मेडागास्कर के एलिफैंट बर्ड एक हजार साल पहले ही लुप्त हो चुके हैं. दस फीट ऊंचे इन पक्षियों का वजन करीब 250 किलोग्राम था. वैज्ञानिकों ने पाया है कि कीवी का डीएनए इनसे मेल खाता है. दरअसल कीवी उन चुनिंदा पक्षियों में शामिल हैं जो उड़ नहीं सकते और वैज्ञानिक इसी गुत्थी को सुलझाने में लगे हैं कि ऐसा कब और कैसे हुआ कि पक्षियों की उड़ने की क्षमता कम होने लगी. उन्होंने पाया कि एलिफैंट बर्ड भी खूब वजनदार होने के कारण उड़ नहीं पाते थे.
अब तक वैज्ञानिक मानते रहे हैं कि ना उड़ने वाले पक्षी जैसे कीवी, एमु और शुतुरमुर्ग का विकास 13 करोड़ साल पहले हुआ, जब धरती पर मौजूदा महाद्वीप बने. लेकिन ताजा शोध बताता है कि ऐसा 6 करोड़ साल पहले हुआ. यह वह समय था जब धरती से डायनासोर खत्म हो गए थे लेकिन स्तनपाइयों का विकास नहीं हुआ था. उस समय जिन पक्षियों का विकास हुआ वे मुर्गों के आकार के थे. नई रिसर्च में बताया गया है कि कुछ पक्षी उड़ कर दूसरे महाद्वीपों पर चले गए और बाद में उनका वजन बढ़ने लगा और वे वहीं रह गए.
हर साल मई के दूसरे सप्ताहांत में दुनिया के प्रवासी पक्षियों का दिन होता है. हजारों मीलों की सैर करने वाले इन खास पक्षियों के प्रति जागरूकता फैलाने की दृष्टि से ये दिन मनाया जाता है.
तस्वीर: picture alliance/wildlifeजहां गर्मियों का मौसम शुरू हुआ नहीं कि यूरोप की ओर हजारों पक्षी आने लगते हैं. जैसे कि यह सारस.
तस्वीर: Getty Imagesअफ्रीका में ठंड गुजारने के बाद ये पंछी अंडे देने यूरोप आते हैं. हालांकि जब ये सारस पोलैंड पहुंचे तो मौसम बर्फीला था. अच्छी किस्मत और खुशी के प्रतीक इन पक्षियों को मरने से बचाने के लिए इमरजेंसी कार्यक्रम चलाए गए.
तस्वीर: picture-alliance/dpaइस्राएल में कई पक्षी रुकते हैं. खास तौर पर सफेद पेलिकन. हवासील नाम का ये पक्षी छह से आठ किलोग्राम का होता और इसका पंख करीब तीन मीटर लंबा होता है. दुनिया के सबसे बड़े माइग्रेटरी पक्षियों में ये शामिल है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaसाइबेरियाई सारस आर्कटिक टुंड्रा के निवासियों के लिए पवित्र हैं. यह करीब 10,000 मील की यात्रा करते हैं. हालांकि शिकार और निवास खत्म होने के कारण ये पक्षी खतरे में हैं. 2010 के आंकड़ों के मुताबिक इनकी संख्या दुनिया भर में सिर्फ 3,200 थी.
तस्वीर: Jussi Mononenलुब्ल्याना का घास मैदान इस चिड़िया का घर है. स्लोवेनिया के इस इलाके में कई पक्षी रुकते हैं. अफ्रीका से ब्रिटेन जाने वाली भूरे रंग की ये नर चिड़िया खास आसाज निकालती है. और मादा को रिझाने के लिए रात में कम से कम 10,000 बार इसे दोहराती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaमध्य यूरोप में पाई जाने वाली ये ब्लैककैप चिड़िया. ये जर्मनी और ऑस्ट्रिया में गर्मियां गुजारती है. अब अक्सर ये दक्षिणी इंग्लैंड भी जाती है. विशेषज्ञों का मानना है कि ये बदलाव जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaयह प्रवास पक्षियों के लिए मुश्किल भी साबित हो सकता है. थकान इन चिड़ियाओं को जानलेवा हालात में डाल सकती है. कई बार इनके अलावा शिकार होने का, बीमार या भूखे मरने का खतरा भी इन पर मंडराता है.
तस्वीर: Getty Imagesबुल्गारिया और रोमेनिया ने हाल में तीन दलदली इलाकों को सुरक्षित रखने के लिए साझा करार किया है. इसमें बुल्गारिया की स्रेबार्ना झील, रोमेनिया की कालार्सी और तीन अन्य झीलों वाला इलाका शामिल है.
तस्वीर: picture-alliance/DUMONT Bildarchivजर्मनी और नीदरलैंड्स के उत्तरी किनारे वाला वॉडेन सी प्रवासी पक्षियों की खास जगह है. यहां करीब 61 लाख पक्षी एक समय पर मौजूद हो सकते हैं. हर साल यहां से एक करोड़ प्रवासी पक्षी गुजरते हैं.
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कीवी के रिश्तेदार
इस रिसर्च को करने वाले ऑस्ट्रेलिया के एलेन कूपर कहते हैं कि डीएनए के नतीजों ने उन्हें काफी हैरान किया. कीवी और एलिफैंट बर्ड के आकार में इतना फर्क होता है कि उन्होंने इस तरह के नतीजों की बिलकुल भी उम्मीद नहीं की थी, "150 सालों से यह हमारे लिए रहस्य बना हुआ था. बहुत सी बातें सोची गई पर इस बारे में कभी ख्याल भी नहीं आया. दोनों तरह के पक्षी भूगोल, आकृति और पारस्थितिकी के हिसाब से बिलकुल अलग अलग हैं."
दो साल पहले कूपर और उनके साथियों ने ही रिसर्च कर के बताया था कि कीवी और एमु के डीएनए मेल खाते हैं. यहीं से यह धारणा बनी थी कि कीवी ऑस्ट्रेलिया से आए. कूपर कहते हैं कि ताजा नतीजे बताते हैं कि एमु कीवी के दूर के रिश्तेदार हैं "लेकिन एलिफैंट बर्ड तो उनके भाई बहन जैसे हैं."
एलिफैंट बर्ड का एलिफैंट यानि हाथी से क्या नाता है, इस बारे में कूपर बताते हैं कि अरबी भाषा की एक कहावत के अनुसार लोगों ने जब उस पक्षी को देखा तो वह इतना खतरनाक लगा कि लोग कहने लगे कि वह अपने पंजे से हाथी को उठा सकता है. यहीं से उसे एलिफैंट बर्ड नाम मिल गया. पर साथ ही वह कहते हैं कि इस किस्से की कोई पुष्टि नहीं हो सकती. कूपर का मानना है कि ऐसा मुमकिन है कि उस जमाने में इंसानों ने उनका इतना शिकार किया कि वे लुप्त हो गए.
आईबी/एमजे (डीपीए, एएफपी)