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अफसर को पीटने के लिए मुकदमा

२६ सितम्बर २०१३

जर्मनी के गोदी नगर रॉस्टॉक में जर्मन सेना के छह जवानों पर अपने अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार के लिए मुकदमा चलाया जा रहा है. हमला बेरूत में जर्मन सेना की तैनाती के दौरान हुआ, मुकदमा जर्मनी में चल रहा है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मन नौसेना के जवानों पर विद्रोह का आरोप है, नौसैनिक जहाज पर साथ मिलकर हिंसक दंगे का. रॉस्टॉक में कठघरे में 22 से 27 साल की उम्र के छह सैनिक हैं. उनका युद्धपोत हर्मेलिन संयुक्त राष्ट्र के लेबनान मिशन यूनीफील के सिलसिले में बेरूत के बंदरगाह पर था. अभियोजन पक्ष के अनुसार वहां छहो युवा सैनिकों ने अपने पेटी अफसर को टेबल से बांध दिया. बाद में उन्होंने अपने अधिकारी के पैर पर मार्कर से लिख दिया कि "यहां मोन्गो रहते हैं." इसके पहले पेटी अफसर ने कथित तौर पर जवानों को मोन्गो कहा था, जो युवाओं की भाषा में बेवकूफ के लिए इस्तेमाल होता है.

जवानों ने अपना अपराध आंशिक तौर पर कबूल कर लिया, इसलिए प्रेक्षकों को उम्मीद है कि मुकदमे का फैसला जल्द ही सुना दिया जाएगा. जर्मन सेना में अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के लिए तीन साल तक की कैद की सजा मिल सकती है. गदर के लिए और कड़ी सजा दी जा सकती है. सैनिक कानून के जानकार वकील बैर्न्ड पोडलेष ट्रापमन कहते हैं कि गंभीर मामलों में 10 साल तक की कैद की सजा हो सकती है. उनका कहना है कि हैर्मेलिन युद्धपोत के जवानों की सजा को अपराध कबूल करने के कारण प्रोबेशन वाली सजा में बदला जा सकता है.

युद्धपोत हर्मेलिनतस्वीर: picture-alliance/dpa

सैनिकों के लिए जर्मन कानून

जर्मन सैनिक इस समय लेबनान के समुद्र तट पर ही तैनात नहीं हैं, बल्कि वे अफगानिस्तान, कोसोवो और हॉर्न ऑफ अफ्रीका में भी तैनात हैं. वहां भी सैनिकों के अपराध के मामले सामने आते हैं. अपमान करना, चोट पहुंचाना, शराब पीकर अपराध करना, अपराधों का आयाम उतना ही बड़ा है, जितना जर्मनी में तैनात सैनिकों में, लेकिन उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई उन देशों में नहीं होती, जहां वे तैनात हैं. संदिग्ध अपराधियों पर जर्मनी का कानून लागू होता है और कार्रवाई जर्मन अदालतों में होती है. दूसरे देशों की तरह जर्मनी में सैनिक अदालतें नहीं हैं. सैनिकों पर सामान्य अदालतों में मुकदमा चलता है.

इस साल के शुरू तक इस तरह के मामलों के लिए जर्मनी के सभी अभियोक्ता कार्यालय जिम्मेदार थे. इसका फैसला संदिग्ध जवान की रिहायश के आधार पर होता था. अप्रैल से सैनिक अपराधों की जिम्मेदारी केम्पटेन के अभियोक्ता कार्यालय को दे दी गई है. फौजदारी कानून के विशेषज्ञ फाबियान श्टाम के अनुसार इससे अभियुक्तों को ज्यादा कानूनी सुरक्षा मिली है, "क्योंकि सरकारी वकील मामलों के बारे में जानते हैं और इसकी वजह से मुकदमे में तेजी आ सकती है." वे मिसाल देते हुए कहते हैं कि यदि मुझे मालूम है कि अफगानिस्तान में चेकप्वाइंट कैसा है, उसके साथ किस तरह का दबाव जुड़ा है तो मैं स्थिति को बेहतर समझ पाऊंगा.

जवाबदेह रॉस्टॉक का अदालत

वकील पॉडलेष ट्रापमन भी इस कदम को उपयोगी मानते हैं. वे कहते हैं, "मुश्किल होगी यदि अलग अलग जवानों के लिए अलग अदालतें जवाबदेह हों." लेकिन एक अभियोक्ता कार्यालय को जवाबदेह बनाने की आलोचना भी हुई है. वामपंथी डी लिंके पार्टी के सांसद पॉल शेफर ने सेना पर विशेष न्याय की संरचना बनाने का आरोप लगाया है. फाबियान श्टाम आलोचना को अनुचित बताते हुए कहते हैं कि विशेष न्याय के साथ लोग नाजी काल को जोड़कर देखते हैं. श्टाम का कहना है कि केम्पटेन में भी सामान्य सरकारी वकील बैठते हैं जो इस तरह के अपराधों के लिए जिम्मेदार हैं.

छह नौसैनिक जवानों के खिलाफ गदर का मुकदमा केम्पटेन की जगह रॉस्टॉक में इसलिए हो रहा है क्योंकि ये एक युद्धपोत पर हुआ अपराध है. वहां समुद्री श्रम कानून लागू होता है, जो जहाजों पर काम करने वाले लोगों के लिए लागू होता है. चूंकि युद्धपोत रॉस्टॉक के बंदरगाह से जुड़ा था, इसलिए जवाबदेह अदालत भी वहीं है. हालांकि यह संभव है कि अभियुक्तों के लिए मामला रॉस्टॉक में ही खत्म नहीं होगा. पॉडलेष ट्रापमन का कहना है, "मैं समझता हूं कि यहां सिविल कानून के आधार पर कार्रवाई होगी, जबकि अनुशासन के मामले में सैन्यसेवा अदालतें फैसला लेंगी."

जर्मनी में इस समय अनुशासन संबंधी मामलों के लिए सेना की दो अदालतें हैं. उत्तरी अदालत मुंस्टर में है और दक्षिणी अदालत म्यूनिख में. वहां जवानों को कैद की संभावित सजा के अलावा सेना से डिसऑनरेबल डिसचार्ज या पदानवति मुमकिन है. लेबनान में तैनाती उनकी अंतिम सैनिक सेवा साबित हो सकती है.

रिपोर्ट: फ्रीडेल टाउबे/एमजे

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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