफगानिस्तान के विदेश मंत्री के न्योते के बाद भारत अब इस प्रक्रिया का आधिकारिक रूप से हिस्सा है. 

हार्ट ऑफ एशिया प्रक्रिया 2011 से चल रही है. इसके तहत आयोजित किए जाने वाले सम्मेलनों का उद्देश्य अफगानिस्तान में शांति की प्रक्रिया को लेकर प्रांतीय और अंतरराष्ट्रीय सहमति बनाना है. जयशंकर सोमवार को सम्मेलन से पहले अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी से मिले. तीन दिनों की इस यात्रा में वो सम्मेलन में भाग लेने वाले दूसरे देशों के नेताओं से भी मिलेंगे.

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें